फर्जी डिग्री और मार्कशीट घोटाला केस: मोनाड यूनिवर्सिटी के मालिक विजेंद्र हुड्डा और उसके बेटे की जमानत याचिका खारिज
हापुड़ की मोनाड यूनिवर्सिटी में फर्जी डिग्री घोटाले में मालिक विजेंद्र हुड्डा और उनके बेटे संदीप की जमानत याचिका खारिज हो गई। एसटीएफ जांच में पता चला कि यह घोटाला नौ राज्यों समेत कनाडा और लंदन तक फैला है जिसमें एक लाख से ज्यादा फर्जी डिग्रियां बेची गईं। विजेंद्र हुड्डा पर पहले भी आर्थिक अपराधों के आरोप हैं और उन्होंने घोटाले के पैसे से यूनिवर्सिटी खरीदी थी।

जागरण संवाददाता, हापुड़। हापुड़ की मोनाड यूनिवर्सिटी में फर्जी डिग्री और मार्कशीट घोटाले के मामले में यूनिवर्सिटी के मालिक विजेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे संदीप कुमार को सोमवार को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय ने बड़ा झटका दिया। दोनों की जमानत याचिका को खारिज कर दिया गया।
उत्तर प्रदेश विशेष कार्य बल (एसटीएफ) की जांच में इस घोटाले का व्यापक नेटवर्क सामने आया है। जो न केवल भारत के नौ राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, गुजरात और कर्नाटक ही नहीं बल्कि, कनाडा और लंदन तक फैला हुआ है। अनुमान है कि इस रैकेट के जरिए एक लाख से अधिक फर्जी डिग्रियां और मार्कशीट बेची गई हैं।
न्यायालय में सुनवाई और जमानत याचिका पर बहस
मोनाड यूनिवर्सिटी के मालिक विजेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे संदीप कुमार की जमानत याचिका पर सोमवार को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में सुनवाई हुई। एसटीएफ के अधिवक्ता अजनान खान ने बताया कि उन्होंने न्यायालय में विजेंद्र हुड्डा के आपराधिक इतिहास को विस्तार से पेश किया।
उन्होंने बताया कि विजेंद्र हुड्डा आर्थिक अपराधों का आदी है। वह पहले बहुचर्चित बाइक बोट घोटाले का मुख्य आरोपी रह चुका है। जिसके लिए उस पर पांच लाख रुपये का इनाम घोषित था। इस घोटाले से प्राप्त धनराशि का उपयोग हुड्डा ने 2022 में मोनाड यूनिवर्सिटी को खरीदने के लिए किया। इसके बाद उसने फर्जी डिग्री और मार्कशीट बेचने का एक संगठित रैकेट शुरू किया।
उन्होंने ने भारतीय दंड संहिता की धारा 111 का हवाला देते हुए तर्क दिया कि यदि कोई व्यक्ति दस साल के भीतर दो बार आर्थिक अपराध करता है। तो उसे आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। इस धारा के तहत जमानत देना संभव नहीं है।
11 जून को होगी मोनाड मामले की सुनवाई
विजेंद्र हुड्डा के पक्ष में दिल्ली हाईकोर्ट से आए अधिवक्ताओं ने बचाव में कई तर्क दिए, लेकिन एसटीएफ द्वारा पेश किए गए ठोस सबूतों और हुड्डा के पुराने आपराधिक रिकार्ड के आधार पर न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी। तीन घंटे तक चली तीखी बहस के बाद न्यायालय ने फैसला सुनाया कि दोनों को जमानत नहीं दी जाएगी। इस मामले की अगली सुनवाई अब 11 जून 2025 को होगी।
घोटाले का व्यापक दायरा
एसटीएफ की जांच में इस घोटाले की भयावहता सामने आई है। मोनाड यूनिवर्सिटी द्वारा बेची गई फर्जी डिग्रियां नौ भारतीय राज्यों के अलावा कनाडा और लंदन तक पहुंची थीं। जांच में अब तक 1,372 फर्जी मार्कशीट और डिग्रियां बरामद की गई हैं। जिनमें बीएड, बीए-एलएलबी, बी-फार्मेसी, बीसीए, और बीटेक जैसी डिग्रियां शामिल हैं।
ये डिग्रियां 50 हजार रुपये से लेकर चार लाख रुपये तक में बेची गईं। अनुमान है कि कुल एक लाख से अधिक फर्जी डिग्रियां बेची गई हैं। यह रैकेट 2018 से संचालित हो रहा था। मगर, 2022 में विजेंद्र हुड्डा ने यूनिवर्सिटी खरीदने के बाद इसे और संगठित रूप दिया गया।
जांच में पता चला कि हरियाणा के पलवल में एक प्रिंटिंग प्रेस में ये फर्जी मार्कशीट छापी जाती थीं। जहां प्रति डिग्री पांच हजार रुपये लिए जाते थे। रैकेट में नकली वेबसाइट, जाली एनरोलमेंट नंबरों, और डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग किया जाता था। दलालों का एक व्यापक नेटवर्क इस घोटाले को संचालित करता था। जो विभिन्न राज्यों और देशों में सक्रिय था।
एसटीएफ की कार्रवाई और गिरफ्तारी
एसटीएफ ने इस मामले में अब तक 11 लोगों को गिरफ्तार किया है। जिनमें यूनिवर्सिटी के चेयरमैन विजेंद्र सिंह हुड्डा, उनके बेटे संदीप कुमार, प्रो-चांसलर नितिन कुमार सिंह, और अन्य कर्मचारी शामिल हैं। जांच में यूनिवर्सिटी के पूर्व निदेशकों और अन्य निजी विश्वविद्यालयों के साथ संभावित कनेक्शन की भी पड़ताल की जा रही है।

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