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    ...ताे अबकी बार मेरठ क्षेत्र में लगेगा आधे से ज्यादा गढ़ गंगा मेला, आखिर क्या है वजह

    Updated: Tue, 09 Sep 2025 05:17 PM (IST)

    हापुड़ के गढ़मुक्तेश्वर में गंगा किनारे लगने वाला ऐतिहासिक मेला इस बार स्थान बदलेगा। गंगा के कटाव के कारण मेले का अधिकांश भाग मेरठ जिले में स्थानांतरित हो सकता है। गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण मैदान में पानी भरा है और मेला पक्की मिट्टी पर लगने की संभावना है। प्रशासन स्थिति के अनुसार रणनीति बना रहा है।

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    इस बार मेरठ क्षेत्र में लगेगा आधे से ज्यादा गढ़ गंगा मेला। जागरण

    ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। हापुड़ में गढ़मुक्तेश्वर में गंगा के किनारे लगने वाला एतिहासिक मेला अब बार अपना स्थान बदलेगा। हापुड़ जिले की सीमा में लगने वाले इस मेले का आधे से ज्यादा क्षेत्र मेरठ जिले की सीमा में पहुंच सकता है।

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    गंगा का कटान होने के चलते इस बार मेले को पक्के पर लगाने की तैयारी है। गंगा के रेत पर लगने वाले मेले को पक्की मिट्टी पर ही लगाया जाएगा। ऐसे में मेले का आधे से ज्यादा हिस्सा मेरठ जिले की सीमा में पहुंच सकता है। मेला क्षेत्र में एक महीने बाद ही बाजार और आफिस बनने आरंभ हो जाएंगे। जिस स्तर पर जलभराव और कठान हो रहा है, उससे नहीं लगता कि यह स्थान सूखकर मेला लगाने लायक हो जाएगा।

    वहीं, पानी भरा होने के कारण गन्ने आदि की फसलों को काटने में भी दिक्कत आएगी। प्रशासन मौजूदा हालात के अनुसार रणनीति तैयार कर रहा है।

    गढ़मुक्तेश्वर का गंगा मेला एतिहासिक और पौराणिक है। मान्यता है कि यह मेला महाभारतकाल से लगता चला रहा है। यहां पर कौरवों और पांड़वों के ठहरने की व्यवस्था भी होती थी। वहीं उनके घोड़ों को रखने के लिए अस्तबल बनाए जाते थे। अस्तबल वाले क्षेत्र से आजकल पशुओं के बाजार का रूप ले लिया है।

    वहीं राजकुमारों के ठहरने वाले स्थानों का स्वरूप तंबुओं वाले शहर का हो गया है। यह गंगा मेला उत्तरी भारत में प्रसिद्ध है, जिसमें स्नान को आने वाले परिवार तंबुओं में यहां पर 15 दिन तक रहते हैं। यह मेला गंगाकिनारे के रेतीले क्षेत्र से आरंभ होकर साढ़े तीन किमी की चौड़ाई में लगता है। वहीं करीब 33 किमी की लंबाई में गिड़ावली से तिगरी के सामने तक फैला रहता है। इसमें सरकारी कार्यालय, पुलिस लाइन, करीब 30 थाने, बाजार, मेला और तीन दर्जन से ज्यादा आवासीय सेक्टर बनाए जाते हैं।

    अबकी बार गंगा ने जबरदस्त कटान किया है। क्षेत्र के लोगों ने बताया कि बाढ़ तो कई बार आई हैं, लेकिन इतना ज्यादा कटान 1952 के बाद इस साल हुआ है। गंगा का प्रवाह दो दर्जन से ज्यादा गांवों से होता हुआ गढ़मुक्तेश्वर कस्बे को स्पर्श करके बह रही है। प्रवाह अभी बहुत तेज है। गंगा करीब एक डेढ़ किमी का कटान कर चुकी है। वहीं कटान अभी जारी है।

    गंगा का जलस्तर कम होने पर भी सउक महीने में किनारे का क्षेत्र मेले के लगने लायक होने की स्थिति नहीं बन पाएगी। ऐसे में माना जा रहा है कि गंगा मेले रेतीले क्षेत्र में नहीं लगेगा। इस बार मेला पक्की वाले क्षेत्र पर ही लगाया जाएगा।

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    वहीं जलभराव के चलते खेतों के भी जल्द खाली होने की स्थिति नहीं बन पा रही है। इससे मेले की चौड़ाई कम हो जाएगी। मेले को किनारे-किनारे मेरठ जिले में फैलाकर लगवाया जाएगा। इससे मेले की लंबाई 40 किमी तक पहुंच सकती है।

    अभी गंगा कटान और प्रवाह बहुत ज्यादा है। रोजाना हालात बदल रहे हैं। लगता नहीं है कि मेला लगने के समय तक जलस्तर सामान्य हो सकेगा। हमने किनारे-किनाने मेरठ की ओर मेला का क्षेत्र बढ़ाने की योजना पर विचार करना आरंभ कर दिया है। जलस्तर सामान्य होने पर एक बार अधिकारियों के साथ क्षेत्र का भ्रमण किया जाएगा। - शिशुपाल शर्मा - एएमए- जिला पंचायत