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    Hapur Chunav News: आजादी के बाद हापुड़ विधानसभा सीट पर जीत का परचम लहराने वाली पहली महिला विधायक कौन थी, पढ़िए पूरी स्टोरी

    By Pradeep ChauhanEdited By:
    Updated: Sun, 09 Jan 2022 03:40 PM (IST)

    यह दोनों सीट हापुड़ नार्थ और हापुड़ साउथ के नाम से जाने जाती थी। वर्ष 1951 के विधानसभा चुनावों में हापुड़ नार्थ से कांग्रेस की प्रकाशवती और हापुड़ साउ ...और पढ़ें

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    आजादी के बाद वर्ष 1951 तक हापुड़ विधानसभा क्षेत्र दो हिस्सों में विभाजित था।

    हापुड़ [विशाल]। आजादी के बाद वर्ष 1951 तक हापुड़ विधानसभा क्षेत्र दो हिस्सों में विभाजित था। यह दोनों सीट हापुड़ नार्थ और हापुड़ साउथ के नाम से जाने जाती थी। वर्ष 1951 के विधानसभा चुनावों में हापुड़ नार्थ से कांग्रेस की प्रकाशवती और हापुड़ साउथ से कांग्रेस के लुफ्त अली खान ने परचम लहराया था। हापुड़ विधानसभा सीट पर अधिकतर कांग्रेस का कब्जा रहा है। भाजपा ने तीन बार और बसपा के प्रत्याशी दो बार जीते हैं। जबकि एक बार निर्दलीय प्रत्याशी ने भी बाजी मारी थी।

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    आजादी के बाद वर्ष 1951 तक हापुड़ विधानसभा क्षेत्र की दोनों सीटें सामान्य थी। 1957 के चुनाव में हापुड़ की एक सीट से कांग्रेस के लुफ्त अली खान से फिर से बाजी मारी। उन्हें 59737 मत मिले और दूसरी सीट पर कांग्रेस के वीर सेन ने बाजी मारी थी। उन्हें 55309 मत मिले। वर्ष 1962 में प्रेम सुंदर नारायण सिंह कांग्रेस को हराकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते।

    इसके बाद वर्ष 1967 में हापुड़ विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई थी। इस चुनाव में रिपब्लिक पार्टी आफ इंडिया के डीडी सेन को लोगों ने विधायक चुना था। 1969 में भारतीय क्रांतिदल के लक्ष्मण स्वरूप, 1974 में कांग्रेस के टिकट पर भूप सिंह केन, 1977 में जनता पार्टी के बनारसी दास, 1980 में कांग्रेस के भूप सिंह केन, 1985 में कांग्रेस के टिकट पर गजराज सिंह, 1989 में हापुड़ क्षेत्र के लोगों ने फिर से कांग्रेस प्रत्याशी गजराज सिंह को विधायक चुन विधान सभा भेजा।

    1991 में भाजपा के विजेंद्र कुमार नक्शे वाले,1993 में कांग्रेस प्रत्याशी गजराज सिंह ने फिर से एक बार चुनावी दंगल में बाजी मार ली थी। 1993 में भाजपा प्रत्याशी जयप्रकाश ने कांग्रेस प्रत्याशी गजराज सिंह को हटाकर इस सीट पर कब्जा कर लिया था। वर्ष 2002,2007 में लगातार दो बार बसपा से धर्मपाल सिंह ने हापुड़ सीट को जीता था। 2012 में फिर से कांग्रेस प्रत्याशी गजराज सिंह पर विश्वास जातते हुए विधायक बनाया था। वर्ष 2017 में भाजपा से विजयपाल आढ़ती ने इस सीट पर कब्जा किया था।

    गढ़मुक्तेश्वर विधान सभा सीट

    गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा सीट का गठन वर्ष 1962 में हुआ था। यह सीट सबसे पहली बार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई थी। इस सीट से सबसे पहले विधायक बाबू वीर सेन बने थे। वर्ष 1967 में इस सीट से निर्दलीय प्रत्याशी बलबीर सिंह ने चुनाव जीता। वर्ष 1969 में हुए चुनाव में भारतीय क्रांति दल से बलबीर सिंह, वर्ष 1974 में कांग्रेस के मंजूर अहमद, वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सखावत हुसैन, वर्ष 1980 में कांग्रेस के कुंवर वीरेंद्र सिंह ढाना, वर्ष 1985 में लोकदल के बाबू कनक सिंह, वर्ष 1989 में कांग्रेस के डाक्टर अख्तर, वर्ष 1991 भाजपा के कृष्णवीर सिरोही ने विधानसभा में गढ़मुक्तेश्वर का प्रतिनिधित्व किया।

    वर्ष 1993 भाजपा के कृष्णवीर सिरोही ने दोबारा इस सीट पर कब्जा कर लिया। वर्ष 1996 में गढ़मुक्तेश्वर से भाजपा के रामनरेश रावत विधायक बने। वर्ष 2002,2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में गढ़मुक्तेश्वर की जनता ने सपा के मदन चौहान को अपना प्रतिनिधि चुना। जबकि 2017 में भाजपा से डाक्टर कमल मलिक ने इस सीट पर जीत हासिल की थी।

    वर्ष 2012 में घोषित की गई थी धौलाना विधानसभा सीट

    पिलखुवा और धौलाना क्षेत्र को मिलाकर वर्ष 2012 में धौलाना विधान सभा क्षेत्र का गठन किया गया। पहले यह क्षेत्र जनपद गाजियाबाद के मोदीनगर विधानसभा क्षेत्र में आता था। इस सीट पर वर्ष 2012 में हुए चुनाव में सपा प्रत्याशी धर्मेश तोमर ने जीत दर्ज की थी। दूसरे नंबर पर बसपा के असलम चौधरी रहे थे। वर्ष 2017 के चुनाव में इस सीट पर बसपा के असलम चौधरी ने भाजपा के डाक्टर रमेश चंद तोमर को हराकर जीत हासिल की।