बदल रहा जमाना. अब कम सुनाई देती है रेडियो की आवाज
प्रिस शर्मा गढ़मुक्तेश्वर जब कोई नहीं था तब उसका साथ था। आज सब कुछ है मगर उसी का साथ छ

प्रिस शर्मा, गढ़मुक्तेश्वर
जब कोई नहीं था तब उसका साथ था। आज सब कुछ है, मगर उसी का साथ छूटता जा रहा है। यहां बात हो रही है कभी मनोरंजन का प्रमुख साधन रहने के साथ ही खबरी लाल कहे जाने वाले रेडियो की। एक समय में मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन बहुत सीमित हुआ करते थे। बिजली समेत अन्य मूलभूत साधनों की कमी भी आड़े थी, परंतु इसी दौरान रेडियो आने से मानव जीवन में एक बड़ा बदलाव सा आ गया था। रेडियो पर बीबीसी लंदन की खबरों से लेकर सीलोन स्टेशन से प्रसारित होने वाली बिनाका गीतमाला का अपना एक खास जलवा था। रेडियो के आने से लोगों को मनोरंजन के साथ-साथ देश-विदेश में हो रही गतिविधियों का पता लगने लगा। टीवी के आने के कारण पहले ही सिमट रहा रेडियो का प्रचलन सोशल मीडिया के बढ़ते प्रसार से बुरी तरह सिकुड़ चुका है। लेकिन अब भी कई बुजुर्ग ऐसे हैं, जिन्हें सोशल मीडिया से दूर रहकर रेडियो पर ही खबर सुनना पसंद है। सिभावली क्षेत्र के गांव बक्सर निवासी श्याम लाल भी उन्हीं में शामिल हैं, जो चीनी मिल के पास चाय का खोखा कर परिवार का भरण पोषण करते हैं। उनका कहना है कि वह सन 1955 से लगातार रेडियो सुनते आ रहे हैं। तब बिजली की यह स्थिति नहीं थी, इसलिए सेल डालकर रेडियो चलाते थे। आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले समाचार, फिल्मी गीत समेत मनोरंजन से जुड़े अन्य कार्यक्रम सुनते हुए कभी कभी तो पूरी रात बीत जाती थी। आज भी वह सुबह से शाम तक दुकान पर रेडियो सुनते हैं। रेडियो पर समाचार सुनना उन्हें बहुत पसंद है। दुकान से घर आने के दौरान साथ में रेडियो लाना नहीं भूलते हैं, क्योंकि कौन सा कार्यक्रम कब आएगा इसकी पूरी जानकारी उन्हें रहती है। आज के दौर में भी उनके लिए रेडियो जैसा कोई यार नहीं है। आज के दौर में भी बुजुर्गों में रेडियो की लोकप्रियता बरकरार है। श्याम लाल कहते हैं कि अगर रेडियो के साथ जुड़े अनुभवों को साझा करूं तो काफी लंबा समय बीत जाएगा।
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