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    घूंघट में महिलाओं ने दंगल में दिखाया दम

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 12 Aug 2022 08:21 PM (IST)

    घूंघट महिलाओं ने दंगल में दिखाया दमखम पुरुषों पर रहा

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    घूंघट में महिलाओं ने दंगल में दिखाया दम

    घूंघट में महिलाओं ने दंगल में दिखाया दम

    संवाद सूत्र, खड़ेही लोधन (हमीरपुर) : सैकड़ों साल से पुरानी परंपरा को मुस्करा ब्लाक के लोदीपुर निवादा गांव की महिलाएं आज भी पूरी श्रद्धा व उत्साह के साथ निभा रही हैं। गांव में सिर्फ महिलाओं का दंगल होता है। जिसमें पुरुषों के शामिल होने पर पूरी तरह प्रतिबंध रहता है। इस अजब-गजब दंगल में घूंघट वाली महिलाएं दांवपेंच दिखाती हैं। बुजुर्ग महिलाएं भी अखाड़े में पूरे उत्साह के साथ कुश्ती लड़ती हुई एक दूसरे को उठाकर पटकती है। यह रक्षाबंधन के दूसरे दिन प्रतिवर्ष आयोजित होता है। शुक्रवार को ग्राम प्रधान गिरिजा देवी ने दंगल का शुभारंभ किया।

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    मुस्करा विकास खंड क्षेत्र के अधिकांश गांवो में शुक्रवार को रक्षाबंधन को लेकर तरह-तरह के आयोजन हुए। वही क्षेत्र के लोदीपुर निवादा गांव में अंग्रेजो के जमाने से लगातार लगता चला आ रहा महिलाओं के दंगल का आयोजन खासा रोचक रहा। जिसमें हुई कुश्तियों मे खुशबू ने गौरी बाई को हरा दिया, केशर व रानी भुर्जी की कुश्ती में केशर विजयी रही, कुसुमा पाल ने अनुसूइया को पराजित कर दिया, निशा व विधा की बीच हुई कुश्ती में निशा विजयी रही है, इसके अलावा तीन दर्जन से अधिक कुश्तियां खेली गई। ग्राम प्रधान गिरजा देवी ने दंगल में भाग लेने वाली महिलाओं को पुरस्कार दे सम्मानित किया और मुह मीठा कराया। इस कार्यक्रम के आयोजन में गाव निवासी मालती शुक्ला, ज्योति देवी, नेहा, बिनीता, उर्मिला सहित कई बुजुर्ग महिलाओ का सराहनीय सहयोग रहा।

    कैसे पड़ी परंपरा

    गांव निवासी सुरेश शुक्ला ने बताया कि हमारे पिता जी बताया करते थे कि ब्रिटिश हुकूमत में उनकी फौजो ने यहां के लोगो पर बड़ा अत्याचार किया। यह अंग्रेजी फौज के जुल्म से गांव के लोग परेशान थे। पुरुष अपने घरों में नहीं रह पाते थे। तभी महिलाओ ने अपनी हिफाजत के लिए कुश्ती के दावपेंच सीखे। ग्राम प्रधान प्रतिनिधि व सेवानिवृत्त बैंक मैनेजर नाथूराम ने बताया कि अंग्रेजो का सामना करने व आत्मरक्षा के लिए ही उस समय की महिलाओं ने सारे दावपेच सीख लिए थे। तभी से गांव की महिलाओं ने इस प्रथा की शुरुआत गांव के पुराने बाजार मौदान से की गई। वहीं परंपरा चलती आ रही है।