हमीरपुर में दंगल का पारंपरिक खेल, घूघंट डालकर लड़ती हैं इस गांव की महिलाएं, इसके पीछे अत्याचार की कहानी
हमीरपुर के लोदीपुर निवादा गांव में रक्षाबंधन के दूसरे दिन महिलाओं का अनोखा दंगल होता है जिसमें पुरुषों की एंट्री नहीं होती। घूंघट में महिलाएं कुश्ती ल ...और पढ़ें

संवाद सूत्र, जागरण, बिंवार/खड़ेहीलोधन(हमीरपुर)। आमिर खान की फिल्म 'दंगल' का डायलाग 'म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के'। यह बात है फिल्म की। लेकिन असल में भी ऐसी महिलाएं है जो घूंघट डालकर महिलाएं आपने आत्मविश्वास और शक्ति का प्रदर्शन करती हैं। एक दूसरे को पटकनी देती हैं। ये महिलाएं है हमीरपुर के लोदीपुर निवादा गांव की।
दरअसल, लोदीपुर निवादा गांव में सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा को महिलाएं आज भी पूरी श्रद्धा एवं उत्साह के साथ निभा रही हैं। रक्षाबंधन के दूसरे दिन गांव में सिर्फ महिलाओं का दंगल होता है जिसमें पुरुषों का पूरी तरह प्रतिबंध रहता है। इस अजब-गजब दंगल में घूंघट वाली महिलाएं दांवपेंच दिखाती हैं।
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लोदीपुर निवादा गांव में आयोजित महिला दंगल देखने के लिए लगी महिलाओं की भीड़। जागरण
बुजुर्ग महिलाएं भी आजमातीं दांव पेच
बुजुर्ग महिलाएं भी अखाड़े में पूरे उत्साह के साथ कुश्ती लड़ती हुई एक दूसरे को अखाड़े में उठा-उठाकर पटकती है। रविवार को आयोजित इस दंगल का शुभारंभ ग्राम प्रधान गिरजा देवी ने किया। जिसमें गांव की तमाम महिलाओं ने प्रतिभाग कर एक दूसरे को पटकनी दी।
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ये रहीं विजेता
मुस्करा विकास खंड के निवादा गांव में कजली पर्व पर वर्षों से आयोजित महिला कुश्ती का आयोजन किया गया है जिसमें 20 से अधिक कुश्तियां हुईं। गांव की महिला पहलवान रानी भुर्जी और चंद्रप्रभा के बीच हुई कुश्ती में रानी ने जीत हासिल की। दूसरा गत्तो सविता व प्यारी साहू के बीच मुकाबला हुआ। जिसमें गत्तो ने प्यारी को पराजित किया है। मालती शुक्ला व रामदेवी गुप्ता के बीच मुकाबले में मालती शुक्ला विजेता बनीं। विद्या और संपत के बीच हुए मुकाबले में विद्या ने संपत को चारों खाने चित्त कर दिया। केसर देव व कुंवर के बीच रोमांचक मुकाबले में केसर ने जीत हासिल की। क्रांति पाल व रेखा पाल के बीच मुकाबला बराबरी में छूटा है।
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20 से अधिक दंगल
इस तरह से करीब 20 से अधिक दंगल इस अखाड़े में हुईं। जिसे देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में महिलाएं मौजूद रहीं। आयोजक ग्राम प्रधान गिरिजा देवी ने बताया कि महिला कुश्ती गांव में कई वर्षों से आयोजित हो रही है। जिसके चलते हर वर्ष रक्षाबंधन के दूसरे दिन गांव में इस कुश्ती का आयोजन होता है। जिसमें सिर्फ महिलाएं ही हिस्सा लेती हैं। निर्णायक से लेकर कमेंटेंर सब महिलाएं ही होती हैं।
अंग्रेजो के जमाने से लगातार हो रहा दंगल
लोदीपुर निवादा गांव निवासी सुरेश शुक्ला ने बताया कि हमारे पिता जी बताया करते थे कि ब्रिटिश हुकूमत में उनकी फौजों ने यहां के लोगो पर बड़ा अत्याचार किया था। यह अंग्रेजी फौज के जुल्म से गांव के लोग परेशान थे। पुरुष अपने घरों में नही राह पाते थे। तभी महिलाओं ने अपनी हिफाजत करने के लिए कुश्ती के दावपेंच सीखे थे।
अत्याचार से बचने को सीखा दंगल
ग्राम प्रधान प्रतिनिधि पति व रिटायर्ड बैंक मैनेजर नाथूराम ने बताया कि हमारे बुजुर्गों ने इस दंगल के बारे में प्रचलित कहानी बताते हुए जानकारी दी थी कि अंग्रेजों के अत्याचार से गांव के पुरुष अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भाग जाते थे। तो अंग्रेजो से उनका सामना करने व आत्मरक्षा के लिए ही उस समय की महिलाओं ने सारे दांवपेच सीख लिए थे। तभी से गांव की महिलाओं ने इस प्रथा की शुरुआत गांव के पुराने बाजार मौदान से की थी।
गांव की ही महिलाएं करतीं हैं प्रतिभाग, कोई नही आता बाहरी
इस दंगल में गांव की महिलाएं प्रतिभाग करती हैं। इसमें कोई बाहरी महिलाएं शामिल नही होती हैं। ग्राम प्रधान गिरजा देवी ने बताया कि इस दंगल में 40 से अधिक उम्र की महिलाएं शामिल होती हैं और स्थान पाने वाली महिलाओं को सम्मानित भी किया जाता है।

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