जनपद की धसान नदी को पुनर्जीवित करने की कवायद
अभय प्रताप सिंह हमीरपुर जलस्तर ऊपर लाने और जल संचयन को लेकर जिला
अभय प्रताप सिंह, हमीरपुर
जलस्तर ऊपर लाने और जल संचयन को लेकर जिला प्रशासन गंभीर है। यहीं कारण है कि एक निजी संस्था के साथ मिलकर जिले में अस्तित्व खो रही धसान नदी को पुनर्जीवित करने को रणनीति बनाई जा रही है। इसके लिए अधिकारियों ने राठ क्षेत्र के मलेहटा गांव पहुंच नदी का अवलोकन कर संभावनाएं तलाशी गईं।
यमुना-बेतवा नदियों के बाद जिले में धसान नदी का महत्वपूर्ण स्थान है। जो जिले में 15 किलोमीटर लंबाई तय करने के बाद हमीरपुर व जालौन के संधि स्थान पर बेतवा नदी में मिलती है। नदी जिले के राठ व गोहांड क्षेत्र से होकर गुजरती है। मौजूदा में नदी का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है। वहीं, जल स्तर ऊपर लाने व जल संचयन के प्रति गंभीरता से जुटे जिला प्रशासन ने धसान नदी को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है। इसके सहयोग में परमार्थ संस्था भी जुट गई है। नदी के पुनर्जीवीकरण के लिए अधिकारियों ने मझगवां गांव पहुंच इस संबंध में संभावनाएं तलाश की।
जिला विकास अधिकारी विकास मिश्रा ने बताया कि धसान नदी में पानी को रोकने (घेरने) के प्रयास किए जाएंगे। इसके लिए इस पर चेकडेम निर्माण के साथ डोह निर्माण कराए जाएंगे। इससे डोह निर्माण भी कराए जाएंगे। जल संचयन के साथ जल स्तर में भी सुधार होगा। विभागों के साथ मिलकर तैयार होगी योजना
डीडीओ ने बताया कि इसके लिए मुख्यत: वन विभाग व सिचाई विभाग से मिलकर प्रोजेक्ट तैयार कराया जाएगा। इससे नदी में अधिक से अधिक पानी रोका जा सके। साथ ही रूरल टूरिज्म को भी बढ़ावा देने के प्रयास किए जाएंगे। इसके लिए प्रमुख गांवों में घाट निर्माण भी कराया जाएगा। इसके अलावा कुछ वनस्पति है जो केवल धसान नदी के किनारे मिलती है। उसे भी संरक्षित करने का काम किया जाएगा। नदी का इतिहास
जानकारों के अनुसार धसान नदी को हिदुओं के साथ-साथ जैन भी अपने तीर्थ स्थलों के रूप में मानते हैं। इसे पूर्व में दशार्ण नदी के नाम से जाना जाता था जिसका अपभ्रंश आगे चलकर बुन्देली बोली में धसान हो गया। यह शब्द बुन्देलखण्ड के जनमानस में इतना समा गया है कि अब दर्शन के लिए यहां का जन-जन धसान के नाम से ही उच्चारण करता है। धसान-बेतवा के मध्य तट पर दशरथ ने अपना बाण चलाकर श्रवण कुमार का वध किया था। फलस्वरूप हमीरपुर जिले की सीमा पर दशरथ मंदिर व जालौन के श्रवण गंगा के पास अंधा-अंधी के मंदिरों के पुरावशेष विद्यमान है। कार्तिक पूर्णिमा व मकर संक्रांति में मेला लगता है। वहीं महाशिवरात्रि में कांवर भी भेंट की जाती हैं।