Dussehra 2022 : हमीरपुर का ऐसा गांव, यहां दशहरे में नहीं होता है रावण का दहन, यहां पढ़ें- इसकी वजह
Dussehra 2022 हमीरपुर के बिहुंनी गांव के लोग दशहरे के दिन रावण का दहन नहीं करते है। ग्रामीण नौ शीश वाले लंकेश का श्रृंगार कर पूजा-अर्चना करते है। यहां जनवरी माह में विशाल मेला भी लगता है। इसको लेकर गांव में अलग-अलग चर्चा भी चलती है।
हमीरपुर, जागरण संवाददाता। Dussehra 2022 जिले में एक ऐसा गांव हैं, जहां पर रावण का पुतला जलाया नहीं जाता है बल्कि दशहरे दिन के यहां के लोग रावण की विशाल प्रतिमा का श्रृंगार करते हैं और नारियल चढ़ाकर उसकी पूजा अर्चना करते हैं। इस गांव में यह अनूठी परंपरा कई वर्षों से चला आ रही है।
महात्मा गांधी द्वारा कहे गए शब्द पाप से घृणा करो, पापी से नहीं इसे मुस्करा क्षेत्र में बिहुनी गांव के लोग चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं। यहां दशहरा पर रावण जलाया नहीं जाता है। मान्यता है कि जिस रावण से खुद भगवान लक्ष्मण ने ज्ञान लिया, उसे कैसे जला सकते हैं।
गांव के बीच बने रामलीला मैदान के ठीक सामने रावण की दस फिट ऊंची प्रतिमा है। जिसमें नौ सिर और 20 भुजाएं और सिर पर मुकुट है। जिसमें घोड़े की आकृति बनी है। रावण की यह प्रतिमा बैठने की मुद्रा में है। गांव निवासी धीरेंद्र ने बताया कि यह प्रतिमा सीमेंट और चूने से बनाई गई है। कब और किसने इसका निर्माण करायायह गांव के बड़े-बुजुर्गों को भी नहीं पता।
जिससे लक्ष्मण ने ज्ञान लिया, उसे कैसे जलाएं
इस प्रतिमा की देखरेख ग्राम पंचायत कर रही है। धर्मेंद्र ने बताया कि गांव में कभी रावण दहन नहीं किया गया। ग्रामीण तर्क देते हैं कि रावण महाविद्धान थे। अंतिम समय में लक्ष्मण ने उनके चरणों के पास खड़े होकर ज्ञान लिया था। जिस विद्धान से खुद लक्ष्मण ने ज्ञान लिया, उसके पुतले को जलाने का इंसान को अधिकार कैसे हो सकता है। वेद वेदांत के ज्ञाता रावण का दहन कर अपने धर्म शास्त्रों का अपमान नहीं कर सकते।
दशहरे में होता है रावण का श्रृंगार
ग्रामीणों का कहना है कि दशहरे पर रावण की प्रतिमा को सजाया जाता है और उसमें श्रद्धा से नारियल चढ़ाते हैं। विजय दशमी को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाते हैं पर रावण के पुतले का दहन नहीं करते। रावण की प्रतिमा स्थापित होने से इस मोहल्ले को रावण पटी कहते हैं। विवाह के बाद नवदंपती रावण की प्रतिमा के सामने नतमस्तक होकर आशीर्वाद लेना नहीं भूलते।
जनवरी में लगता है विशाल मेला
रावण की प्रतिमा के सामने मंदिर और रामलीला मैदान है। प्रत्येक वर्ष जनवरी में यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है। जिसमें दूरदराज से आने वाले व्यापारी अपनी दुकानें लगाते हैं। मेले के दौरान रामलीला का मंचन भी होता है। करीब एक सप्ताह तक चलने वाली रामलीला में रावण वध के बाद भी पुतले को नहीं जलाया जाता। रामलीला कलाकार प्रतीकात्मक रूप में रावण वध करते हैं।