Vishnu Temple Gorakhpur: ऐतिहासिक विरासत है गोरखपुर का विष्णु मंदिर, आठवीं सदी की है भगवान विष्णु की प्रतिमा
Vishnu Temple Gorakhpur गोरखपुर के ऐतिहासिक विष्णु मंदिर में आठवीं सदी की भगवान विष्णू की प्रतिमा लगी है। गोरखपुर रेलवे स्टेशन से महज दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर पूरे पूर्वांचल में प्रसिद्ध है। यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। गोरखपुर रेलवे स्टेशन से महज दो किलोमीटर की दूरी पर असुरन चौक पर मौजूद भगवान विष्णु का मंदिर गोरखपुर ही नहीं बलि्क समूचे पूर्वाचल की महत्वपूर्ण धरोहरों में शामिल है। इस मंदिर में स्थापित काले पत्थर की भगवान विष्णु की चतुभरुज प्रतिमा कोई सामान्य प्रतिमा नहीं है। इसका कालखंड पाल राजवंश (आठवीं सदी) का है। यह ऐतिहासिक प्रतिमा पहली बार मिली गोरख नाम के स्थानीय मिस्त्री को 1914 में। वह प्रतिमा को शिलापट्ट समझकर उसपर अपने खुरपे की धार तेज करता था।
यह है मंदिर का इतिहास
एक दिन उसने पत्थर को घर ले जाने की सोची। इसके लिए जब उसने शिलापट्ट को पलटा तो उसे भगवान विष्णु की प्रतिमा दिखी। मिस्त्री ने जब यह जानकारी उस समय के ऑनरेरी मजिस्ट्रेट और जमींदार राय बहादुर अभिनंदन प्रसाद को दी तो उन्होंने मूर्ति को अपने आवास नंदन भवन मंगवा लिया। उस समय के अंग्रेज कलेक्टर सिलट को जब यह पता चला तो उसने प्रतिमा को नंदन भवन से उठवाकर जिले के मालखाने में रखवा दिया। बाद में उसे लखनऊ म्यूजियम भेज दिया।
वहां से उसे लंदन भेजे जाने की तैयारी शुरू हो गई। कहा जाता है कि अंग्रेजों की मंशा थी कि प्रतिमा को लंदन के रायल म्यूजियम का हिस्सा बना दिया जाए। यह बात जब स्थानीय लोगों को पता चली तो धर्म पर कुठाराघात मानते हुए जनता ने राय बहादुर अभिनंदन प्रसाद के नेतृत्व में प्रतिमा को गोरखपुर लाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। जनता के विरोध के सामने अंग्रेजों को झुकना पड़ा और अंग्रेजों ने प्रतिमा को वापस अभिनंदन प्रसाद को सौंप दिया।
1922 को भगवान विष्णु
इतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह के मुताबिक प्रतिमा के लिए मझौली इस्टेट की महारानी श्याम सुंदर कुमारी ने भी पहल की थी। पहले सेशन कोर्ट और फिर हाईकोर्ट में अपील की लेकिन जब वह अपील ठुकरा दी गई तो उन्होंने प्रिवी काउंसिल का दरवाजा खटखटाया, जहां फैसला उनके पक्ष में हो गया। जब ऐतिहासिक विष्णु प्रतिमा वापस गोरखपुर आ गई तो रानी ने अपने पति स्व. राजा कौशल किशोर प्रसाद मल्ल की याद में मंदिर का निर्माण कराया और आठ मई 1922 को भगवान विष्णु की यह प्रतिमा पूरे विधि-विधान के साथ मंदिर में स्थापित की गई।
हर वर्ष होता है विष्णु महायज्ञ
उसी समय विष्णु मंदिर की देखरेख के लिए श्रीविष्णु भगवान कमेटी बनाई गई, जिसके वर्तमान में राय बहादुर अभिनंदन प्रसाद के परिवार के ऋषभ जैन सचिव हैं। 1972 में मंदिर परिसर में मानस उत्थान समिति की ओर से भव्य रामलीला का आयोजन होता है। बीते 12 वर्षो से यहां विष्णु महायज्ञ का भी आयोजन हो रहा है। समिति के अध्यक्ष राधेश्याम श्रीवास्तव के अनुसार इसमें शहर के लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और मंगलकामना के संकल्प के साथ अपनी आहुति देते हैं।
ऐसे पहुंचें यहां
इस रेलवे स्टेशन से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर पर पहुंचने के लिए गोरखपुर में कई साधन मौजूद है। मेडिकल कालेज रोड पर स्थित इस मंदिर के लिए हमेशा ऑटो, टैक्सी और ई रिक्शा मिल जाएगा। शहर से किसी भी हिस्से से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।