UP Lok Sabha Result: गोरखपुर में ग्राउंड रिपोर्ट की अनदेखी और चयन में जल्दी से हुई दुर्दशा, 13 में सात सीटें गंवाने की वजह तलाश रहे भाजपाई
UP Lok Sabha Result भाजपा पदाधिकारियों का मानना है कि पूर्वांचल में चुनाव का अंतिम तीन चरणों में होना भी पार्टी की दुर्दशा की वजह बना। लंबा समय होने के चलते बहुत से कार्यकर्ता अधिसूचना के बाद लंबे समय तक उदासीन रहे और जब चुनाव की तिथि करीब आई तो लंबे समय तक दूर रहने के कारण खुद को उससे जोड़ नहीं सके।
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। एक ओर जहां भाजपा अपने घटक दलों के साथ सरकार बनाने की तैयारी कर रही है, वहीं दूसरी ओर उम्मीद के मुताबिक सीट न मिल पाने वजह तलाशने में भी जुटी है। गोरखपुर क्षेत्र की 13 में से सात सीट गंवाने वाली भाजपा के पदाधिकारी हर उस बिंदु पर मंथन कर रहे हैं, जिसके चलते आधी से अधिक सीटेंं तो हाथ से निकली ही हैं। जिन पर जीत भी मिली है, उसके लिए नाको चने चबाने पड़े हैं। पिछले दो चुनावों में लाखों मतों से जीतने वाले प्रत्याशी हजारों में सिमट कर रह गए हैं।
हार की वजह पर मंथन में हर दिन नए-नए तथ्य सामने आ रहे हैं। पदाधिकारियों अपना नाम तो छिपा रहे हैं लेकिन अपने नजरिये से हार वजह जरूर बता रहे। प्रत्याशी चयन पर तरह-तरह से सवाल उठा रहे हैं।
उनका मानना है कि पार्टी नेतृत्व ने इस बार प्रत्याशी चयन में दो बड़ी गलतियां कीं, जो भाजपा के उसूल के मुताबिक नहीं है। पहली यह कि प्रत्याशियों के चयन के लिए उन्होंने क्षेत्रवार ग्राउंड रिपोर्ट तो मांगी पर उसे चयन का आधार नहीं बनाया।
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ऐसे में जनता ने अपने मन का प्रत्याशी पार्टी की ओर से नहीं पाया। नतीजतन दूसरे दलों के प्रत्याशियों को वोट के जरिये अपनाया। दूसरी बड़ी गलती रही, प्रत्याशियों के नाम की जल्दी घोषणा। आमतौर भाजपा की रणनीति यह होती है कि वोट वह मोदी-योगी ने नाम पर मांगती है, प्रत्याशी नामांकन की अंतिम तिथि तक उतारती है।
इस बार यह मानक टूटा। प्रत्याशियों के नाम की घोषणा काफी पहले हो गई, जिसके चलते चुनाव पार्टी का नहीं प्रत्याशी का हो गया। प्रत्याशी के नाम से इत्तेफाक नहीं रखने वाले लोगों को उन्हें वोट देने को लेकर निर्णय लेने का वक्त मिल गया और इसी में पार्टी का नुकसान हो गया।
चुनाव का लंबा खिंचना भी पड़ा भारी
भाजपा पदाधिकारियों का मानना है कि पूर्वांचल में चुनाव का अंतिम तीन चरणों में होना भी पार्टी की दुर्दशा की वजह बना। लंबा समय होने के चलते बहुत से कार्यकर्ता अधिसूचना के बाद लंबे समय तक उदासीन रहे और जब चुनाव की तिथि करीब आई तो लंबे समय तक दूर रहने के कारण खुद को उससे जोड़ नहीं सके।
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उदासीनता को पदाधिकारी भीषण गर्मी से भी जोड़ रहे। उनका मानना है कि कार्यकर्ता चुनाव प्रचार को लेकर पार्टी का दिशा-निर्देश तो लेते रहे पर गर्मी के चलते उसे धरातल पर उतारना टालते रहे। वोट प्रतिशत का कम होने को भी पार्टी पदाधिकारी जनादेश कम होने की वजह बता रहे हैं।
उनका मानना है कि पार्टी के बहुत से समर्थक अलग-अलग वजहाें से इस विश्वास के साथ वोट डालने नहीं पहुंचे कि भाजपा तो जीत ही रही है। सिर्फ उनके वोट से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। जबकि विपक्षी दलों के समर्थकों ने इसे लेकर इस बार कोई चांस नहीं लिया।
विपक्षी दलों ने आरक्षण को लेकर फैलाया भ्रम
भाजपा पदाधिकारियों का मानना है कि विपक्षी दलों की ओर से आरक्षण को लेकर भ्रम फैलाने के चलते ही भाजपा का वह जनाधार हाथ से निकल गया, जिन्हें मोदी और योगी सरकार ने अपनी कल्याणकारी योजनाओं के केंद्र में रखा था।
विपक्षियों ने यह भ्रम फैला दिया कि अगर भाजपा सत्ता में आएगी तो अनुसूचित जाति का आरक्षण समाप्त कर देगी। इससे अनुसूचित जाति के मतदाताओं का वोट पार्टी प्रत्याशी को उतनी संख्या में नहीं मिला सका, जितनी कि पार्टी को अपनी नीतियों की वजह से उम्मीद थी।
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