UP Election 2022: सिद्धार्थनगर की इस सीट पर दलों के बड़े चेहरों पर घूमती रही सियासत, इस बार भी मैदान में हैं खास प्रत्याशी
भाजपा- कांग्रेस के गढ़ कपिलवस्तू में सपा ने भी सत्ता का स्वाद चखा है। वहीं रनर की भूमिका में बसपा भी रही है लेकिन खाता नहीं खुल सका। सीट आरक्षित होने के बाद एक बार सपा की जीत हुई तो एक बार कमल का फूल भी खिल चुका है।

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। भारत के पड़ोसी देश नेपाल और महराजगंज जिले की सीमा से सटी कपिलवस्तु (सुरक्षित) सीट 2009 के परिसीमन में नाम और स्वरूप बदलकर वर्तमान अस्तित्व में आई है। 1951 में हुए पहले चुनाव में इस सीट का नाम बांसी उत्तरी था। 1957 में हुए दूसरे चुनाव में नाम नौगढ़ कर दिया गया। 2012 के चुनाव में नाम कपिलवस्तु हो गया और यह सीट अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित कर दी गई। यहां दल और चेहरे हावी रहे हैं। आजादी के बाद कांग्रेस के मथुरा प्रसाद पांडेय चार बार तो भाजपा के पूर्व मंत्री धनराज यादव की बादशाहत पांच बार कायम रही है। सपा को दो बार जीत मिल चुकी है तो एक बार लोकदल के भी खाते में यह सीट गई है। सीट आरक्षित होने के बाद एक बार सपा की साइकिल दौड़ी है तो एक बार कमल का फूल भी खिल चुका है। इस बार भी पुराने चेहरे भाजपा विधायक श्याम धनी राही और सपा के पूर्व विधायक विजय कुमार पासवान मैदान में हैं। लड़ाई को बसपा के प्रत्याशी कन्हैया कन्नौजिया और कांग्रेस के देवेंद्र कुमार उर्फ गुड्डू रोचक बना रहे हैं। यह दोनों स्थानीय चेहरे हैं, लेकिन रणक्षेत्र इनके लिए नया है। कन्हैया दो वर्ष से सपा की राजनीति से जुड़े रहे। टिकट नहीं मिला तो हाथी के महावत बन गए। जबकि गुड्डू, मेंहदावल के पूर्व विधायक गेंदा देवी के पुत्र हैं। इन्हें परंपरागत वोटों का सहारा है। सिद्धार्थनगर से ब्रजेश पांडेय की रिपोर्ट।
भाजपा-कांग्रेस के गढ़ में सपा ने भी चखा है सत्ता का स्वाद
वर्ष 1951 में इस सीट का नाम बांसी उत्तरी था। पहला चुनाव कांग्रेस के मथुरा प्रसाद पांडेय ने जीता था। वर्ष 1957 के दूसरे चुनाव में इस सीट की पहचान बदल गई। इसका नाम नौगढ़ हो गया। दूसरे चुनाव में भी कांग्रेस से मथुरा प्रसाद पांडेय इस सीट पर काबिज रहे। 1962 के तीसरे चुनाव में जनसंघ के जगदीश ने कांग्रेस के वर्चस्व को समाप्त कर यह सीट मथुरा से छीन ली थी। 1967 में जनसंघ ने धनराज यादव का प्रत्याशी बनाया। उन्होंने निर्दल प्रत्याशी रामसमुझ को हराकर जीत हासिल की थी। 1969 में यह सीट कांग्रेस के अभिमन्यु के पास चली गई। 1974 में जनसंघ के राम रेखा यादव यहां से जीत दर्ज करने में सफल रहे जिनको 1977 में कांग्रेस के मथुरा ने जनता पार्टी के रामरेखा यादव को पटकनी दी। 1980 में एक बार फिर कांग्रेस के मथुरा प्रसाद पांडेय ने यहां से जीत दर्ज की। उन्होंने भाजपा के धनराज यादव को 14193 मतों से हराया था। कांग्रेस व जनसंघ के वर्चस्व वाली इस सीट पर वर्ष 1989 में बदलाव हुआ, जब लोकदल प्रत्याशी मोहम्मद सईद भ्रमर ने भाजपा के धनराज यादव को पराजित किया था। 1991 के राम लहर में हुए चुनाव में भाजपा के धनराज यादव एक बार फिर जीत का झंडा गाड़ने में कामयाब रहे। 1993 व 1996 में भी धनराज का दबदबा कायम रहा। वर्ष 2002 में सपा के अनिल सिंह काबिज हुए तो बसपा के स्वारथ प्रसाद रनर हो गए और भाजपा के धनराज तीसरे स्थान पर चले गए। इस चुनाव में कांग्रेस के ईश्वर चंद्र शुक्ला चौथे नंबर पर थे। 2007 में कांग्रेस के ईश्वर चंद्र शुक्ला जीत हासिल करने में कामयाब रहे। उन्होंने सपा के अनिल सिंह को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया। भाजपा से धनराज दूसरे पायदान पर रहे। 2012 में जब सीट आरक्षित हुई तो विजय कुमार पासवान की साइकिल दौड़ी। बाहरी होने के कारण भाजपा के श्रीराम चौहान को महत्व कम मिला। मतों का अंतर 26870 रहा। लेकिन वर्ष 2017 के चुनाव में सपा को रिकार्ड 38154 मतों से हराकर भाजपा के श्याम धनी राही को विजय मिल गई।
- कुल मतदाता 450971
- पुरुष मतदाता 241767
- महिला मतदाता 209164
- अन्य 40
वर्ष 2012 का चुनाव
- कुल मतदाता 383741
- मतदान 190196
- मतदान प्रतिशत 49.56
- विजय कुमार पासवान सपा 78344
- श्रीराम चौहान भाजपा 41474
- पल्टू राम आजाद बसपा 32204
- कैलाश प्रसाद कांग्रेस 11554
- अन्य 12 उम्मीदवार 26620
वर्ष 2017 का चुनाव
- कुल मतदाता 430611
- मतदान 235129
- मतदान प्रतिशत 54.60
- श्याम धनी राही भाजपा 114082
- विजय कुमार पासवान सपा 75928
- चंद्र भान बसपा 37166
- नोटा 2603
- अन्य तीन उम्मीदवार-5330
जातिगत आंकड़ा (अनुमानित)
- अनुसूचित जाति- 1 लाख 20 हजार
- मुस्लिम 1 लाख 10 हजार
- ब्राम्हण 70 हजार
- वैश्य 60 हजार
- यादव 28 हजार
- कुर्मी 12 हजार
- कुशवाहा 7 हजार
- कायस्थ 6 हजार
- प्रजापति 7 हजार
- अन्य 30 हजार
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