गोरखपुर ग्रामीण सीट पर मतदाताओं का मिजाज शहरी, जातिगत समीकरणों के बावजूद विकास को दे रहे तरजीह
गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा सीट के मतदाताओं का मिजाज पूरी तरह शहरी है। इस सीट पर वोटों के ध्रुवीकरण के बावजूद त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा का परचम लहराना इस बात का प्रमाण है कि यहां मतदाता जातिगत समीकरण के बावजूद विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखते हैं।

गोरखपुर, जागरण मतदाता। नाम भले ही गोरखपुर ग्रामीण है, लेकिन मतदाताओं का मिजाज पूरी तरह शहरी है। यहां की राजनीतिक आब-ओ-हवा ठीक वैसी ही है, जैसी गोरखपुर शहर की। अभी महज दो चुनाव ही देख पाई इस विधानसभा सीट पर वोटों के ध्रुवीकरण के बावजूद त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा का परचम लहराना इस बात का प्रमाण है कि यहां के मतदाता तमाम जातिगत समीकरणों के बावजूद विकास को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में रखते हैं। गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा सीट का छोटा सा इतिहास आने वाले चुनाव में क्या संकेत दे रहा है, इस पर प्रकाश डालती रजनीश त्रिपाठी की रिपोर्ट....
गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा सीट वर्ष 2009 में तभी अस्तित्व में आ गई थी, जब पहली बार लोकसभा चुनाव में गोरखपुर शहर लोकसभा सीट की पांच विधानसभा सीटों में इसे शामिल किया गया था। इस विधानसभा क्षेत्र में कौड़ीराम, मानीराम, मुंडेरा बाजार विधानसभा सीट की कुछ न्याय पंचायतों के साथ गोरखपुर शहर सीट के बड़े हिस्से को शामिल किया गया। आलम यह हुआ कि पुराने शहर की बड़ी आबादी गोरखपुर ग्रामीण सीट की मतदाता हो गई। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मानीराम से विधायक विजय बहादुर यादव को कमल का फूल थमाकर मैदान में उतारा तो परिसीमन में यादव, मुस्लिम और निषाद वोटों की गणित बैठाकर समाजवादी पार्टी ने जफर अमीन डक्कू को अपना प्रत्याशी बनाया। मुकाबला आमने-सामने का होने पाता, इसके पहले बसपा ने दलित वोट बैंक के साथ रामभुआल निषाद को प्रत्याशी बनाकर ऐसा दांव चल दिया जिसने भाजपा और सपा दोनों के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी। तीनों दल अभी जीत-हार की गणित बैठा ही रहे थे कि भोजपुरी फिल्मों और टीवी सीरियल की चर्चित अभिनेत्री काजल निषाद भी कांग्रेस का झंडा लेकर मैदान में उतर गईं। भाजपा के विजय बहादुर यादव शहरी मतदाताओं के साथ बिरादरी के यादव वोटों को सहेजने में जुट गए तो सपा के जफर मुस्लिम और सपा के बेस यादव वोटों के सहारे जीत की कोशिश में लग गए। इधर रामभुआल निषाद बसपा के बेस दलित वोटों के साथ मैदान में थे तो काजल भी निषाद वोटों में सेंध लगाकर जीत के दावे कर रही थीं। लेकिन पहले चुनाव परिणाम में ही भाजपा के विजय बहादुर यादव की जीत ने यह साबित कर दिया कि इस सीट का नाम ही बस ग्रामीण है मतदाताओं का मिजाज पूरी तरह शहरी है।
पांच साल बाद 2017 के चुनाव में परिस्थितियां ही नहीं प्रत्याशियों के चेहरे और उनकी दलगत निष्ठा भी बदल गई। इस सीट से भाजपा के विधायक रहे विजय बहादुर यादव के सपा में जाने के बाद भाजपा ने बिपिन सिंह को टिकट देकर प्रत्याशी बनाया, जिनके पिता अंबिका सिंह उसी कौड़ीराम सीट से कई बार विधायक रह चुके थे, जिसका कुछ हिस्सा ग्रामीण सीट में शामिल हुआ था। भाजपा से बिपिन सिंह तो सपा से विजय बहादुर ने दावेदारी की ही थी कि इसी बीच निषाद आंदोलन को लेकर हुए कसरवल कांड से सुर्खियों में आए डा. संजय कुमार ने निषाद पार्टी का झंडा उठाकर इस सीट से ताल ठोक दी। बसपा ने अपने सोशल इंजीनियङ्क्षरग के फार्मूले के तहत राजेश पांडेय को प्रत्याशी बनाया। सारे प्रत्याशी जातिगत आंकड़ों और समीकरण के आधार पर जीत के दावे कर रहे थे, लेकिन परिणाम एक बार फिर भाजपा के पक्ष में आया। यादव, मुस्लिम, निषाद और दलित मतदाताओं में भाजपा की जबरदस्त सेंध का नतीजा हुआ कि इस सीट पर दोबारा भगवा लहराया और बिपिन सिंह यहां से विधायक चुने गए।
पिछले चुनाव में जीत के मामूली अंतर के चलते सपा ने 2022 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर पूर्व विधायक विजय बहादुर यादव पर दांव लगाया है तो भाजपा ने विधायक बिपिन सिंह को इस विश्वास के साथ मैदान में उतारा है कि पांच सालों में विकास की आंधी में पूरी तरह शहरी हो चुकी इस सीट के मतदाताओं का साथ भाजपा को मिलेगा। बसपा के दारा निषाद और कांग्रेस से देवेंद्र निषाद भी अपने-अपने समीकरण लेकर मैदान में हैं। इस बार जनता किसके लिए जनार्दन साबित होगी यह तो 10 मार्च के नतीजे ही बताएंगे।
वर्ष 2017
कुल मतदाता 394353
कुल मतदान 235963
जातिगत आंकड़े अनुमानित
यादव : 40000
मुसलमान : 75000
ब्राह्मण : 30000
निषाद : 75000
दलित : 60000
क्षत्रिय : 15000
सैंथवार : 15000
अन्य पिछड़ा : 52000
विपिन सिंह भाजपा 83686
विजय बहादुर यादव सपा 79276
संजय कुमार निषाद 34901
राजेश पांडेय बसपा 30097
वर्ष 2012
कुल मतदाता 340646
कुल मतदान 187979
विजय बहादुर यादव भाजपा 58849
जफर अमीन डक्कू सपा 41864
रामभुआल निषाद बसपा 41338
काजल निषाद कांग्रेस 17636
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