बहुत कम लोग जानते हैं- नूडल्स, पिज्जा और मोमोज कम कर रहे बच्चों की उम्र, एंटीबायोटिक्स देना सही या गलत?
गोरखपुर में बाल रोग विशेषज्ञों के सम्मेलन में, डॉक्टरों ने अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के सेवन से बच्चों के स्वास्थ्य पर होने वाले गंभीर खतरों पर चिंता जताई। विशेषज्ञों ने बताया कि इन खाद्य पदार्थों से बच्चों की जीवन प्रत्याशा में कमी आ रही है और मोटापे जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। डॉक्टरों ने एंटीबायोटिक्स के अंधाधुंध इस्तेमाल और मोबाइल के अत्यधिक उपयोग से होने वाले नुकसान पर भी प्रकाश डाला।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। ''''मेरा बेटा कुछ खाता ही नहीं है। अब पूरे दिन बिना खाए तो रख नहीं सकते इसलिए उसकी जिद के आगे हारकर नूडल्स, ब्रेड, मोमोज, पिज्जा, कुरकुरे या चाकलेट देना ही पड़ता है। हम जानते हैं कि यह ठीक नहीं है लेकिन कर भी क्या सकते हैं।'''' यह ज्यादातर माता-पिता की टेंशन है लेकिन आप नहीं जानते कि आप खुद ही बच्चे की उम्र कम कर रहे हैं।
अल्ट्रा प्राेसेस्ड फूड के सेवन से बच्चों की जीवन प्रत्याशा में 28 फीसद की कमी हुई है। यह चिंताजनक है।
यह कहना है बीआरडी मेडिकल कालेज के शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डा. विकास अग्रवाल का। वह रेजिडेंट रिजार्ट में बाल रोग विशेषज्ञों के 46वें राज्य स्तरीय सम्मेलन यूपीपेडीकान में बच्चों को अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड से होने वाले नुकसान के बारे में चर्चा कर रहे थे।
तीसरे व आखिरी दिन रविवार को डा. विकास अग्रवाल ने कहा कि विश्व में हुए शोध से पता चला है कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के सेवन से बच्चों की जीवन प्रत्याशा में 28 फीसद तक कमी आ रही है। यह पदार्थ बच्चों के पाचन तंत्र को बिगाड़ रहे हैं। मोटापे के चलते गंभीर स्वास्थ्य खतरों को जन्म दे रहे हैं।
झोलाछाप बच्चों को पिला रहे सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक्स
कानपुर के डा. अमितेश यादव ने पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने पर चर्चा की। कहा कि 80 प्रतिशत संक्रमण वायरस की वजह से होते हैं। इनके उपचार में एंटीबायोटिक्स की कोई भूमिका नहीं होती लेकिन झोलाछाप बिना कुछ जाने समझे धड़ल्ले से एंटीबायोटिक्स दवाएं खिला व पिला रहे हैं। इससे बच्चों में संक्रमण होने पर उपचार मुश्किल होने लगा है।
मोबाइल से दूर रखें बच्चों को
बालरोग विशेषज्ञ डा. दिनेश चंद्रा ने कहा कि बच्चों को मोबाइल फोन से दूर रखना ही होगा। ऐसा न होने से उनमें डिजिटल डिपेंडेंसी की समस्या बढ़ती जा रही है। सबसे ज्यादा दिक्कत उन परिवारों में है जहां माता-पिता काम करते हैं। 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे मोबाइल और अन्य उपकरणों पर बहुत अधिक निर्भर हो रहे हैं। इससे उनके मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। बोलने की क्षमता पर भी असर पड़ रहा है। नवजात रोग विशेषज्ञ डा. अमित उपाध्याय ने भी अपने विचार रखे
यह है अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड वे खाद्य पदार्थ हैं जिन्हें औद्योगिक तरीकों से बनाया जाता है। इनमें शर्करा, नमक, वसा और कृत्रिम रंग आदि की मात्रा अधिक होती है। यह खाद्य पदार्थ अक्सर स्वाद, रंग, और बनावट को बेहतर बनाने के लिए बनाए जाते हैं। इससे उनकी खुद की लाइफ लंबी हो जाती है और वे स्वादिष्ट लगते हैं।
इनका अधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है और मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है। चिप्स, फ्लेवर्ड नमकीन, चाकलेट बार, केक, बिस्किट, कैंडी, इंस्टेंट नूडल्स, फ्रोजन पिज्जा, फ्रोजन टिक्की, कोल्ड ड्रिंक्स, एनर्जी ड्रिंक्स, पैकेट वाले जूस, फ्लेवर्ड डेयरी उत्पाद, रेडी-टू-ईट मील और कुछ प्रकार के डिब्बाबंद भोजन का प्रयोग खतरनाक होता है।
इससे मोटापा, टाइप दो मधुमेह, हृदय रोग और कुछ प्रकार के कैंसर जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इन खाद्य पदार्थों में मौजूद कृत्रिम रसायन आंत के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। स्वादिष्ट और कृत्रिम स्वाद के कारण इनकी लत लग सकती है। जितना हो सके घर का बना खाना खाएं।
रोगों पर खुलकर चर्चा करें पीजी छात्र
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव, राज्यसभा सदस्य व वरिष्ठ शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डा. राधा मोहन दास अग्रवाल ने कहा कि परास्नातक मेडिकल छात्रों को रोगों पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए। इससे उनका सर्वांगीण विकास होता है। डा. अग्रवाल रेजिडेंट रिजार्ट में आयोजित बाल रोग विशेषज्ञों के सम्मेलन के आखिरी दिन बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे। कहा कि रोगों पर हुई वाद-विवाद प्रतियोगिता से मेडिकल छात्रों की समझ और विकसित होगी। इसका लाभ उपचार में मिलेगा। यह नई पहल है। उन्होंने स्मारिका का विमोचन किया।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।