मोहर्रम पर इस बार आवाम के लिए नहीं खुलेंगे इमामबाड़ा के बुलंद दरवाजे Gorakhpur News
कोरोना संक्रमण के चलते इस वर्ष मोहर्रम पर मियां साहब इमामबाड़ा के बुलंद दरवाजे नहीं खुलेंगे। हमेशा बंद रहने वाले यह दरवाजे माहर्रम के समय दस दिन के लि ...और पढ़ें

गोरखपुर, जेएनएन। इस बार मोहर्रम में बहुत कुछ बदला-बदला सा होगा। न शाही जुलूस निकलेगा और न लाइन की ताजियां, अखाड़ों का करतब और ढोल-ताशे की आवाज कानों में गूजेंगी। कोरोना संक्रमण के बढ़ते हुए मामलों को देखते हुए इमामबाड़ा इस्टेट प्रबंधन ने मोहर्रम के दौरान तीनों बुलंद दरवाजे आवाम के लिए न खोलने का निर्णय लिया है। इमामबाड़े के अंदर न ताे मियां साहब का रवायती गश्त निकलेगा और न ही सोने-चांदी की ताजिया जियारत के लिए बाहर निकाली जाएगी।
ऐतिहासिक मियां साहब इमामबाड़ा की होती है भव्य सजावट
कोरोना वायरस का असर सभी मजहबों की धार्मिक गतिविधियों व त्योहारों पर भी पड़ा है। शनिवार को मोहर्रम के साथ-साथ नया इस्लामी साल भी शुरू हो जाएगा। मोहर्रम में हजरत इमाम हुसैन व उनके साथियों की कुर्बानी को याद करने का तरीका शहर में अनोखा व निराला है। रवायती व शाही जुलूस, मेला, लाइन की ताजिया का जुलूस, अखाड़ों का करतब, गेहूं-सोने-चांदी की ताजियां, फसाहत की साड़नी, ढोल-ताशे आदि के जरिए मुहर्रम के दस दिन शहर में खूब चहल पहल रहती है। इन सबके बीच मियां बाजार स्थित ऐतिहासिक मियां साहब इमामबाड़े की रौनक देखते ही बनती है। प्रशासन की तरफ से कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर शाही जुलूस, ताजिया जुलूस, मेला, सार्वजनिक व सामूहिक कार्यक्रमों पर रोक है।
साल भर बंद रहते हैं, मोहर्रम में दस दिन के लिए खुलते हैं तीन दरवाजे
इसका असर इमामबाड़ा इस्टेट के कार्यक्रमों पर भी पड़ा है। मोहर्रम शुरू होते ही साल भर बंद रहने वाले तीन दरवाजे दस दिनों के लिए अवाम के लिए खोल दिए जाते हैं। मेला लगने की वजह से परिसर में खूब चहल-पहल होती है, लेकिन इस बार दरवाजे नहीं खुलेंगे। हाथी को आने-जाने के लिए करीब तीन सौ साल पहले दरवाजे का निर्माण कराया गया था। इस बार अकीदतमंद सोने-चांदी के ताजिये की जियारत नहीं कर सकेंगे। हर साल माेहर्रम के दौरान ताजिये काे बाहर निकाला जाता था और आसपास के जिलों से भी बड़ी संख्या में अकीदत जियारत करने आते थे।
सामाजिक एकता व अकीदत का मरकज
मियां बाजार स्थित मियां साहब इमामबाड़ा इस्टेट की इमारत इतिहास का जीवंत दस्तावेज है। यह इमामबाड़ा सामाजिक एकता व अकीदत का मरकज भी है। यह हिन्दुस्तान में सुन्नियों का सबसे बड़ा इमामबाड़ा है। इमामबाड़ा के गेट पर अवध का राजशाही चिन्ह भी बना हुआ है। करीब तीन सौ सालों से हजरत सैयद रौशन अली शाह की ओर से जलायी धूनी आज भी जल रही है।

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