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    साहित्य की विस्फोटक प्रतिभा आचार्य रामचंद्र शुक्ल अद्वितीय

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 04 Oct 2020 06:36 AM (IST)

    साहित्य में कला कला के लिए वाले सिद्धांत का प्रतिवाद किया और कला जीवन के लिए सूत्र का निर्धारण करके लोकमंगल और लोकरंजन पदों को अविष्कृत किया।

    साहित्य की विस्फोटक प्रतिभा आचार्य रामचंद्र शुक्ल अद्वितीय

    बस्ती : जेएनएन। 19 वीं शताब्दी के परतंत्र भारत में जिन विभूतियों ने देशकाल और समाज को गहरा प्रभावित किया,उनमें हिदी भाषा और साहित्य की विस्फोटक प्रतिभा आचार्य रामचंद्र शुक्ल अद्वितीय है। मात्र 57 साल की आयु में कीर्ति शेष हो जाने वाले आचार्य शुक्ल जन्म 4 अक्टूबर 1884 को जनपद बस्ती के अगौना नामक गांव में हुआ। जहां से उठकर वे काशी हिदू विश्वविद्यालय वाराणसी के विभागाध्यक्ष तक पहुंचे।

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    हिदी साहित्य की आलोचना के मेरूदंड और मौलिक इतिहासकार शुक्ल जी लेखक, अनुवादक, संपादक, कवि, निबंधकार एवं प्रखर चितक मनीषी थे। हिदी शब्द सागर का संपादन और रेडिकल आफ यूनिवर्स का अनुवाद विश्व प्रपंच उनके भाषा एवं चितन का विरल उदाहरण है। उनकी भूमिकाएं बेजोड़ है। आचार्य शुक्ल कोरे लेखक नहीं थे। समाज में लेखक की आत्यंतिक भूमिका का सजग निर्वाह करते हुए उन्होंने कारगर हस्तक्षेप करके ब्रिटिश सत्ता और साम्राज्य का कड़ा विरोध किया। 1920 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन के तारतम्य में आचार्य शुक्ल ने पटना के अंग्रेजी अखबार एक्सप्रेस में 1921 में नान कोआपरेशन एंड मार्केंटाइल क्लासेज लेख लिखा। जो हाल ही में पारित कृषि एवं कृषक संबंधित बिल के सापेक्ष लेखक की भविष्य दृष्टि से अचंभित कर देता है।

    रामचंद्र शुक्ल महामना मालवीय के अत्यंत प्रियजनों में थे और मालवीय जी के घर पर ही असहयोग आंदोलन के संदर्भ में शुक्ल ने गांधी जी के समक्ष अपना पक्ष रखा था। उन्होंने साहित्य में कला, कला के लिए वाले सिद्धांत का प्रतिवाद किया और कला, जीवन के लिए सूत्र का निर्धारण करके लोकमंगल और लोकरंजन पदों को अविष्कृत किया। जिससे समाज और साहित्य के पूरक संबंधों को समझा जा सके। आज जब भाषा निरंतर विकृत हो रही है और समाज साहित्य विमुख तब आचार्य रामचंद्र शुक्ल को उनके जन्मदिन पर याद करना अपनी स्मृति परंपरा और पुरखों के उस अवदान को याद करना है जिसके बूते कोई समाज सभ्य कहलाता है। जिस भारतेंदु हरिश्चंद्र ने बस्ती जनपद को उजाड़ कहा था उसी जनपद के मूर्धन्य और सर्वमान्य आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने साहित्येतिहास में भारतेंदु युग की प्रतिष्ठा की। दुनिया की किसी भी भाषा के साहित्यालोचन के समकक्ष हिदी का विलक्षण प्रतिमान बढ़ने वाले आचार्य रामचंद्र शुक्ल जनपद बस्ती की उर्वर चेतना की अविस्मरणीय धरोहर है। ऐसे युग पुरुष आचार्य रामचंद्र शुक्ल को विनम्र श्रद्धांजलि।

    अष्टभुजा शुक्ल,वरिष्ठ साहित्यकार