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    गूंजता रहा शिव का जयघोष, मंदिर में दर्शन कर मांगी मनोकामनाएं

    By Rahul SrivastavaEdited By:
    Updated: Mon, 09 Aug 2021 04:55 PM (IST)

    शिव मंदिरों में आस्था उमड़ पड़ी। बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे और भोले बाबा का जलाभिषेक कर मंगल कामना की। सुबह से लेकर दोपहर तक जलाभिषेक व रुद्राभिषेक होता रहा। वैदिक मंत्रोच्चार व जयघोष से मंदिर परिसर गुंजायमान था।

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    शिव मंदिरों में उमड़ पड़े श्रद्धालु। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

    गोरखपुर, जागरण संवाददाता : सावन के तीसरे सोमवार को शिव मंदिरों में आस्था उमड़ पड़ी। बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे और भोले बाबा का जलाभिषेक कर मंगल कामना की। सुबह से लेकर दोपहर तक जलाभिषेक व रुद्राभिषेक होता रहा। वैदिक मंत्रोच्चार व जयघोष से मंदिर परिसर गुंजायमान था। श्रद्धालुओं ने महादेव झारखंडी मंदिर व मुक्तेश्वरनाथ मंदिर सहित अन्य शिव मंदिरों में जाकर शिव बाबा का दूध, जल से अभिषेक कर अपनी आस्था व श्रद्धा अर्पित की। लोगों ने मंदिरों या घरों में पुरोहित की सहायता से रुद्राभिषेक भी कराया।

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    भोर से ही मंदिरों में पहुंचने लगे थे श्रद्धालु

    महादेव झारखंडी मंदिर व मुक्तेश्वरनाथ मंदिर सहित लगभग सभी शिव मंदिरों पर श्रद्धालु भोर से ही पहुंचने लगे थे। मंदिर जाने वाले रास्ते श्रद्धालुओं द्वारा किए जा रहे 'हर हर महादेव' के जयघोष से गुंजायमान थे। सुबह चार बजे के बाद सभी मंदिरों के कपाट खुल गए थे। श्रद्धालुओं ने मंदिर पहुंचकर जयघोष किया और शिव बाबा को भांग-धतूर, बेलपत्र, श्वेत मंदार पुष्प, गन्ना आदि अर्पित करने के बाद दूध व जल से अभिषेक किया। पूजन का सिलसिला सुबह 11 बजे तक चलता रहा। हालांकि देर शाम तक मंदिर में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहा।

    भगवान शिव सृष्टि के स्राेत

    अघाेर पीठ के संस्थापक अवधूत छबीलेराम ने कहा कि भगवान शिव सृष्टि के स्रोत हैं। उन्हीं से सृष्टि निकलती है और अंत में उन्हीं में उसका लय हो जाता है। शिवलिंग शिव के इसी गुण का प्रतीक है। प्रकृति व पुरुष का प्रतीक शिवलिंग सृष्टि की प्रक्रिया को दर्शाता है। सृष्टि के संचालन के लिए पुरुष व प्रकृति या ब्रह्म व माया या स्त्री व पुरुष दो का होना जरूरी है। द्वंद्व संसार का नियम है, द्वंद्व में घर्षण है और इसी से सृष्टि की उत्पत्ति व वृद्धि संभव है। पुरुष व प्रकृति सिर्फ बाहर ही नहीं, वह हमारे भीतर भी है। अपने भीतर के पुरुष व प्रकृति का संयोग बैठाना ही साधना, जप व पूजा का कुल अर्थ है।

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