डेढ़ सौ साल से अधिक पुराना है बस्ती जिले का इतिहास, तमाम विरासतों को अपने आंचल में समेटी है यहां का माटी
बस्ती जिले को 6 मई 1865 को गोरखपुर से अलग होकर नया जिला मुख्यालय बनाया गया। इस जिले ने तमाम ऐतिहासिक विरासतों को अपने आंचल में छुपा रखा है। यहां के प्रमुख स्थानों में अमोढ़ा छावनी बाजार संतरविदास वन विहार इत्यादि जगह है।

बस्ती, हरिशंकर पाण्डेय। प्राचीन काल में बस्ती को भगवान राम के गुरु वशिष्ठ ऋषि के नाम पर वाशिष्ठी के नाम से जाना जाता रहा, कहा जाता है कि उनका यहां आश्रम था। अंग्रेजों के जमाने में जब यह जिला बना तो निर्जन, वन और झाड़ियों से घिरा था। लोगों के प्रयास से यह धीरे-धीरे बसने योग्य बन गया। वर्तमान नाम राजाकल्हण द्वारा चयनित किया गया था। यह बात 16वीं सदी की है। 1801 में यह तहसील मुख्यालय बना और 6 मई 1865 को गोरखपुर से अलग होकर नया जिला मुख्यालय बनाया गया।
अयोध्या से सटा यह जिला प्राचीन काल में कोशल देश का हिस्सा था। रामचंद्र राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे जिनकी महिमा कौशल देश में फैली हुई थी जिन्हें एक आदर्श वैध राज्य, लौकिक राम राज्य की स्थापना का श्रेय जाता है। परंपरा के अनुसार राम के बड़े बेटे कुश कौशल के ¨सहासन पर बैठे जबकि छोटे लव को राज्य के उत्तरी भाग का शासक बनाया गया जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी। इक्ष्वाकु से 93वीं पीढ़ी और राम से 30 वीं पीढ़ी में बृहद्वल था। यह इक्ष्वाकु शासन के अंतिम प्रसिद्ध राजा थे,जो महाभारत युद्ध में चक्रव्यूह में मारे गए थे। भगवान बुद्ध के काल में भी यह क्षेत्र शेष भारत से अछूता न रहा। कोशल के राजा चंड प्रद्योत के समय यह क्षेत्र कोशल के अधीन रहा। गुप्त काल के अवसान के समय समय यह क्षेत्र कन्नौज के मौखरी वंश के अधीन हो गया।
9वीं शताब्दी में यह क्षेत्र फिर पुन: गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट के अधीन हो गया। 1225 में इल्तुतमिश का बड़ा बेटा नासिर उद दीन महमूद अवध का गवर्नर बन गया और इसने भार लोगों के सभी प्रतिरोधों को पूरी तरह कुचल डाला। 1479 में बस्ती और आसपास के जिले जौनपुर राज्य के शासक ख्वाजा जहान के उत्तराधिकारियों के नियंत्रण में था। बहलूल खान लोधी अपने भतीजे काला पहाड़ को इस क्षेत्र का शासन दे दिया। उस समय महात्मा कबीर,प्रसिद्ध कवि और दार्शनिक इस जिले के मगहर में रहते थे।
अकबर और उनके उत्तराधिकारी के शासनकाल के दौरान बस्ती अवध सूबे गोरखपुर सरकार का एक हिस्सा बना हुआ था। 1680 में मुगलकाल के दौरान औरंगजेब ले एक दूत काजी खलील उर रहमान को गोरखपुर भेजा था। उसने ही गोरखपुर से सटे सरदारों को राजस्व भुगतान करने को मजबूर किया था। अमोढ़ा और नगर के राजा को जिन्होंने हाल ही में सत्ता हासिल की थी राजस्व का भुगतान करने को तैयार हो गए। रहमान मगहर गया, यहां उसने चौकी बनाई और राप्ती के तट पर बने बांसी राजा के किले को कब्जा कर लिया। नवनिर्मित जिला संतकबीरनगर का मुख्यालय खलीलाबाद शहर का नाम खलील उर रहमान से पड़ा,जिसका कब्र मगहर में मौजूद है। उसी समय गोरखपुर से अयोध्या सड़क का निर्माण हुआ था।
एक महान और दूरगामी परिवर्तन तब आया जब 9 सितंबर 1772 में सआदत खान को अवध सूबे का राज्यपाल नियुक्त किया गया जिसमें गोरखपुर का फौजदारी भी था। उस समय बांसी और रसूलपुर पर सर्नेट राजा का,बिनायकपुर पर बुटवल के चौहान का,बस्ती पर कल्हण शासक का,अमोढ़ा पर सूर्यवंश का नगर पर गौतम का,महुली पर सूर्यवंश का शासन था। अकेले मगहर पर नवाब का शासन था। मुस्लिम शासन काल में यह क्षेत्र कभी जौनपुर तो कभी अवध के नवाबों के हाथ रहा। अंग्रेजों ने मुस्लिमों से जब यह इलाका प्राप्त किया तो गोरखपुर को अपना मुख्यालय बनाया।
शासन सत्ता सुचारू रूप से चलाने और राजस्व वसूली के लिए अंग्रेजों ने 1865 में इस क्षेत्र को गोरखपुर से अलग किया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास छावनी के अमोढ़ा में आज भी बिखरा पड़ा है जहां राजा जालिम ¨सह व महारानी तलाश कुंवरि की शौर्य गाथा गर्व से सुनी और सुनाई जाती है। महात्मा गांधी के आंदोलन से लगायत देश के आजाद होने तक यह क्षेत्र सदैव सक्रिय रहा।
प्रमुख स्थल: अमोढ़ा, छावनी बाजार, संतरविदास वन विहार, भदेश्वरनाथ मंदिर, मखौड़ा, श्रृंगीनारी, गनेशपुर, धिरौली बाबू, केवाड़ी मुस्तहकम, चंदो ताल, बराह, अगौना, बेहिल नाथ मंदिर,कड़र मंदिर,महादेवा मंदिर ।
यातायात: बस्ती अच्छी तरह से रेल एवं सड़क मार्ग से देश एवं प्रदेश के प्रमुख शहरों से जुड़ा है। यहां से हावड़ा, दिल्ली, मुंबई, बंगलुरू,जम्मू के साथ ही कई राज्यों के लिए रेलगाड़ी चलती है। इसके अलावा लखनऊ, दिल्ली एवं मुंबई के साथ ही प्रदेश के अन्य नगरों के लिए प्रतिदन बसें चलती हैं।
भौगोलिक संरचना: जिले का आकार एक आयत की भांति है। उत्तर में आमी ,दक्षिण में घाघरा नदी का प्रवाह है। जल संचय के लिए कई नदियां एवं ताल-पोखरे हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।