सिसवा विधानसभा क्षेत्र : 11 बार रहा सिसवा स्टेट का कब्जा, इस बार कांटे की टक्कर
UP election 2022 गोरखपुर से सटे महराजगंज जिले की सिसवा विधान सभा सीट हमेशा से सिसवा स्टेट के प्रभाव में रही है। यह सीट 11 बार राजघराने के कब्जे में रही है लेकिन इस बार यहां कड़ी टक्कर है।

गोरखपुर, जेएनएन। जहां सियासत हमेशा रियासत के इर्द-गिर्द घूमती रही, वह सिसवा विधानसभा क्षेत्र इस बार बदले अंदाज में उतरेगा। 1962 के बाद पहली बार ऐसा होगा कि सिसवा की सियासत में रियासत नहीं होगी। वर्ष 1951 से लेकर 1962 तक तिलपुर और उसके बाद सिसवा के नाम से पहचानी गई इस सीट पर 11 बार सिसवा स्टेट का कब्जा रहा। अगर दलगत राजनीति की बात करें तो यहां पर नौ बार कांग्रेस जीती है तो चार बार कमल भी खिला है। साइकिल भी एक बार दौड़ी है तो हाथी भी एक बार यहां मदमस्त चाल में चला है। यहां जनता चुनावी लहर में बहती रही है तो स्टेट घराना भी दल बदलता रहा है। महराजगंज से विश्वदीपक त्रिपाठी की रिपोर्ट।
नौ बार कांग्रेस तो चार बार भाजपा प्रत्याशी को मिली है जीत
बिहार व कुशीनगर की सीमा से सटे इस विधानसभा क्षेत्र में 1951 व 1957 के बाद हर चुनाव में स्टेट का दखल रहा। 1962 में यादवेंद्र सिंह उर्फ लल्लू बाबू कांग्रेस के साथ सियासी सफर पर निकले तो 1974 तक नहीं रुके। आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में जनता पार्टी की लहर बही तो जनता पार्टी से शारदा प्रसाद जायसवाल ने 29961 मत पाकर कांग्रेस के यादवेंद्र ङ्क्षसह को 865 मतों के मामूली अंतर से हरा दिया। 1980 के चुनाव में यादवेंद्र ने वापसी की और भाजपा प्रत्याशी शारदा प्रसाद जायसवाल को 20313 मतों से हरा दिया। इस बार वह कमलापति त्रिपाठी के मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बने और विधानसभा उपाध्यक्ष भी।
यादवेंद्र ङ्क्षसह के निधन के बाद उनके पुत्र शिवेंद्र ङ्क्षसह ने सियासी विरासत संभाली और 1983 में हुए उपचुनाव में जीत हासिल की। 1985 के चुनावी समर में भी उनका विजय रथ चला, लेकिन 1989 में यह सीट जनता दल की लहर में बह गई। गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे जगदीश लाल ने कांग्रेस के शिवेंद्र ङ्क्षसह को 8742 मतों से हराया।
समीकरण के साथ घराने ने दल भी बदला
1991 के चुनाव में शिवेंद्र सिंह ने राम लहर के बाद भी वापसी करते हुए भाजपा के उदयभान मल्ल को 9013 मतों से हराया। 1993 में समीकरण बदला और शारदा प्रसाद पर जताए गए भरोसे ने शिवेंद्र सिंह को 7616 मतों से पराजित कर कमल खिला दिया। 1996 में समीकरण के साथ घराने ने दल भी बदला। कांग्रेस से वर्षों पुराना नाता तोड़ शिवेंद्र सिंह हाथी पर सवार होकर चुनावी समर में आए और भाजपा के केदार प्रसाद को 19295 मतों से हराकर बसपा को पहली जीत दिलाई। 2002 में शिवेंद्र सिंह भाजपा में शामिल हो गए और सपा के अवनींद्र नाथ द्विवेदी को 7628 मतों से पराजित किया। 2007 में नजारा फिर बदला। अवनींद्र भाजपाई हो गए तो शिवेंद्र साइकिल सवार। अवनींद्र ने सपा के शिवेंद्र सिंह को 7371 मतों से हरा दिया। 2012 में साइकिल सवार शिवेंद्र सिंह ने डा. रमापति राम त्रिपाठी को 16842 मतों से हराकर कमल खिलाने से रोका, लेकिन 2017 की लहर में प्रेमसागर पटेल ने भगवा लहर में कमल खिला दिया। वह भी रिकार्ड 68186 मतों के बड़े अंतर से।
2022 के चुनावी समर में भाजपा ने प्रेमसागर पटेल पर ही भरोसा जताया है तो सपा ने आवास विकास परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष सुशील कुमार टिबड़ेवाल पर। शिवेंद्र सिंह भाजपा में शामिल होकर टिकट की आस कर रहे थे, लेकिन न मिलने पर निर्दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे। बाद में उन्होंने नाम वापसी कर ली। बसपा ने धीरेंद्र प्रताप सिंह को उतारा है तो करीब चार दशक से जीत के लिए जिद्दोजहद कर रही कांग्रेस ने राजू कुमार गुप्ता को। सिसवा रियासत के पहली बार मैदान में न होने से लड़ाई दिलचस्प हो गई है और सभी दल अपने हिसाब से समीकरण बैठा रहे हैैं।
सिसवा विधान सभा एक नजर में
कुल मतदाता 388662
पुरुष मतदाता 205741
महिला मतदाता 182908
2012
कुल मतदाता 344924
मतदान 217303
शिवेंद्र ङ्क्षसह उर्फ शिव बाबू 54591
डा. रमापति राम त्रिपाठी 37749
राकेश कुमार उर्फ ई. आरके मिश्र 36890
अन्य-88,073
2017
कुल मतदाता 366103
मतदान 239383
प्रेम सागर पटेल 122884
शिवेंद्र सिंह 54698
राघवेंद्र प्रताप सिंह 46185
अन्य-15599।
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