शचींद्रनाथ सान्याल का गोरखपुर से था गहरा नाता, 1942 में यहीं ली अंतिम सांस Gorakhpur News
शहीद भगत सिंह के गुरु शचींद्रनाथ सान्याल का गोरखपुर से गहरा नाता था। उनका अंतिम समय यहीं गुजरा। दाउदपुर स्थित काली मंदिर के पास वह अपने भाई रवींद्र सान्याल के यहां रहते थे। टीबी की बीमारी से ग्रसित होने के बाद कोलकाता की जेल से उन्हें रिहा कर दिया गया।

गोरखपुर, जेएनएन। अमर शहीद भगत सिंह के गुरु शचींद्रनाथ सान्याल का गोरखपुर से गहरा नाता था। उनका अंतिम समय यहीं गुजरा। दाउदपुर स्थित काली मंदिर के पास वह अपने भाई रवींद्र सान्याल के यहां रहते थे। टीबी की बीमारी से ग्रसित होने के बाद कोलकाता की जेल से उन्हें रिहा कर दिया गया। वह गोरखपुर आ गए। 50 वर्ष की उम्र में सात फरवरी 1942 को यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका जन्म वाराणसी में तीन जून 1893 को हुआ था।
पत्नी ने दी चेतावनी तब रिहा किए गए
कोलकाता जेल में वह कैद थे। उसी समय वह टीबी से ग्रसित हो गए। उनकी पत्नी उन्हें देखने गई थीं। उनके सामने ही उन्होंने खून की उल्टी करनी शुरू की। यह देख पत्नी ने अंग्रेजों को अंजाम भुगतने की चेतावनी दे डाली। इसके बाद डाक्टरों की सलाह पर उन्हें जेल से रिहा किया गया।
गोरखपुर में उनकी स्मृति न होने का मलाल
बंगाली समिति को गोरखपुर में शचींद्रनाथ सान्याल की स्मृति न होने का मलाल है। समिति के पूर्व अध्यक्ष अमरनाथ चटर्जी बताते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में उनका अभूतपूर्व योगदान था। उनकी स्मृति में किसी चौराहा, सड़क का नाम होना चाहिए। उनकी एक मूर्ति भी स्थापित होनी चाहिए। दाउदपुर की जिस गली में वह रहते थे। उस गली का नामकरण उनके नाम पर करने की मांग उठी थी। लेकिन कुछ हुआ नहीं।
बेटे-बेटी ने ली गोरखपुर में शिक्षा
स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेताओं में शुमार शचींद्रनाथ सान्याल का अधिकांश जीवन जेल में ही बीता। उनके बेटे रंजीत व बेटी अंजलि की परवरिश उनके भाई रवींद्र सान्याल ने की। वे दोनों यहीं पले-बढ़े और पढ़े। रवींद्र सेंट एंड्रयूज कालेज में शिक्षक थे। अब उनके परिवार का यहां कोई नहीं रहता है। उनके भाई की मकान के बगल में उनकी एक रिश्तेदार रहती हैं।
शचींद्रनाथ सान्याल के बारे में जितना कहा जाए, कम होगा। उन्होंने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उनके लिए परिवार के पोषण से ज्यादा महत्वपूर्ण राष्ट्र की स्वतंत्रता थी। अपने तरीके से वह आजीवन अंग्रेजों से मोर्चा लेते रहे। जिस गली में वह रहते थे, उसका नामकरण उनके नाम पर होना चाहिए। - डा. लीना लाहिड़ी, शचींद्रनाथ सान्याल की रिश्तेदार
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।