चौरी चौरा कांड : एक ही दिन नहीं, अलग-अलग तिथियों पर हुई थी सत्याग्रहियों को फांसी
Chaurichaura Kand चौरी चौरा घटना से जुड़े दस्तावेजों के संदर्भ के आधार पर सुभाष चंद्र कुशवाहा ने अपनी किताब चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता आंदोलन में सभी सत्याग्रहियों की फांसी की तिथि को अलग-अलग बताया है। किसी भी सत्याग्रही को गोरखपुर में फांसी नहीं दी गई थी।

गोरखपुर, उमेश पाठक। चौरी चौरा विद्रोह में फांसी की सजा पाए 19 सत्याग्रहियों को फांसी देने की तिथि को लेकर काफी भ्रम की स्थिति है। सत्याग्रहियों के सम्मान में बने शहीद स्मारक पर दिया गया विवरण हो या प्रदेश सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की ओर से प्रकाशित पुस्तक, दोनों जगह सत्याग्रहियों को फांसी देने की तिथि दो जुलाई 1923 ही दर्ज है। जबकि इस केस से जुड़े दस्तावेजों में फांसी दिए जाने का दिन अलग-अलग है। सभी सत्याग्रहियों को दो जुलाई से 11 जुलाई 1923 के बीच अलग-अलग जिलों के कारागार में फांसी दी गई थी।
शहीद स्मारक हो या सरकार की ओर से प्रकाशित किताब, दो जुलाई 1923 ही दर्ज है फांसी की तिथि
चौरी चौरा की घटना को 100 साल पूरे होने वाले हैं। प्रदेश सरकार इसे शताब्दी महोत्सव के रूप में मनाने की तैयारी में जुटी है। इस महोत्सव के बहाने तथ्यों की गलतियों को भी सुधारने की कोशिश होगी। चौरी चौरा शहीद स्मारक पर जाने वाला व्यक्ति यदि वहां दर्ज तथ्य देखेगा तो सभी सत्याग्रहियों को फांसी पर लटकाए जाने की तिथि दो जुलाई 1923 ही नजर आएगी। चौरी चौरा घटना से जुड़े दस्तावेजों के संदर्भ के आधार पर सुभाष चंद्र कुशवाहा ने अपनी किताब 'चौरी चौरा : विद्रोह और स्वाधीनता आंदोलन' में सभी सत्याग्रहियों की फांसी की तिथि को अलग-अलग बताया है। किसी भी सत्याग्रही को गोरखपुर में फांसी नहीं दी गई थी। सुभाष कहते हैं कि अभी इस घटना से जुड़े तथ्यों को दुरुस्त करने की जरूरत है। फांसी से जुड़े दस्तावेज अलग-अलग आर्काइव में मौजूद हैं, जिन्हें कोई भी देख सकता है। स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास की इस अत्यंत महत्वपूर्ण घटना के बारे में सभी को सही जानकारी होनी चाहिए।
कब किस सत्याग्रही को हुई फांसी
सत्याग्रही : फांसी की तिथि स्थान
रघुबीर सुनार : दो जुलाई 1923 कानपुर कारागार
संपत अहीर : दो जुलाई 1923 इटावा कारागार
श्याम सुंदर मिसिर : दो जुलाई 1923 इटावा कारागार
अब्दुल्ला: तीन जुलाई 1923 बाराबंकी कारागार
लाल मुहम्मद सेन : तीन जुलाई 1923 रायबरेली कारागार
लवटू कोहार : तीन जुलाई 1923 रायबरेली कारागार
मेघू उर्फ लाल बिहारी: चार जुलाई 1923 आगरा कारागार
नजर अली : चार जुलाई 1923 फतेहगढ़ कारागार
भगवान अहीर : चार जुलाई 1923 अलीगढ़ कारागार
रामरूप बरई : चार जुलाई 1923 उन्नाव कारागार
महादेव : चार जुलाई 1923 बरेली कारागार
कालीचरन : चार जुलाई 1923 गाजीपुर कारागार
बिकरम अहीर : पांच जुलाई 1923 मेरठ कारागार
रुदली केवट : पांच जुलाई 1923 प्रतापगढ़ कारागार
संपत : नौ जुलाई 1923 झांसी कारागार
सहदेव : नौ जुलाई 1923 झांसी कारागार
दुधई भर : 11 जुलाई 1923 जौनपुर कारागार
नोट : रामलगन एवं सीताराम की फांसी किस तिथि को हुई, यह स्पष्ट नहीं हो सका। (स्रोत : चौरी चौरा विद्रोह पर लिखी किताब 'चौरी चौरा : विद्रोह और स्वाधीनता आंदोलन')
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।