Rahul Sankrityayan birth anniversary: घुमक्कड़ी का भूत चढ़ा तो गोरखपुर पहुंचे थे राहुल सांकृत्यायन
Rahul Sankrityayan birth anniversary 2022 उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में जन्मे केदारनाथ नाथ पांडेय 1930 में श्रीलंका में बौद्ध धर्म से दीक्षित होने के बाद रामोदर साधु से राहुल और फिर सांकृत्य गोत्र के चलते राहुल सांकृत्यायन हो गए। सांस्कृत्यायन गोरखपुर भी आए थे।

गोरखपुर। 'सैर कर दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहां? जिन्दगी गर कुछ रही, तो नौजवानी फिर कहां' हिंदी साहित्य के महापंडित राहुल सांकृत्यायन की ये पंक्तियां उनके घुमक्कड़ी जीवन दर्शन का सबसे उम्दा प्रमाण हैं। 36 भाषाओं के ज्ञाता राहुल सांकृत्यायन ने उस दौर में देश-दुनिया को नाप डाला, जब एक गांव से दूसरे गांव जाना भी लोगों के लिए दुरूह था। इस सफर में उनका एक पड़ाव गोरखपुर भी रहा, जहां उन्होंने अपना परिचय 'रमता साधु' के तौर पर दिया था। अपने सांकृत्य गोत्र के मूल स्थान मलांव में डेरा डालकर उन्होंने न केवल सरयूपारीण ब्राह्मणों के गोत्र और प्रवर को जाना बल्कि सांकृत्य गोत्र की वंशावली से भी सभी को परिचित कराया।
सरयूपारीण गोत्र, प्रवर और सांकृत्य गोत्र के उद्गम स्थल मलांव की वंशावली का किया अध्ययन
आजमगढ़ के पंदहा में 09 अप्रैल 1893 को जन्मे केदारनाथ नाथ पांडेय 1930 में श्रीलंका में बौद्ध धर्म से दीक्षित होने के बाद 'रामोदर साधु' से राहुल और फिर सांकृत्य गोत्र के चलते राहुल सांकृत्यायन हो गए। अपने जीवनकाल में कई हजार मील का सफर तय करने वाले राहुल सांकृत्यायन को 'मेरी जीवन यात्रा' लिखने की जरूरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि वह बराबर यह महसूस करते थे कि 'ऐसे रास्तों से गुजरे हुए दूसरे मुसाफिर यदि अपनी जीवन यात्रा को लिख गए तो उनका बहुत लाभ हुआ होता।' 14 मार्च 1940 को हजारीबाग जेल में नजरबंद होने के एक महीने बाद 16 अप्रैल 1940 से 14 जून 1940 के बीच अपनी उन स्मृतियों को कागज पर उतारा, जिसे 1894 से लेकर 1934 तक उन्होंने जीया था।
गोरखपुर में खुद को बताया था रमता साधु
ननिहाल के जन्मस्थल पंदहा से लेकर पिता के घर कनैला होते हुए उनके घुमक्कड़ी का जो सफर शुरू हुआ वह हावड़ा से लेकर हिमालय तक और केदारनाथ से लेकर काशी और कई देशों तक जारी रहा। अपने इसी सफर में उनका एक महत्वपूर्ण पड़ाव पूर्वांचल भी रहा, जहां उन्होंने अपने गोत्र के मूल उद्गम स्थल मलांव को बखूबी जाना।
मलांव के कुएं की ख्याति से दुनिया को कराया था परिचित
गोरखपुर से वाराणसी मार्ग पर 15 मील दूर दक्षिण में स्थित मलांव पहले मलगांव और मल्लग्राम के नाम से जाना जाता था। मेरी जीवन यात्रा पुस्तक के 'फिर घुमक्कड़ी का भूत' अध्याय में राहुल सांकृत्यायन ने काशी से गोरखपुर की यात्रा वृतांत में देवरिया रेलवे स्टेशन, कसया के रामाभार (मुकुट बंधन-बुद्ध शवदाह) ताल और बुद्ध के निर्वाण स्थल माथा कुंवर का उल्लेख किया था। यहां से लौटकर देवरिया होते हुए जब वह गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर उतरे तो टिकट कलेक्टर ने उनसे टिकट तो नहीं लेकिन निवास स्थल के बारे में पूछा था। राहुल सांकृत्यायन ने तो अपना परिचय रमता साधु के तौर पर दिया था, लेकिन उनके लंबे-चौड़े कद और साहित्यक भाषा के भ्रम में पड़कर टिकट कलेक्टर ने उन्हें खुफिया पुलिस का अफसर समझा था। गोरखपुर से नौगढ़, कपिलवस्तु होते हुए उनका सफर नेपाल की तरफ बढ़ गया था।
सांकृत्यायन वंश : सरयूपारीण मलांव शाखा
राहुल सांकृत्यायन ने उत्तर भारत के ब्राह्मणों में बस्ती, फैजाबाद, गोरखपुर, आजमगढ़, काशी मंडल के सरयूपारीण या सरवरिया ब्राह्मणों का खास स्थान बताया था। उन्होंने बताया था कि इनके 16 गोत्रों में सांकृत्य गोत्र भी सम्मलित था। मलांव को उन्होंने सांकृत्य गोत्र का मूल स्थान बताया था।
दूर-दूर तक फैला था मलांव के पांडे का रोब-दाब
राहुल सांकृत्यायन ने बताया था कि सांकृत्य गोत्र की वंशावली में शामिल राजेंद्र दत्त के जमाने में मलांव एक समृद्ध गांव था, जहां के पांडेय लोगों का रोब-दाब आसपास के प्रदेश तक फैला था।
प्राण दे दिए पर पीठ नहीं दिखाई
मलांव को लेकर प्रचलित कहानी का जिक्र करते हुए अपनी पुस्तक में उन्होंने लिखा कि मलांव के कुएं की ख्याति थी कि इसका पानी पीने वाली माता बंध्यात्व से ही मुक्त नहीं होती बल्कि वह मल्ल पुत्र प्रसव करती थी। डोमिनगढ़ के डोम कटार राजा की रानी कोई संतान नहीं थी। बनारस जाते हुए रानी को वीर प्रसवक कुएं का पता लगा तो उन्होंने सेवकों को पानी लेने भेजा लेकिन सेवकों को निराश होकर लौटना पड़ा। आक्रोशित डोम कटार राजा ने अनंत चतुर्दशी दिन मलांव पर आक्रमण कर दिया। उस दिन शस्त्र पूजा के चलते हथियार न धारण करने वाले मलांव के लोगों ने राप्ती नदी के तट पर कट कर जान दे दी लेकिन पीठ नहीं दिखाई।
दादा-पिता से सुनी थी राहुल सांकृत्यायन की कहानी
राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तक मेरी जीवन यात्रा में जिस सांकृत्य वंशावली का जिक्र किया है उसमें पांच वर्ष के ब'चे शशबिंदु का भी नाम है। शशबिंदु के बेटे 75 वर्षीय बालेंदु नारायण सेवक पांडेय बताते हैं कि उनके पिता शश बिंदु राहुल सांकृत्यायन और उनके घुमक्कड़ी जीवन दर्शन के बारे में बताते थे। कई दिनों तक मलांव में रुककर उन्होंने अपने गोत्र की वंशावली को जाना-समझा था। बाद में अपनी पुस्तक इसका जिक्र किया।
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