'अस्ति और भवति को सम्मान मिलने से आह्लादित हैं साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ तिवारी Gorakhpur News
प्रो. तिवारी ने बताया कि पुरस्कार की जानकारी उन्हें शुक्रवार की उस समय मिली जब वह गोरखपुर से पटना के लिए ट्रेन यात्रा कर रहे थे। आत्मकथा को सम्मान मिलना वास्तव में सुखद है।
गोरखपुर, जेएनएन। साहित्य अकादमी और दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ तिवारी यूं तो अब तक कई राष्ट्रीय सम्मान से नवाजे जा चुके हैं लेकिन ज्ञानपीठ का मूर्ति देवी सम्मान उनके लिए खास है। वह इसलिए कि यह सम्मान उन्हें उनकी आत्मकथा 'अस्ति और भवति के लिए मिला है। प्रो. तिवारी इस बात से बेहद खुश हैं कि उनकी आत्मकथा की गंभीरता को ज्ञानपीठ की जूरी ने भी पूरी गंभीरता से लिया है और उसे इतने महत्वपूर्ण सम्मान लायक समझा।
ट्रेन में मिली जानकारी
बातचीत में प्रो. तिवारी ने बताया कि पुरस्कार की जानकारी उन्हें शुक्रवार की उस समय मिली जब वह गोरखपुर से पटना के लिए ट्रेन यात्रा कर रहे थे। यात्रा के दौरान ही मोबाइल फोन पर उन्होंने बताया कि जब सूचना मिली तो आत्मकथा के एक-एक पन्ने एक बार फिर आंखों के सामने घूम गए। आत्मकथा को सम्मान मिलना वास्तव में सुखद है। ज्ञानपीठ की जूरी में जो भी विद्वान हैं, उन्होंने आत्मकथा के एक-एक पहलू पर गौर किया होगा, तभी वह उसकी गंभीरता को समझ सके हैं। आत्मकथा में जीवन के हर पहलू को समाज को संदेश देने के लिए पिरोया गया है। चूंकि यह पुरस्कार आत्मकथा के लिए मिला है, इसलिए अन्य पुरस्कारों से अलग और विशेष महत्व का है।
प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के बारे में यह भी जानें
कुशीनगर जिले में स्थित रायपुर भैंसही-भेडि़हारी गांव में 20 जून 1940 को पैदा हुए आचार्य प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी गोरखपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे हैं। विभागाध्यक्ष पद से 2001 में सेवानिवृत्त हुए। साहित्य के लिए वह इंग्लैंड, मारीशस, रूस, नेपाल, अमरीका, नीदरलैंड, जर्मनी, फ्रांस, लक्जमबर्ग, बेल्जियम, चीन, आस्ट्रिया, जापान और थाईलैंड आदि देशों की यात्रा कर चुके हैं।
मिल चुके हैं ये सम्मान
प्रो. विश्वनाथ तिवारी को तमाम पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें साहित्य अकादमी का महत्तर सम्मान मिला। उन्हें व्यास सम्मान, रूस का पुश्किन सम्मान, शिक्षक श्री सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, हिन्दी गौरव सम्मान, महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन सम्मान, महादेवी वर्मा गोयनका सम्मान, भारतीय भाषा परिषद का कृति सम्मान मिल चुका है।
रचनाओं का सफर
प्रो. तिवारी 1978 से हिन्दी की साहित्यिक पत्रिका 'दस्तावेज का लगातार संपादन-प्रकाशन कर रहे हैं। 'दस्तावेज के लगभग दो दर्जन विशेषांक प्रकाशित हुए हैं। 'दस्तावेज सरस्वती सम्मान भी मिल चुका है। उनके शोध व आलोचना के 12 ग्रंथ, सात कविता संग्रह, चार यात्रा संस्मरण, तीन लेखक-संस्मरण व एक साक्षात्कार प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने हिन्दी के कवियों, आलोचकों पर केंद्रित 16 अन्य पुस्तकों का संपादन किया है। आत्मकथा 'अस्ति और भवति के अलावा उनकी डायरी 'दिनरैन भी प्रकाशित हो चुकी है। आखर अनंत, चीजों को देखकर, फिर भी कुछ रह जाएगा, बेहतर दुनिया के लिए, साथ चलते हुए, शब्द और शताब्दी नाम के उनके कविता संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं।