प्रो.श्रीप्रकाश सिंह ने कहा-शोध विधि पर आधारित हैं हमारे प्राचीन ग्रंथ Gorakhpur News
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. श्रीप्रकाश सिंह ने कहा कि प्राचीन ग्रंथ महाभारत एवं कौटिल्य के अर्थशास्त्र में श्रेष्ठतम शोध विधि का प्रयोग किया गया है। आज जर्मनी भी भारत की शोध विधि को श्रेष्ठ मानता है। उन्होंने चरक संहिता के तंत्रयुक्ति का उल्लेख किया।

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। हमारे समस्त प्राचीन ग्रंथ शोध विधि पर आधारित हैं। भारत की शोध विधि पश्चिमी शोध विधि से श्रेष्ठ है। प्राचीन ग्रंथ महाभारत एवं कौटिल्य के अर्थशास्त्र में श्रेष्ठतम शोध विधि का प्रयोग किया गया है। आज जर्मनी भी भारत की शोध विधि को श्रेष्ठ मानता है। यह बातें दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. श्रीप्रकाश सिंह ने कही। वह गोरखपुर विवि के राजनीति शास्त्र विभाग में सात दिवसीय आनलाइन कार्यशाला के समापन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने चरक संहिता के तंत्रयुक्ति का उल्लेख किया एवं उसके 36 चरण तथा अनुबंध पद्धति की चर्चा की। अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. नंदिता सिंह ने छात्रों को समाज के विकास से संबंधित शोध करने तथा शोध में वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग करने पर जोर दिया। विभागाध्यक्ष प्रो. रूसी राम महानंदा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यशाला की साप्ताहिक रिपोर्ट प्रस्तुत की। शोध छात्र के रूप में सुकन्शीका वत्स एवं मनीष कुमार ने शोध से संबंधित अनुभव साझा किए। संचालन डा. अमित उपाध्याय एवं धन्यवाद ज्ञापन एचआरडीसी के निदेशक प्रो. हिमांशु पांडेय ने किया।
स्वाध्यायी विद्यार्थी ही अच्छा शोधार्थी
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के अधिष्ठाता प्रो.संतोष कुमार शुक्ल ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा अत्यंत प्राचीन रही है, परंतु शोधकार्य आधुनिक काल में प्रारंभ हुआ। स्वाध्यायी विद्यार्थी ही अच्छा शोधार्थी होता है। प्रो.संतोष कुमार शुक्ल दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग और मानव संसाधन विकास केंद्र गोरखपुर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में सात दिवसीय आनलाइन शोध प्रविधि कार्यशाला के चौथे दिन प्रथम सत्र को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने शोध की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए भारतीय शोध परंपरा पर प्रकाश डाला तथा कहा कि संस्कृत में प्रथम शोध कार्य कलकत्ता विश्वविद्यालय से पशुपति नाथ शास्त्री ने किया। उनके शोध का विषय 'एन इंट्रोडक्शन आफ पूर्व मीमांसा रहा। प्रथम सत्र का संचालन डा.रंजनलता तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. मुरलीमनोहर पाठक ने किया। द्वितीय सत्र के वक्ता महामहोपाध्याय प्रो.रहस विहारी द्विवेदी ने शोध प्रविधि शब्द की अवधारणा को सम्यक रूप से स्पष्ट करते हुए शोध प्रविधि के विविध आयामों की चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन डा.देवेंद्र पाल तथा धन्यवाद ज्ञापन डा.सूर्यकांत त्रिपाठी ने किया।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।