Mobile Addiction: मोबाइल की लत बच्चों को बना रही हिंसक, छीनने पर हो रहे उग्र
गोरखपुर में मोबाइल की लत युवाओं में बढ़ती जा रही है। बच्चे पढ़ाई छोड़कर इंटरनेट मीडिया में व्यस्त हैं जिससे वे डिप्रेशन और हिंसा का शिकार हो रहे हैं। ऑनलाइन गेमिंग और अश्लील वीडियो देखने से युवाओं में मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं। डॉक्टर अमित शाही और तपस कुमार आइच के अनुसार माता-पिता को बच्चों पर ध्यान देना चाहिए ताकि वे मोबाइल एडिक्शन से बच सकें।

गजाधर द्विवेदी, गाेरखपुर। जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग के ओपीडी में आर्यनगर के एक दंपती अपने 17 वर्षीय किशोर को लेकर पहुंचे। उन्होंने डाक्टर को बताया कि पढ़ाई के लिए मोबाइल खरीदकर दिया था। लेकिन पढ़ाई छोड़कर इंटरनेट मीडिया से जुड़ गया। देर रात तक लाइक-कमेंट देख रहा था। कमरा बंद कर लेता था।
अकेले रहना पसंद करता था। हमेशा गुमसुम रहता था। जब उससे मोबाइल छीनने का प्रयास किया गया तो मां को धकेल देता था। मारपीट कर लेता था। एक बार पिता को मारने के लिए चाकू उठा लिया। उसकी एक साल से दवा चल रही है। अब एक घंटे ही मोबाइल का उपयोग करता है। स्कूल जाना शुरू कर दिया है।
दाउदपुर के 14 वर्षीय बच्चे को मोबाइल में गेम (जुआ) खेलने की आदत लग गई थी, वह रुपये लगाना शुरू कर दिया था। पिता के बैंक एकाउंट की यूजर आईडी व पासवर्ड उसे पता चल गया था। पिता के बैंक एकाउंट का उपयोग कर आनलाइन गेम खेलता था।
स्वजन को जब यह बात पता चली, तबतक वह चार लाख रुपये जुए में हार चुका था और डिप्रेशन में चला गया था। गुमसुम व उदास रहने लगा था। पूछने पर कुछ बताता नहीं था, झगड़ा करने लगता था। जनवरी से उसकी दवा चल रही है, अब काफी हद तक ठीक है।
बीआरडी मेडिकल कालेज के मानसिक रोग ओपीडी में एक सप्ताह पहले 20 वर्षीय युवक पहुंचा। वह रात को मोबाइल पर अश्लील वीडियो देखता था। एक दिन उसके पास नोटिफिकेशन आ गया, जिसका मतलब था कि यह अपराध है और आप पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। इसके बाद घबरा गया।
जल्दी-जल्दी उसने मोबाइल की पूरी हिस्ट्री डिलीट की। अब रोज हिस्ट्री डिलीट करने लगा। काफी भयभीत हो गया था। डिप्रेशन के साथ ही वह आब्सेसिव कंपल्सिव डिस्आर्डर का भी शिकार हो गया था। उसकी दवा शुरू की गई है।
विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों को मोबाइल की लत परिवार व समाज से अलग कर रही है। किशोर व युवा भी इसकी चपेट में हैं। देर रात तक इंटरनेट मीडिया पर लाइक व कमेंट देख रहे हैं। कम लाइक व कमेंट मिलने पर डिप्रेशन में जा रहे हैं। पढ़ाई बाधित हो रही है। स्कूल से शिकायत आ रही है। अनेक बच्चों ने स्कूल जाना ही बंद कर दिया। दिन-रात मोबाइल में ही लगे रहते थे। उनके माता-पिता ने जब मना करने या मोबाइल छीनने की कोशिश की तो वे हिंसक हो गए।
अश्लील वीडियो देखने पर नोटिफिकेशन आ गया तो घबरा गए। डिप्रेशन के साथ ही आब्सेसिव कंपल्सिव डिस्आर्डर (ओसीडी) के शिकार हो गए। बीआरडी मेडिकल कालेज व जिला अस्पताल के मानसिक रोग ओपीडी में हर सप्ताह मोबाइल एडिक्शन के शिकार चार-पांच बच्चे, किशोर व युवा पहुंच रहे हैं। उनकी दवा चल रही है।
मोबाइल धीरे-धीरे समाज को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। लोग उस पर निर्भर होते जा रहे हैं। खाली समय मिला तो लोगों से बातचीत करने की बजाय वे मोबाइल देख रहे हैं। धीरे-धीरे बेमतलब की चीजों के आदती होते जा रहे हैं। उनसे मोबाइल छीनने या मांगने पर हिंसक हो रहे हैं। इस तरह के मामले सामने आने लगे हैं। बच्चों में यह समस्या ज्यादा है।
-डा. अमित शाही, मानसिक रोग विशेषज्ञ जिला अस्पताल
बच्चे, किशोर व युवा पढ़ाई के लिए मोबाइल की जिद कर रहे हैं। मिल जाने पर उनकी दिशा बदल जा रही है। इंटरनेट मीडिया पर मित्र बनाना, चैटिंग करना, पोस्ट डालना उनकी आदत बन जा रही है। कई बच्चे आनलाइन जुआ खेल रहे हैं। रील बनाकर पोस्ट कर रहे हैं। माता-पिता द्वारा बच्चों पर ध्यान न देने की वजह से वे मोबाइल एडिक्शन के शिकार हो रहे हैं।
-डा. तपस कुमार आइच, प्रोफेसर मानसिक रोग विभाग, बीआरडी मेडिकल कालेज
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