गौर से देखा, पहचाना गले लगे, भावुक हुए, फिर ताजा कीं पुरानी यादें- गर्मजोशी से शुरू हुई MMMUT की एलुमिनाई मीट
MMMUT Alumni Meet 2022 उल्लास के माहौल में गर्मजोशी से एमएमयूटी की एलुमिनाई मीट शुरू हुई। पुराने छात्रों ने एक दूसरे को देखा फिर पहचानने की कोशिश की। ...और पढ़ें

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। पहले गौर से निहारा और फिर दिमाग पर जोर डालकर पहचानने की कोशिश की। जब पहचाना तो गर्मजोशी से गले मिलकर भावुक हो गए। उसके बाद शुरू हुआ छात्र जीवन की यादों को ताजा करने का सिलसिला। वह यादें जो वर्षों से दिल में संजोए हुए थे। यह दृश्य था शनिवार को मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के बहुद्देशीय सभागार का, जहां विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग कालेज के दौर के नौ बैच के छात्र देश-दुनिया से जुटे थे। कुछ 50 वर्ष पुराने थे तो कुछ 25 वर्ष। बाकी 10 वर्ष पुराने। कालेज के गोल्डेन जुबिली, सिल्वर जुबिली और डिकेड बैच के छात्रों की एलुमिनाई मीट जो आयोजित थी।
सिल्वर जुबिली बैच के छात्रों में दिखा अधिक उत्साह
सबसे ज्यादा उत्साह सिल्वर जुबिली बैच के छात्रों में देखने को मिला। रह-रह कर उनके बीच से उठ रही उल्लासपूर्ण गूंज इस उत्साह की गवाही थी। गोल्डेन जुबिली बैच के पुरातन छात्रों की आंखों की चमक बता रही थी कि यह आयोजन उन्हें असीम ऊर्जा प्रदान कर रहा है। 10 वर्ष पुराने छात्र तो पूरे समय हास्टल व क्लासरूम के दौरान की गई हंसी-ठिठोली वाली गतिविधियों की चर्चा करते रहे। सेल्फी के जरिये यादों को संजोने का सिलसिला भी खूब चला। सभी पुरातन छात्रों में युवाओं सी ऊर्जा देखने को मिली।
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एक-दूसरे से साझा कीं अपनी उपलब्धियां
सभी ने अपनी उपलब्धियां भी एक-दूसरे से साझा कीं। उपलब्धियों पर देर ही सही बधाइयों का सिलसिला भी खूब चला। सभी ने आयोजन के जरिये साथियों से मिलने का अवसर देने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन और एलुमिनाई एसोसिएशन के प्रति आभार ज्ञापित किया। कोरोना के चलते बीते दो वर्ष में एलुमिनाई मीट का आयोजन नहीं हो सका था, इसलिए इस बार वर्ष 1970, 71, 72 (गोल्डन जुबली बैच), वर्ष 1995, 1996, 1997 (सिल्वर जुबली बैच) और डिकेड बैच (2010, 2011, एवं 2012) के पुरातन छात्र मीट में एक-साथ आमंत्रित थे।
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फूंक से जुल्फें उड़ाने वाले आज गंजे हैं
मंच से छात्र जीवन की यादों को साझा करते हुए अपने साथी संदीप मोहन श्रीवास्तव की चर्चा करते 1997 बैच के पुरातन छात्र एसपी मौर्या ने बताया कि वह क्रिकेट मैच में ओपनिंग किया करते थे। उन दिनों उनके लंबे बाल हुआ करते थे, जिसे बैटिंग के दौरान वह फूंक से उड़ाया करते थे। कभी फूंक से जुल्फें उड़ाने वाले संदीप आज गंजे हैं। फिर तो हाल ठहाके से गूंज गया।
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लगती थी गंगा-जमुना की चाय में होड़
1997 बैच के दूरदर्शन पटना निदेशक राहुल सिंह ने कहा कि पढ़ाई के दिनों में कालेज गेट पर दो चाय की दुकानें थीं। एक गंगा की तो दूसरी जमुना की। वहां चाय पीने के लिए छात्रों के बीच तो होड़ लगती ही थी, दोनों चाय वाले भी बेहतर चाय पिलाने को आतुर रहते थे। बहुत याद आते हैं वह दिन।

बहुत याद आता है पंचम का समोसा
1996 बैच के पंकज शुक्ला ने कहा कि पढ़ाई पूरी होने के बाद बहुत सी दुकानों का समोसा खाया लेकिन कालेज के गेट पर दुकान लगान वाले पंचम के समोसे का लाजवाब स्वाद कभी नहीं मिला। इस बार आया तो सोचा वह स्वाद फिर लूंगा लेकिन खोजने पर भी वह दुकान नहीं मिली।
फिर दिल करता है बेफिक्री में जीने का
1995 बैच के अयोध्या विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष विशाल सिंह ने कहा कि हास्टल में मस्ती के साथ रहना। क्लास के बीच में समय मिलते ही चाय की दुकान पर चले जाना। दोस्तों के साथ हर महत्वपूर्ण मौके पर पार्टी करना। बहुत याद आता है इंजीनियरिंग कालेज का छात्र जीवन। फिर दिल करता है उस बेफिक्री में जीने का।
परिसर में बदलाव महसूस हुआ
1972 बैच के सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता केडी शुक्ल ने कहा कि मेरा बैच वह पहला बैच था, जिसकी पढ़ाई की शुरुआत इंजीनियरिंग कालेज परिसर में हुई। उससे पहले कालेज की कक्षाएं पालिटेक्निक स्कूल में चला करती थी। आज जब विश्वविद्यालय परिसर में मैं आया हूं तो मैंने उस बदलाव को महसूस किया हूं।
घूम गई छात्रजीवन की रील
1971 बैच के जेपी सिंह ने कहा कि जब हम पढ़ते थे तो कालेज में संसाधनों का अभाव जरूर था लेकिन मेधा की कमी नहीं थी। यही वजह है कि यहां से निकले विद्यार्थी आज पूरी दुनिया में नाम रोशन कर रहे हैं। परिसर में आकर छात्रजीवन की रील घूम गई है। ऊर्जावान महसूस कर रहा हूं।
हम बूढ़े हुए, कालेज हुआ जवान
1971 बैच के सुरेश तिवारी ने कहा कि आज हम जिस बहुद्देशीय हाल में बैठे हैं, पहले यहां छोटा सा टीन शेड हुआ करता था। कालेज का विश्वविद्यालय के रूप में सज-संवर कर निखरना अच्छा लग रहा है। यह कह सकता हूं कि हम भले बूढ़े हो गए हैं, कालेज जवान हुआ है।

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