फर्जी स्टाम्प मामले की जांच में हाथ लगे कई अहम सुराग, गोरखपुर में जाली नोट की फैक्ट्री लगाने की थी तैयारी
फर्जी स्टांप के साथ ही गिरोह का सरगना अपने स्वजन संग जाली नोट भी छाप रहा था। एसआइटी की पूछताछ व जांच में पता चला कि सिवान का रहने वाला 84 वर्षीय मोहम्मद कमरुद्दीन 40 वर्ष से फर्जी स्टांप छापकर वेंडरो को बेचता है। वर्ष 1984 में बिहार पुलिस ने उसे पहली बार पकड़ा था। जेल से छूटकर अपने बेटे नवाब आरजू उर्फ लालू को उसने प्रशिक्षित किया जिसके बाद...
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। Fake Stamp Case: फर्जी स्टांप के साथ ही गिरोह का सरगना अपने स्वजन संग जाली नोट भी छाप रहा था। आरोपितों से पूछताछ व उनके कब्जे से बरामद लैपटाप की जांच में पुलिस को यह अहम जानकारी मिली है। जाली नोट का धंधा कमरुद्दीन का बेटा नवाब आरजी उर्फ लालू करता था।
सिवान के बाद गोरखपुर में भी यह लोग अपनी फैक्ट्री लगाने की तैयारी में थे। एसआइटी के साथ ही क्राइम ब्रांच की टीम नवाब आरजू व गिरोह के अन्य सदस्यों की सरगर्मी से तलाश कर रही है।
एसआइटी की पूछताछ व जांच में पता चला कि सिवान का रहने वाला 84 वर्षीय मोहम्मद कमरुद्दीन 40 वर्ष से फर्जी स्टांप छापकर वेंडरो को बेचता है। वर्ष 1984 में बिहार पुलिस ने उसे पहली बार पकड़ा था।
जेल से छूटकर अपने बेटे नवाब आरजू उर्फ लालू को उसने प्रशिक्षित किया, जिसके बाद दोनों मिलकर बड़े पैमाने पर यह काम करने लगे। किसी को संदेह न हो कि स्टांप फर्जी है इसलिए 10, 20 व 50 रुपये वाले स्टांप को खरीदकर उसके सिल्वर का इस्तेमाल 5000, 10000, 20000 व 25000 के स्टांप में करते थे।
मोहम्मद कमरुद्दीन ने पूछताछ में बताया कि अपने ससुर शमसुद्दीन से उसने फर्जी स्टांप छापने का तरीका सीखा था। स्टांप छापने में इस्तेमाल होने वाला पेपर पटना से मंगाता है। बीएससी व कंप्यूटर की पढ़ाई करने वाला उसका नाती साहेबजादे अपने लैपटाप से स्टांप की डिजाइन तैयार करता है।
आरोपित के कब्जे से मिले दस्तावेज की जांच में पता चला कि बिहार के अलावा पूर्वांचल व अन्य राज्य में भी इनका नेटवर्क फैला है। 12 वेंडरों का भी पता चला जो इनसे स्टांप खरीदकर लंबे समय से बेच रहे हैं।
बिहार पुलिस को भी है नवाब की तलाश
फर्जी स्टांप छापने के मामले में बिहार पुलिस को भी नवाब आरजू उर्फ लालू की तलाश है। गोरखपुर पुलिस के शिकंजा कसने के बाद बिहार पुलिस भी सक्रिय हो गई है।
100 रुपये में बेचते थे 1000 का फर्जी स्टांप
कमरुद्दीन व उसके नाती साहेबजादे ने एसआइटी को बताया कि 1000 रुपये का फर्जी स्टांप वह लोग 100 रुपये में बेचते थे। 2000 का स्टांप 300 और 25000 का 2000 रुपये में मिलता था। उनके यहां से स्टांप खरीदने वाले वेंडर भारी फायदा कमाते थे। वह कम रेट पर ही स्टांप बेचते हैं।
ऐसे हुआ गिरोह का पर्दाफाश
हुमायूंपुर दक्षिणी, दुर्गाबाड़ी रोड के रहने वाले राजेश मोहन सरकार ने सहायक महानिरीक्षक निबंधन, गोरखपुर के कार्यालय में 28 फरवरी, 2023 को 53 हजार का स्टांप रिफंड करने के लिए आवेदन किया था।
कार्यालय सहायक महानिरीक्षक निबंधन ने 25 अप्रैल, 2023 को मुख्य कोषाधिकारी के माध्यम से 13 स्टांप का सत्यापन कराया तो पता चला कि 53 हजार के स्टांप में केवल तीन हजार के ही सही हैं। बाकी 10 स्टांप की प्रमाणिकता को सत्यापित करने लिए निदेशक भारत प्रतिभूति मुद्रणालय, नासिक, महाराष्ट्र को जिलाधिकारी द्वारा प्रेषित किया गया।
भारत प्रतिभूति मुद्रणालय, महाराष्ट्र द्वारा पांच दिसंबर, 2023 को पत्र भेजकर बताया गया कि सभी 10 स्टांप फर्जी हैं। इसके बाद जिलाधिकारी के आदेश पर उपनिबंधन सदर प्रथम सुबोध कुमार राय ने कैंट थाने में राजेश मोहन सरकार पुत्र प्यारे मोहन और दीवानी कचहरी के स्टांप विक्रेता लालजी सिंह पर मुकदमा दर्ज कराया। पुलिस ने जांच में दोनों निर्दोष मिले।
छानबीन करने पर पता चला कि वेंडर रवि मिश्रा ने फर्जी स्टांप बेचा था। उसे पुलिस ने पकड़कर जेल भेजा। जांच में मिली जानकारी की तस्दीक करने पर पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ।
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