मगध से पड़ा मगहर का नाम !
दुनिया में मानवता का संदेश देने वाले संत कबीर की निवार्ण स्थली का नाम पहले मगध था, उसके बाद नाम मगहर पड्रा।
वेदप्रकाश गुप्त,गोरखपुर : संपूर्ण विश्व को प्रेम, सौहार्द का संदेश देने वाले संतकबीर दास की निर्वाण स्थली संतकबीर नगर जिले के मगहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन की तैयारियां जोरों पर हैं। मानवता का संदेश देने वाली कबीर की धरती पर हजारों लोग शीश नवाते हैं। ऐतिहासिकता व धार्मिक आस्था व विरासत के बारे में जानकारियां लेने के लिए हर साल लाखों पर्यटक आते हैं।
जनपद मुख्यालय से आठ किमी दूर मगहर स्थित है। स्थान के नामकरण के बारे में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं। कबीर मठ के महंत विचारदास के बताया संतकबीर दास ने लिखा है, काशी मरै सो जाए मुक्ति को, मगह गधा होय। यहां मगह का अर्थ मगध से है। यही मगह बाद में मगहर हो गया।
प्राचीन काल में मगध (मगह) के अज्ञात राजा ने बद्री आश्रम का दर्शन हेतु मगध से इसी रास्ते से जाते समय विश्राम के लिए यहीं पड़ाव डाला था और अधिक समय तक अस्वस्थ हो जाने के कारण उन्हें लंबे समय तक ठहरना पड़ा था। इस अवधि में उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक छोटी सी बस्ती का निर्माण किया गया। चूंकि मगध (मगह) देश के राजा द्वारा इस बस्ती की स्थापना हुई थी, इसलिए इस स्थान का नाम मगह पड़ गया जो कालांतर में मगहर के नाम से परिवर्तित हो गया। हालांकि पुरातात्विक साक्ष्यों में इस जनश्रुति की पुष्टि नहीं होती है।
कबीर साहब की समाधि एवं मजार का निर्माण कब हुआ, कह पाना कठिन है। वर्तमान भवनों के अवशेषों को देखकर इसे दो सौ वर्ष से अधिक प्राचीन कहना मुश्किल होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि मूल भवन का समय समय पर इस प्रकार जीर्णोद्धार किया जाता रहा, जिससे उसका मूल स्वरूप अवस्थित रह सका। एक अन्य जनश्रुति के अनुसार संतकबीर की समाधि एवं मजार का सर्वप्रथम जीर्णोद्धार सन 1567 में गाजीपुर के शासक पहाड़ खां के दत्तक पुत्र बिजली खां द्वारा किया गया था। संतकबीर साहब की मजार शुरू से जुलाहा परिवार की देखरेख में रही। एक अन्य ¨कवदंती के अनुसार मगहर शुरू से ही थारुओं के आधिपत्य में रहा, जिसके किले के अवशेष पास के घनश्यामपुर ग्राम में स्थित है। एक दूसरी जनश्रुति के अनुसार मगहर के मूल निवासी डोम कटर थे। जो 1300 ईसवी के लगभग सर्वेट (एक जाति) के रूप में यहां आए और इस क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित किया। सर्वेट राजाओं के किले के अवशेष कस्बे के पश्चिमी भाग में लगभग सोलह एकड़ विस्तार क्षेत्र में फैला है। इसके बाद 1570 ईसवी के लगभग आक्रमण के फलस्वरूप सर्वेट बांसी चले गये और मगहर पर किदई खान का शासन स्थापित हो गया। इसके साथ ही मगहर की ऐतिहासिकता के बारे में तमाम तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं, जिसमें महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस स्थान से पूरी दुनिया को धार्मिक सौहार्द का संदेश मिलता है। कबीर साहब की निर्वाण स्थली के बिल्कुल समीप स्थित मजार पर आज भी ¨हदू व मुस्लिम समुदाय के लोग जाकर मत्था टेकते हैं। पर्यटन की ²ष्टि से यह स्थल न केवल महत्वपूर्ण है, वरन मानवता व धर्म में आस्था रखने वालों के लिए आज भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
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