Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    लीला चित्र मंदिर, यहीं आकर रामानंद सागर को मिली थी धारावाहिक 'रामायण' बनाने की प्रेरणा

    Leela Chitra Mandir Geeta Press गीता प्रेस गोरखपुर का लीला चित्र मंदिर कई मायनों में अनूठा है। लीला चित्र मंदिर में देवी-देवताओं के ऐसे 583 चित्र सजाए गए हैं जिन्हें हाथ से बनाया गया है। रामानंद सागर रामायण बनाने से पहले यहां रामायण की बारीकियां समझने आए थे।

    By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Sun, 05 Jun 2022 08:57 PM (IST)
    Hero Image
    गीता प्रेस का लीला चित्र मंदिर। - फाइल फोटो

    गोरखपुर, जेएनएन। Leela Chitra Mandir, Geeta Press: दुनिया भर में गीता प्रेस की पहचान जिन वजहों से है, उनमें धार्मिक पुस्तकों के अलावा जो चीज सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, वह है आर्ट गैलरी यानी लीला चित्र मंदिर। देश-विदेश से गोरखपुर आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक यदि गीता प्रेस जाते हैं तो पुस्तकें तो खरीदते ही हैं, लीला चित्र मंदिर जाकर जीवंत चित्रों के जरिये भगवान की लीलाओं का दर्शन करना नहीं भूलते। ऐसा हो भी क्यों न। ऐसा अनूठा चित्र मंदिर पूरी दुनिया में कही नहीं है। इसमें अगर गीता के 18 अध्यायों के 700 से अधिक श्लोक संगमरमर की दीवारों पर गढ़े गए हैं तो देवी-देवताओं की 700 से अधिक आकर्षक चित्र अपनी विशिष्टता, सुंदरता और जीवंतता से किसी का भी मन मोह लेने में सक्षम हैं। 29 अप्रैल 1955 को देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के हाथों उद्घाटित होने के बाद तीर्थ स्थल मानकर इसे देखने के लिए देश भर के पर्यटकों और श्रद्धालुओं का आने का जो सिलसिला शुरू हुआ, आज भी जारी है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    छवियों से भगवान का लीला दर्शन

    यूं ही नहीं लीला चित्र मंदिर अनूठा है। इसकी खूबियां इसे अन्य आर्ट गैलरी से अलग करके देखने को मजबूर करती हैं। लीला चित्र मंदिर में देवी-देवताओं के ऐसे 583 चित्र सजाए गए हैं, जिन्हें हाथ से बनाया गया है। बिना रसायनिक रंग के प्रयोग के दशकों पहले बनाए गए इन चित्रों की चमक आज भी बरकरार है। आश्चर्य की बात यह है कि इनके संरक्षण के लिए प्रेस प्रबंधन साफ-सफाई के अलावा कोई अन्य प्रयास नहीं करता।

    17वीं शताब्दी का 'गोविंद गद्दी चित्र' भी है शामिल

    चित्र मंदिर में पूर्व की ओर भगवान श्रीकृष्ण, पश्चिम की ओर श्रीराम, दक्षिण की ओर से दशावतार और उत्तर की ओर दश महाविद्या व मां भगवती के चित्र हैं। कुछ चित्र मेवाड़ शैली के हैं, जिन्हें जयपुर के पं. हनुमान शर्मा ने मंदिर को भेंट किया था, इसमें इसमें 17वीं शताब्दी का 'गोविंद गद्दी चित्र' भी शामिल है। जयश्रीराम लिखा एक चित्र तो ऐसा है, जिसमें पूरी रामायण दिखाया गया है। कई त्रिविमीय चित्र ऐसे हैं, जिन्हें तीन तरफ से देखने पर तीन देवी-देवताओं के दर्शन होते हैं। कुछ ऐसे चित्र है, जिन्हें पहेली की तर्ज पर बनाया गया। उसमें देवताओं के दर्शन के लिए एकाग्रचित्त होकर देखना पड़ता है। कुल मिलाकर इसमें चित्रों को इस दृष्टि से सजाया गया है कि सभी श्रद्धालुओं को भावानुसार अपने-अपने इष्ट देवताओं और उनकी लीलाओं का दर्शन हो सके। मेवाड़ी शैली के अलावा सभी चित्रों को गीता प्रेस के चित्रकारों बीके मित्रा, जगन्नाथ व भगवान ने बनाया है। ज्यादातर चित्रों को गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंदका और कल्याण के संस्थापक संपादक भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने अपने मार्गदर्शन में बनवाया है।

    ऐसे पूरी हुई लीला चित्र मंदिर की संकल्पना

    गीता प्रेस में धार्मिक पुस्तकों की छपाई का कार्य शुरू होने के बाद श्रीमद्भगवद्गीता के प्रचार-प्रसार में लोगों के मन यह बात आई कि कहीं एक स्थान हो, जिसमें भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीला से जुड़े चित्र इसमें संग्रहीत किए जा सकें। भगवान विष्णु, भगवान शंकर और अन्य देवी-देवताओं के दुर्लभ चित्रों को भी उसमें स्थान मिल सके। हालांकि उस समय योजना विचार तक सिमट कर रह गई। कुछ वर्ष बाद जब गीता प्रेस के बढ़े काम के चलते एक नया भवन बनाया गया और भवन के दूसरे तल पर एक विशाल हाल बनवाया गया। हाल मिला तो गीता प्रेस से जुड़े लोगाें को योजना को साकार करने अवसर मिल गया।

    संगमरमर पर गीता के श्लोक खोदवाकर दीवारों पर चारो ओर जड़ दिया गया। इसके अलावा संत कबीर, तुलसीदास, दादू, सुंदर दास, रहीम, नारायण स्वामी आदि संतों के दोहे और चौपाई आदि भवन के बाहरी व भीतरी दीवारों पर लिखवाए गए। 'कल्याण' के लिए वर्षों से बनवाये जा रहे चित्रों में से सर्वाधिक सुंदर चित्र चुने गए और उन्हें सजाया गया। भवन में सजाने के लिए कुछ नए चित्र भी बनवाए गए। इस तरह अभूतपूर्व लीला चित्र मंदिर बनकर तैयार हो गया, जो आज गोरखपुर का महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है।

    'रामायण' धारावाहिक बनाने से पहले गीता प्रेस आए थे रामानंद सागर

    फिल्मों के मशहूर निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर 'रामायण' धारावाहिक बनाने से पहले गीता प्रेस के लीला चित्र मंदिर में सजे चित्रों को देखने के लिए गोरखपुर आए थे। अपने चार दिन के प्रवास में चित्रों की जीवतंता देख वह अभिभूत हुए और उनके आधार पर ही अपने धारावाहिक के पात्रों राम, लक्ष्मण, सीता, कौशल्या, हनुमान, सुग्रीव आदि के वस्त्र, उनके रंग, आभूषण आदि का चुनाव किया। धारावहिक में सजाए गए दरबार का आधार भी यही चित्र थे। गीता प्रेस के प्रबंधक डा. लालमणि तिवारी बताते हैं कि चित्रों को देखने के बाद रामानंद सागर ने कहा था कि यह तो अद्भुत है, इसका अंशमात्र भी हम धारावाहिक में इस्तेमाल कर पाए तो धन्य होंगे।

    चित्र मंदिर में संजोई गई है गीता प्रेस की पहली छपाई मशीन

    लीला चित्र मंदिर में वह छपाई मशीन भी सुरक्षित रखी गई है, जो गीता प्रेस द्वारा खरीदी गई पहली मशीन थी। हैंड प्रेस प्रिंटिंग मशीन के नाम से जानी जाने वाली इस छपाई मशीन की कीमत उस समय 600 रुपये थी। इसे गीता प्रेस प्रबंधन 1923 में खरीदा था। हालांकि जल्द ही यह मशीन अनुपयोगी लगने लगी तो प्रबंधन ने एक ट्रेडिल मशीन खरीद ली।

    7100 वर्ग फीट क्षेत्र के चित्र मंदिर में प्रदर्शित किए गए हैं ये चित्र

    श्रीकृष्ण लीला - 151 चित्र

    श्रीराम लीला - 182 चित्र

    भोले नाथ लीला - 26 चित्र

    मां भगवती - 40 चित्र

    भगवान विष्णु व उनके अवतार - 35 चित्र

    श्रीकृष्ण लीला (मेवाड़ी शैली) - 92 चित्र

    संत-महात्मा, भक्त - 57 चित्र।