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    गोरखपुर चिड़ियाघर में 180 वन्यजीवों को मिली नई जिंदगी, यहां घायल जानवरों का इलाज कर बचाया जा रहा उनका जीवन

    By Pragati ChandEdited By:
    Updated: Fri, 24 Jun 2022 05:43 PM (IST)

    गोरखपुर चिड़ियाघर घायल वन्यजीवों को नई जिंदगी देने के कारण प्रदेश में भरोसे का बड़ा केंद्र बन गया है। इतना ही नहीं यह पश्चिम के जिलों की भी पहली प्राथमिकता बन रहा है। यही कारण है यहां कानपुर व लखनऊ के आसपास से वन्यजीव रेस्क्यू करके भेजे जा रहे हैं।

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    गोरखपुर चिड़ियाघर में वन्यजीवों को मिली नई जिंदगी। सौ. Twitter- @GorakhpurZoo

    गोरखपुर, जितेन्द्र पाण्डेय। गोरखपुर चिड़ियाघर को स्थापित हुए एक वर्ष दो माह हुए हैं। इस अवधि में यहां 180 वन्यजीवों का जीवन बचाया गया है। वन्यजीवों का जीवन बचाने के जज्बे के चलते यह प्रदेश में भरोसे का बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। इसका प्रमाण है कि लखनऊ व कानपुर के करीब के जिलों से वन्यजीव रेस्क्यू करके यहां भेजे जा रहे हैं। पिछले पांच माह में गोरखपुर चिड़ियाघर में सात तेंदुओं का जीवन बचाया गया है।

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    केस-एक: बहराइच जिले के कर्तनिया घाट से लखनऊ चिड़ियाघर की दूरी 177 किलोमीटर के करीब है, लेकिन गोरखपुर चिड़ियाघर करीब 300 किलोमीटर की दूरी पर है। बीते 24 जनवरी को यहां एक आदमखोर तेंदुआ पकड़ा गया था। वन विभाग की टीम ने उसे पकड़ा तो वह बुरी तरह से जख्मी हो गया था। उसे इलाज के लिए लखनऊ न ले जाकर गोरखपुर लाया गया। दो माह के इलाज के बाद वह पूरी तरह स्वस्थ हुआ और उसे पुन: जंगल में छोड़ दिया गया।

    केस-दो: मेरठ से गोरखपुर चिड़ियाघर की दूरी 860 किलोमीटर के करीब है, जबकि कानपुर चिड़ियाघर 523 किलोमीटर की दूरी पर है। मेरठ में एक 20 दिन के तेंदुए के शरीर से मानव गंध आने के कारण उसे उसकी मां ने नहीं अपनाया। बिना मां के 20 दिन के तेंदुएं को पालना व उसे बचाना कठिन था, लेकिन मेरठ वन विभाग की टीम उसे कानपुर न ले जाकर गोरखपुर लेकर आई। यहां वह इलाज के बाद पूरी तरह स्वस्थ है।

    केस-तीन: बिजनौर से गोरखपुर की दूरी 710 किलोमीटर है, जबकि लखनऊ 432 किलोमीटर पर है। बीते 23 मई को बिजनौर में आठ-आठ दिन के तीन तेंदुओं को उनकी मां ने छोड़ दिया। उनके भी शरीर से मानव गंध आ रही थी। बिजनौर की टीम इन नन्हें तेंदुओं को लखनऊ न ले जाकर गोरखपुर चिड़ियाघर लेकर आई। ताकि इनका जीवन बचाया जा सके और इनकी ढंग से परवरिश की जा सके।

    इसके अलावा महराजगंज के दो घायल तेंदुओं का भी जीवन इस चिड़ियाघर में बचाया गया है। इसमें से एक तेंदुए का पैर इतना बुरी तरह से जख्मी था कि पैर काटने की नौबत थी, लेकिन इलाज के बाद वह भी अब पूरी तरह से स्वस्थ है। प्रदेश के तीन चिड़ियाघरों में से लखनऊ व कानपुर के चिड़ियाघर बेहद पुराने हैं। लखनऊ चिड़ियाघर को स्थापित हुए 100 वर्ष व कानपुर चिड़ियाघर को स्थापित हुए 32 वर्ष हो चुके हैं। बावजूद इसके लोग यह मानते हैं कि गोरखपुर चिड़ियाघर में वन्यजीवों का जीवन अधिक सुरक्षित है। यहां सात तेंदुओं के अलावा, हिमालयी गिद्ध, हिमालयी उल्लू, अजगर, प्रवासी पक्षी सहित 180 वन्यजीवों का जीवन बचाया जा चुका है।

    चिड़ियाघर के पशु चिकित्साधिकारी डा. योगेश प्रताप सिंह ने बताया कि यह पूरी टीम की मेहनत है, जो वन्यजीवों का जीवन बचाने में चिड़ियाघर को सफलता मिली है। अभी तक यहां जितने भी वन्यजीव रेस्क्यू करके लाए गए हैं, उसमें से अधिकांश पूरी तरह स्वस्थ हैं।