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    भारत की तबस्सुम का लीबिया हुआ कायल, गोरखपुर गदगद

    By Satish ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 16 Oct 2020 12:48 PM (IST)

    भारतीयों की रिहाई में प्रमुख भूमिका निभाने वाली तबस्सुम मंसूर शहर के पहले चार्टेड अकाउंटेंट हबीबुल्लाह हबीब की पुत्री हैैं। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी तबस्सुम की प्रारंभिक शिक्षा ग्रीन लान माडल नर्सरी और माउंट कार्मल से हुई।

    लीबिया में रह रहीं गोरखपुर की तबस्‍सुम की फाइल फोटो।

    गोरखपुर, जेएनएन। गोरखपुर की बिटिया तबस्सुम मंसूर की कोशिश का न सिर्फ लीबिया कायल हुआ, बल्कि भारत सरकार भी गर्वित है। तबस्सुम ने काम ही ऐसा किया है, जिसे प्राइड ऑफ नेशन कहना गलत न होगा। एक तरफ गर्व की भावना है, वहीं दूसरी ओर वह सात परिवार भी झोली भर-भरकर दुआएं दे रहे हैैं, जिनके सदस्यों की जान बचाने के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं की। इसमें एक परिवार कुशीनगर के मुन्ना चौहान का भी है, जिन्हें 13 सितंबर को लीबिया में अगवा कर लिया गया था। लीबिया में अपहृत ये सात भारतीय उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश के हैं। इन्हें छुड़ाने के लिए आतंकवादियों ने उनकी कंपनी से 20 हजार डालर की फिरौती मांगी थी।

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    गोरखपुर में ही पली-बढ़ी और पढ़ी हैं तबस्‍सुम

    भारतीयों की रिहाई में प्रमुख भूमिका निभाने वाली तबस्सुम मंसूर शहर के पहले चार्टेड अकाउंटेंट हबीबुल्लाह हबीब की पुत्री हैैं। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी तबस्सुम की प्रारंभिक शिक्षा ग्रीन लान, माडल नर्सरी और माउंट कार्मल से हुई। इमामबाड़ा गर्ल्‍स कालेज से स्नातक के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बीएड किया। तबस्सुम पहली बार 2011 में अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमकीं, जब उन्होंने कर्नल गद्दाफी के तख्तापलट के बाद वहां फंसे 3000 भारतीयों को निकालने में मदद के साथ उनके रहने-खाने का भी इंतजाम किया। बेनगाजी अशांति के दौरान भी लीबिया से फंसे भारतीयों को निकालने में मदद की। उन्हें 2017 में उत्तर प्रदेश अप्रवासी भारतीय रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह यूनिसेफ के साथ मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में काम करती हैं।

    बच्‍चों को अच्‍छी तालीम देना और देश के लोगों की मदद करना ही मकसद

    युद्ध जैसे हालात झेल रहे लीबिया के सैकड़ों ब'चों को पढ़ाई का अवसर मुहैया करा रही हैैं। बकौल तबस्सुम, जब वह अपनों को रिहा कराने मिलिशिया समूह के पास जा रही थीं तो एकबारगी लगा कि जिंदा बचकर न आ सकूं, लेकिन खुदा के करम से वार्ता सफल रही और सभी बिना शर्त रिहा हो गए। उनके रिहा होने पर लगा मानो नेमत मिल गई। तबस्सुम कहती हैैं, बच्‍चों को अच्‍छी तालीम देना और अपने देश के लोगों की मदद करना ही मेरा मकसद है। कोई भारतीय आता है मदद करने से पीछे नहीं हटतीं हूं। बहन के काम से भाई डा. ओसामा हबीब बहुत खुश हैं। कहते हैं, तबस्सुम आपी ने जो किया है, वह वर्षों तक याद रखा जाएगा। हम सबको उनपर गर्व है।

    निकाह के बाद गई थीं लीबिया

    तबस्सुम का निकाह आजमगढ़ के मंसूर अहमद के साथ हुआ। मंसूर लीबिया में जाब करते थे, इसलिए वह भी चली गईं। तबस्सुम कामकाजी महिला बनना चाहती थीं। पति से मशविरा कर लीबिया में इंडियन पब्लिक स्कूल की नींव डाल दी। मेहनत की दम पर उसे लीबिया के टाप स्कूलों में शामिल कराया। इस स्कूल से शीर्ष सैन्य अधिकारी, राजनेता, व्यवसायियों और प्रतिष्ठित लोग जुड़ऩे लगे। तबस्सुम की मेहनत से वहां स्कूल की दो और शाखाएं खुल गईं।