चौरी-चौरा कांड : अंग्रेजों ने जिस सिपाही शहीद बताया, कोर्ट में उसी से दिलाई गवाही
चौरी-चौरा कांड के सत्याग्रहियों को सजा दिलाने के लिए अंग्रेज अधिकारी साजिशें रचने से भी पीछे नहीं हटे। झूठी कहानियां तक गढ़ डाली। दस्तावेजों में जिस सिपाही को शहीद बताया गया क्रांतिकारियों को सजा दिलाने के लिए उसी सिपाही को कोर्ट में चश्मदीद गवाह के तौर पर पेश कर दिया।
गोरखपुर, नवनीत प्रकाश त्रिपाठी। स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा और दशा बदल देने वाले चौरीचौरा कांड के बाद अंग्रेज अधिकारियों ने पूरे इलाके में जमकर कहर बरपाया था। ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध भड़के विद्रोह को कुचलने के लिए थाना जलाने के आरोप में बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया। उन्हें सजा दिलाने के लिए अंग्रेज अधिकारी, साजिशें रचने से भी पीछे नहीं हटे। झूठी कहानियां तक गढ़ डाली। इतना नहीं चौरीचौरा कांड से जुड़े दस्तावेजों में जिस सिपाही को शहीद बताया गया, क्रांतिकारियों को सजा दिलाने के लिए उसी सिपाही को सेशन कोर्ट में 22 सितंबर 1922 को चश्मदीद गवाह के तौर पर पेश कर दिया।
22 पुलिस कर्मियों की हुई थी मौत
असहयोग आंदोलन का समर्थन करने के लिए स्थानीय लोग चार फरवरी 1922 को चौरीचौरा में प्रदर्शन कर रहे थे। कुछ पुलिस वालों के दुर्व्यवहार से आक्रोशित होकर प्रदर्शनकारियों ने थाने में आग लगा दी थी। इसमें तीन नागरिकों और 22 पुलिस वालों की मौत हो गई थी। इस घटना में मारे गए पुलिस वालों को ब्रिटिश सरकार ने शहीद का दर्जा देते हुए चौरीचौरा थाने में शहीद स्मारक का निर्माण कराया। पुलिस वालों के इस शहीद स्मारक पर क्रम संख्या चार पर सिपाही रघुबीर सिंह का नाम दर्ज है। घटना की जांच करने वाले तत्कालीन अधिकारियों ने भी अपनी रिपोर्ट में सिपाही रघुबीर सिंह को शहीद बताया है।
सात माह बाद कोर्ट में रघुबीर ने कोर्ट में दी गवाही
थाने के अंदर बने पुलिस वालों के शहीद स्मारक और और चौरीचौरा कांड की जांच करने वाले अधिकारियों की रिपोर्ट में जिस सिपाही रघुबीर सिंह को शहीद बताया गया है, सात माह बाद वही रघुबीर सिंह, सेशन कोर्ट में गवाह के तौर पर पेश हुआ। कोर्ट में दर्ज किए गए गवाहों के बयान से जुड़े दस्तावेज में पृष्ठ संख्या 742 पर रघुबीर सिंह का बयान दर्ज है। चौरीचौरा कांड पर प्रमाणिक शोध करने वाले सुभाष चंद्र कुशवाहा ने सिपाही रघुबीर सिंह को पहले शहीद बताए जाने और बाद में गवाह के तौर उसके कोर्ट में पेश होने का उल्लेख किया है।
घटना के समय थाने में नहीं था रघुबीर
जिस समय चौरीचौरा थाने में आग लगाई गई थी उस समय रघुबीर सिंह थाने में मौजूद ही नहीं था। सेशन कोर्ट में गवाह के तौर पर दर्ज कराए गए बयान में उसने बतया था कि 'घटना के समय निजी कार्य से वह मुंडेरा बाजार गया था। थाने लौटते समय रास्ते में उसे सिपाही और चौकीदारों को जला दिए जाने का पता पता चला। इसके बाद वह हीरा लाल के बागीचे में जाकर छिप गया। रात में 10 बजे उप निरीक्षक लक्ष्मन सिंह उसे बागीचे से निकालकर अपने साथ ले गए थे।
गौरीबाजार थाने में दर्ज हुई थी चौरीचौरा कांड की रिपोर्ट
आग लगाए जाने के बाद सिपाही सिद्दिकी (कांस्टेबल संख्या 193) किसी तरह से थाने से भाग निकला था। चौरा गांव के रामदास कलवार ने कुछ लोगों के साथ उसका पीछा किया लेकिन सिद्दिकी भागने में सफल हो गया। दौड़ते हुए वह गौरी बाजार (तब गौरी थाना कहा जाता था) थाने पहुंचा। उस समय थाने के दारोगा (थानेदार) गश्त पर निकले थे। सिपाही मोहम्मद जहूर थाना इंचार्ज था। सिद्दिकी ने मोहम्मद जहूर को चौरीचौरा थाना जला दिए जाने की जानकारी दी। मोहम्मद जहूर ने जीडी में इसकी रिपोर्ट दर्ज की तथा कुसम्हीं रेलवे स्टेशन पहुंचकर टेलीग्राम भेजकर अधिकारियों को घटना को जानकारी दी। इसके बाद ब्रिटिश अधिकारियों का अमला मौके पर पहुंचा था।
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