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    ऐसे अस्तित्‍व में आया गोरखपुर का रामगढ़ ताल, जानें-क्‍या है इसका इतिहास Gorakhpur News

    By Satish ShuklaEdited By:
    Updated: Sat, 02 Nov 2019 09:59 AM (IST)

    उन दिनों राप्ती नदी आज के रामगढ़ ताल से ही होकर गुजरती थी। बाद में राप्ती नदी की दिशा बदली तो उसके अवशेष से रामगढ़ ताल अस्तित्व में आ गया। रामग्राम से ही ताल को रामगढ़ नाम मिला।

    ऐसे अस्तित्‍व में आया गोरखपुर का रामगढ़ ताल, जानें-क्‍या है इसका इतिहास Gorakhpur News

    गोरखपुर, जेएनएन। शहर के दक्षिणी-पूर्वी छोर पर 1700 एकड़ क्षेत्र में फैला रामगढ़ ताल गोरखपुर को प्रकृति की अनुपम भेंट है। इस ताल का केवल गोरखपुर के स्तर पर ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर ऐतिहासिक महत्व है। इतिहासकार डॉ. राजबली पांडेय के मुताबिक ईसा पूर्व छठी शताब्दी में गोरखपुर का नाम रामग्राम था। यहां कोलीय गणराज्य स्थापित था। उन दिनों राप्ती नदी आज के रामगढ़ ताल से ही होकर गुजरती थी। बाद में राप्ती नदी की दिशा बदली तो उसके अवशेष से रामगढ़ ताल अस्तित्व में आ गया। रामग्राम से ही ताल को रामगढ़ नाम मिला।

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    रामगढ़ ताल के बारे में यह भी है जनश्रुति

    ताल के बारे में एक और जनश्रुति है कि प्राचीन काल में ताल के स्थान पर एक विशाल नगर था, जो किसी ऋषि के श्राप में फंस गया। नगर ध्वस्त हो गया और वहां ताल बन गया। शुरुआती दौर में यह तालाब छह मील लंबा और तीन मील चौड़ा था। तब इसका दायरा 18 वर्ग किलोमीटर था। अतिक्रमण के चलते अब यह सात वर्ग किलोमीटर में सिमट कर रह गया है। लंबे समय तक इस ताल की उपयोगिता को शहरवासी समझ नहीं सके।

    ऐसे बढ़ा इसका महत्‍व

    90 के दशक में जब वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने रामगढ़ ताल को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की, जो 1989 में उनके असामयिक निधन से अधर में लटक गई। योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश का नेतृत्व संभाला तो उन्होंने ताल की कीमत को एक फिर बार समझा और इसे लेकर नई योजनाएं बनाईं और लंबित योजनाओं को पूरा करने का संकल्प लिया।

    आज पूर्वांचल का मरीन ड्राइव है यह ताल

    कल तक उपेक्षा का शिकार रामगढ़ ताल आज पूर्वांचल का मरीन ड्राइव बन चुका है। इसकी छटा देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। शाम ढलते ही ताल के किनारे जुटने वाली भीड़ इसकी बढ़ रही लोकप्रियता की तस्दीक है। फिलहाल ताल को सुरक्षित और संरक्षित रखने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार के अलावा एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल) ने भी संभाल रखी है। एनजीटी की सक्रियता के चलते ही ताल के 500 मीटर के दायरे में निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है।