History of Gorakhpur: रामग्राम से गोरखपुर तक का सफर, 26 सौ वर्षो में आठ बार बदली गोरखपुर की पहचान
Gorakhpur CIty History बीते 26 सौ वर्ष में गोरखपुर की पहचान आठ बार बदली। बाबा गोरखनाथ फिराक गोरखपुर मुंशी प्रेम चंद की पहचान वाले गोरखपुर का नाम अब ग ...और पढ़ें

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। History of Gorakhpur: बौद्ध परिपथ के हृदय स्थल पर मौजूद गुरु गोरक्षनाथ की तपोस्थली गोरखपुर बहुत सी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्याति्मक खूबियों को खुद में समेटे हुए है। गीता प्रेस और गीता वाटिका की विश्वस्तरीय पहचान से तो हर कोई वाकिफ है, गोरखनाथ मंदिर जैसी नाथ पंथ की आध्याति्मक पीठ भी गोरखपुर को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित करती है। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और बंधु सिंह का बलिदान और संत कबीर के देहत्याग की गवाह भी यही धरती है।
गोरखनाथ, फिराक, मुंशी प्रेमचंद से बनी गोरखपुर की पहचान
सात वर्ग किलोमीटर में फैले भव्य रामगढ़ ताल की गिनती तो गोरखपुर के प्राकृतिक धरोहरों में होती है। मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी और कथाकार प्रेमचंद के नाम से गोरखपुर साहित्य के राष्ट्रीय फलक पर सजता है तो स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण असहयोग आंदोलन के स्थगित होने की वजह बने चौरीचौरा कांड का चौरीचौरा भी गोरखपुर में ही है। 100 किमी के दायरे में मौजूद भगवान बुद्ध से जुड़े कपिलवस्तु और कुशीनगर गोरखपुर को अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर स्थापित करते हैं। गोरखपुर खाद कारखाना और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भी अब गोरखपुर की पहचान में शामिल हो रहा है।
महात्मा बुद्ध ने सुलझाया था कोलियों और शाक्यों के बीच का नदी जल विवाद
बीते 2600 वर्षो में गोरखपुर आठ नामों की पहचान का सफर तय कर चुका है। रामग्राम, पिप्पलीवन, गोरक्षपुर, सूबा-ए-सरि्कया, अख्तरनगर, गोरखपुर सरकार, मोअज्जमाबाद और अब गोरखपुर। इसकी प्राचीनता के संबंध में प्राप्त प्रामाणिक अभिलेखों के अभाव में असंदिग्ध रूप से सीधे तौर कुछ कहना संभव नहीं। हां, पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर इसे 26 सौ वर्ष पुराना कहा जाता सकता है। इन्हीं प्रमाणों के आधार पर यह कहा जाता है कि आज का गोरखपुर ही तब का रामग्राम था, जो छठी शताब्दी ईसा पूर्व पांच गणराज्यों में से एक था। जहां महात्मा बुद्ध ने एक बार ठहर कर कोलियों और शाक्यों के बीच का नदी जल विवाद सुलझाया था।
समावेशी संस्कृति है इसकी खासियत
इसी लोक विख्यात तथ्य के आधार पर हम गोरखपुर को 500 ईसा पूर्व का नगर कह सकते हैं। सांस्कृतिक दृष्टि से इसकी महत्ता योगमूलक है। इसके सूत्र हमें सातवीं-आठवीं शताब्दी में महायोगी गुरु गोरक्षनाथ की योग-सभ्यता, उनके तत्व ज्ञान और विपुल साहित्य में मिलते हैं। गोरखपुर की एक बड़ी खासियत यहां की समावेशी संस्कृति भी है। सांप्रदायिक सद्भाव को लेकर यह शहर देश भर के लिए मिसाल है। साहिति्यक उपलबि्धयों के नजरिये से भी गोरखपुर देश में चमकता हुआ दिखता है। हिंदी, संस्कृत, फारसी, उदरू, भोजपुरी आदि भाषाओं में साहित्य की यहां समृद्ध परंपरा रही है। अदब की दुनिया के सशक्त हस्ताक्षर फिराक गोरखपुरी का नाम तो देश के साहिति्यक कि्षतिज पर चमकता ही है, कथा सम्राट प्रेमचंद की कर्मस्थली भी गोरखपुर रही है।
इन विभूतियों ने रोशन किया गोरखपुर का नाम
पं. विद्या निवास मिश्र, परमानंद श्रीवास्तव, मजनू गोरखपुरी, उमर कुरैशी, रियाज खैराबादी, गिरीश रस्तोगी, डॉ. विश्वनाथ तिवारी (साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष) जैसे नामचीन साहित्यकारों ने गोरखपुर का नाम देश-दुनिया में ऊंचा किया है। सांस्कृतिक दृषि्ट से भी गोरखपुर ने राष्ट्रीय प्रतिष्ठा पाई है। इप्टा, नटराज, रुपांतर, आग, दर्पण, मंजुश्री, अभियान नाम की गोरखपुर की नाट्य संस्थाओं के कलाकारों ने देश भर के मंचों पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। गीता प्रेस के मशहूर चित्रकार बीके मित्रा, जगन्नाथ और भगवान के बनाए चित्र आज भी धारि्मक किताबों की पहचान हैं। संगीत की दुनिया में गोरखपुर के आचार्य राम नारायण मणि ति्रपाठी, उस्ताद राहत अली, ठाकुर महेंद्र सिंह का नाम देश भर में पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है।
स्वतंत्रता संग्राम में अहम था गोरखपुर का योगदान
स्वतंत्रता संग्राम से अगर गोरखपुर को जोड़कर देखें तो राम प्रसाद बिसि्मल, सचींद्र नाथ सान्याल, ठाकुर बंधु सिंह, दशरथ प्रसाद दि्ववेदी का देश के लिए बलिदान इतिहास के पन्नों पर स्वणरक्षरों में दर्ज है। इसके अलावा शिक्षा, चलचित्र, चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा, खेल, उत्सवधरि्मता, धर्मस्थल, ऐतिहासिक विरासत आदि को लेकर भी गोरखपुर की विशिष्ट पहचान है। गीता प्रेस, गीता वाटिका, गोरखनाथ मंदिर और टेराकोटा शिल्प से गोरखपुर आज भी अनवरत विश्र्व प्रसिदि्ध को प्राप्त कर रहा है।

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