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    ¨हदी संस्थान के पुरस्कारों में चमका जनपद, प्रोफेसर रामदेव शुक्ल समेत छह साहित्यकारों को सम्मान

    उत्तर प्रदेश ¨हदी संस्थान की तरफ से गोरखपुर-बस्ती मंडल के छह साहित्यकारों को सममानित किए जाने की घोषणा की गई है। इससे क्षेत्र में साहित्य जगत का मान बढ़ा है।

    By JagranEdited By: Updated: Sat, 01 Sep 2018 01:29 PM (IST)
    ¨हदी संस्थान के पुरस्कारों में चमका जनपद, प्रोफेसर रामदेव शुक्ल समेत छह साहित्यकारों को सम्मान

    गोरखपुर : उत्तर प्रदेश ¨हदी संस्थान के वर्ष 2017 के सम्मानों व पुरस्कारों की शुक्रवार को हुई घोषणा से गोरखपुर को एक बार फिर गर्व करने का अवसर मिला है। सम्मानित होने वाली हस्तियों में चार यहीं से हैं। ¨हदी संस्थान ने प्रो. रामदेव शुक्ल को ¨हदी गौरव सम्मान से नवाजने का निर्णय लिया है तो जुगानी भाई को लोक भूषण सम्मान और प्रो. बनारसी चतुर्वेदी सौहार्द सम्मान से विभूषित किया जाएगा। इसके अलवा स्वास्थ्य पत्रिका 'सामयिक नेहा' को बेहतरीन कार्य के लिए सरस्वती पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है। पत्रिका की संपादक कुसुम बूढ़लकोटी हैं। पेश है पूर्वाचल को गौरवांवित करने वाली इन हस्तियों के अवदान पर एक नजर.

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    प्रो. रामदेव शुक्ल को

    ¨हदी गौरव सम्मान

    कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित प्रो. रामदेव शुक्ल आलोचना और नाट्य लेखन के क्षेत्र के सशक्त हस्ताक्षर हैं। गोरखपुर विश्वविद्यालय के ¨हदी विभाग के अध्यक्ष पद से 1998 में सेवानिवृत्त प्रो. रामदेव मूलत: कुशीनगर के शाहपुर कुरमौटा गांव के रहने वाले हैं। 11 उपन्यास, छह कहानी संग्रह, आठ आलोचना ग्रंथ, दो दर्जन से अधिक संपादित ग्रंथ, साठ से अधिक पुस्तकों में सहलेखन करने वाले प्रो. रामदेव शुक्ल पूर्व में विद्याभूषण, कथाश्री, भारतेंदु सम्मान, सेतु शिखर सम्मान, श्रुतिकीर्ति शिखर सम्मान, भारत-भारती, शताब्दी सम्मान आदि से नवाजे जा चुके हैं। उन्हें 'ग्राम देवता' कहानी से ख्याति मिली, बाद में उन्होंने इसे उपन्यास का रूप दिया और उसे भोजपुरी में भी प्रस्तुति किया। 'मनदर्पण', 'विकल्प', 'संकल्पा', 'अगला कदम', 'चौखट के बाहर', 'गिद्ध लोक', 'अगला कदम', 'बेघर बादशाह', 'उजली हंसी की वापसी' नाम के उनके रचे उपन्यास खासे चर्चित रहे। हाल ही में 'अनाम छात्रा की डायरी शीर्षक' से उनका नया उपन्यास प्रकाशित हुआ है। प्रो. रामदेव कथा-साहित्य के अलावा अलोचना और नाटक जैसी विधाओं में वरदहस्त हैं। 'घनानंद का श्रृंगार काव्य' और 'सामंती परिवेश की जनाकांक्षा और बिहारी', 'निराला के उपन्यास', 'निराला के कथा-गद्य का आस्वादन' आदि उनकी महत्वपूर्ण आलोचना पुस्तकें हैं। ¨हदी साहित्य जगत में रीतिकालीन साहित्य के मर्मज्ञ के रूप में उनकी विशिष्ट पहचान है। वर्तमान में भी उनकी साहित्य साधना जारी है।

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    रवींद्र श्रीवास्तव 'जुगानी भाई' को

    लोक भूषण सम्मान

    आकाशवाणी के गोरखपुर केंद्र की दशकों की आवाज रहे रवींद्र श्रीवास्तव 'जुगानी भाई' भोजपुरी माटी की पहचान हैं। आकाशवाणी के लिए 1000 से अधिक लघु नाटिकाओं का लेखन निर्देशन करने वाले जुगानी भाई के साहित्यिक अवदान की चर्चा करें तो 'मोथा अउर माटी', 'गीत गांव गांव', 'नोकियात दूबि', 'अखबारी कविता', 'फुंसियात सहर' जैसे लोकप्रिय भोजपुरी काव्य उनकी कलम का नायाब नमूना हैं। भोजपुरी काव्य 'खिरकी त खोलीं' इतनी मकबुूल हुई कि 'लेट द विंडो बी ओपेंड' शीर्षक से उसका अंग्रेजी तर्जुमा भी छपा। पत्र-पत्रिकाओं में वह नियमित लिखते रहे हैं। उत्तर प्रदेश ¨हदी संस्थान के राहुल सांकृत्यायन सम्मान के अलावा पूर्व में विद्यानिवास मिश्र लोककवि सम्मान, श्याम नारायण पांडेय कविता सम्मान, सरयू रत्‍‌न, भोजपुरी रत्‍‌न, लोक रत्‍‌न, भोजपुरी विभूषण सम्मान चेतना कवि सम्मान आदि से वह नवाजे जा चुके हैं। वाचिक परंपरा की चर्चा करें तो जुगानी भाई, विश्व भोजपुरी सम्मेलन तथा भोजपुरी मैथिली अकादमी दिल्ली के अधिकांश कार्यक्रमों व कवि सम्मेलनों का संचालन करते रहे हैं। आकाशवाणी से भोजपुरी के विभिन्न प्रयोगधर्मी कार्यक्रमों के अलावा भोजपुरी लोकगीतों के फरमाइशी कार्यक्रमों की शुरुआत का श्रेय इन्हीं का जाता है। वह अब 75 के पार पहुंचे हैं, पर उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी क्रियाशीलता और सृजनधर्मिता में कमी नहीं आई है।

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    प्रो. बनारसी चतुर्वेदी को

    सौहार्द सम्मान

    गोरखपुर विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष संस्कृत पद से सेवानिवृत्त डॉ. बनारसी त्रिपाठी, संस्कृत अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र के प्रतिष्ठित नाम है। 20 से ज्यादा शोध पत्रों के लेखक डॉ. बनारसी 1977 से मार्च 1983 तक अलीगढ़ के धर्म समाज पीजी कॉलेज में संस्कृत विषय के शिक्षक रहे। मार्च 1983 में उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में सेवा शुरू की तो फिर यहीं के होकर रह गए। चार बार संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद के सदस्य रहे प्रो. त्रिपाठी दिल्ली, कोलकाता समेत देश के कई विश्वविद्यालयों में डॉ. बनारसी त्रिपाठी का व्याख्यान होता रहा है।

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    सामयिक नेहा पत्रिका की संपादक कुसुम बूढ़लकोटी को सरस्वती पुरस्कार

    गोरखपुर से ही प्रकाशित होने वाली शिक्षा एवं स्वास्थ्य पत्रिका नेहा को ¨हदी संस्थान की ओर से सरस्वती पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है। कुसुम बूढ़लकोटी के संपादन में 1997 से अनवरत प्रकाशित यह त्रैमासिक पत्रिका में आयुर्वेद,होम्योपैथ और एलोपैथ सहित चिकित्सा विज्ञान के विभिन्न विधाओं के सम-सामयिक ज्ञान से परिपूर्ण होती है। प्रत्येक वर्ष के जनवरी माह में इसका विशेषांक किसी एक रोग के कारण,निवारण पर केंद्रित रहता है, जिसमें अतिथि संपादक के रूप में विशेषज्ञ को ही रखा जाता है। जनवरी 2018 में जो अंक आया था वह स्वशन तन्त्ररोग विशेषाक था। अगले साल 2019 में जनवरी का अंक आएगा वह इंसेफ्लाइटिस पर आधारित होगा।

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    डॉ. मुन्ना की पुस्तक को रामनरेश त्रिपाठी पुरस्कार

    कुशीनगर के रहने वाले डॉ. मुन्ना तिवारी को उनकी पुस्तक लोक परिप्रेक्ष्य और भोजपुरी साहित्य पर उत्तर प्रदेश ¨हदी संस्थान का रामनरेश त्रिपाठी पुरस्कार देने की घोषणा की गयी है। डॉ मुन्ना तिवारी वर्तमान में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी में हिंदी विभाग के अध्यक्ष हैं। जनपद कुशीनगर के एक छोटे से गाव अमावा तिवारी के रहने वाले डॉ तिवारी ने कई पुस्तकों की रचना की है, जिसमें दलित चेतना और समकालीन ¨हदी उपन्यास, समकालीन साहित्य से साक्षात्कार ,दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र ,हिंदी साहित्य के विविध परिप्रेक्ष्य ,भोजपुरी लोक नाट्य रंग, वीथिका काव्यश्री, काव्य मंजूषा ,काव्य मंजरी तथा लोक परिप्रेक्ष्य और भोजपुरी साहित्य प्रमुख हैं।

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    राम नरेश मंजुल को साहित्य भूषण सम्मान

    बस्ती जनपद के निवासी ¨हदी के सुख्यात कवि एवं लेखक डा. रामनरेश ¨सह मंजुल को उत्तर प्रदेश ¨हदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की गई है। यह सूचना जैसे ही बस्ती जिले के लोगों को मिली तो साहित्य जगत में उत्साह का माहौल हो गया। साहित्यकारों ने इसे जनपद व पूर्वांचल के लिए बड़ी उपलब्धि बताया।

    डा. मंजुल ने कहा कि सच्ची निष्ठा एवं बिना किसी पुरस्कार की कामना में सदैव ¨हदी साहित्य की सेवा करता रहा। अस्सी वर्ष से ऊपर के हो गए हैं। पिछले 64 वर्ष से ¨हदी की सेवा कर रहे हैं। डा. हरिवंश राय बच्चन से प्रभावित डा. मंजुल कहते हैं कि बच्चन जी के गीतों को पढ़कर, सुन कर तथा कवि सम्मेलन में सानिध्य प्राप्त कर गीत लिखने की प्रेरणा मिली। डा. मंजुल का प्रकाशित गीत संग्रह आदमी कितना अकेला के लिए वर्ष 2014 में उत्तर प्रदेश ¨हदी संस्थान द्वारा बलबीर ¨सह रंग पुरस्कार दिया जा चुका है। निबंध संग्रह साहित्य का मर्म और धर्म, भी काफी सराहा गया है। डा. मंजुल के लेख व रचनाएं राजकीय स्तर की साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। डा. मंजुल विभिन्न विद्यालयों में 12 वर्ष तक अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे। उसके बाद 30 वर्ष तक नेशनल इंटर कालेज हर्रैया के प्रधानाचार्य रहे। 1997 में राज्य का सर्वोच्च शिक्षक सम्मान मिला।

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