160 की रफ्तार से दौड़ेंगी ट्रेन, कोहरे में भी कम नहीं होगी रेल की स्पीड
भारतीय रेलवे अब 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेनें चलाने की तैयारी में है। कोहरे के कारण अब ट्रेनों की गति कम नहीं होगी। रेलवे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करेगा, जिससे यात्रियों को समय पर अपने गंतव्य तक पहुंचने में सुविधा होगी।
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जागरण संवाददाता, गोरखपुर। स्वदेशी स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली यानी 'कवच' आटोमेटिक ब्लाक सिग्नल सिस्टम के साथ मिलकर कार्य करेगा। आटोमेटिक ब्लाक सिग्नल सिस्टम लगने के साथ ही कवच सिस्टम भी लगना आरंभ हो गया है। कवच लग जाने से ट्रेनें अधिकतम 160 किमी प्रति घंटे की गति से चल सकेंगी। लोको पायलट अपने केबिन में सिग्नल लाइव देखते रहेंगे। कोहरे में भी ट्रेनों का संचालन प्रभावित नहीं होंगा। ट्रेनें निर्बाध गति से चलती रहेंगी।
फिलहाल, पूर्वोत्तर रेलवे के बाराबंकी-छपरा रूट पर आटोमेटिक ब्लाक सिग्नल सिस्टम भी तेजी के साथ लग रहा है। यह सिस्टम 100 किमी से अधिक रेलमार्ग पर कार्य करने लगा है। कवच सिस्टम प्रत्येक एक किलोमीटर पर लग रहे आटोमेटिक ब्लाक सिग्नल सिस्टम के सिग्नल, पटरियों, इंजन के कैब और इंजन के नीचे तथा स्टेशन मास्टर के पैनल में लगाया जा रहा है, जो एक सेक्शन में चलने वाली ट्रेन की स्पीड समेत इंजन और सिग्नल की प्रत्येक गतिविधियों को रीड (पढ़ता) करता रहेगा।
कवच हो जाएगा सक्रिय
रेड सिग्नल होने, निर्धारित से अधिक गति होने, लोको पायलटों की सक्रियता नहीं होने तथा एक सेक्शन यानी एक किमी के अंदर दूसरी ट्रेन के आते ही कवच सक्रिय हो जाएगा। सबसे पहले वह लोको पायलटों और स्टेशन मास्टर को अलर्ट करेगा। फिर इमरजेंसी ब्रेक लगा देगा। कवच के तहत लोको पायलट इंजन के कैब में एक सेक्शन की सभी गतिविधियों को लाइव देखते रहेंगे। रेलवे बोर्ड ने पूर्वोत्तर रेलवे में कवच लगाने के साथ अधिकारियों और कर्मचारियों का प्रशिक्षण भी आरंभ करा दिया है। अधिकारी और कर्मचारी हैदराबाद स्थित प्रशिक्षण केंद्र इरिसेट में प्रशिक्षित हो रहे हैं।
पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है कवच
कवच सिस्टम पूरी तरह स्वदेशी रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीक पर तैयार किया गया है, जो ट्रेन के इंजनों और सिग्नल सिस्टम से जुड़ा रहेगा। रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने स्वयं कवच का परीक्षण किया है। चार मार्च, 2022 को रेलमंत्री ने ट्रेन में बैठकर कवच प्रणाली का परीक्षण किया था। परीक्षण की सफलता के बाद रेल मंत्रालय ने पूर्वोत्तर रेलवे सहित भारतीय रेलवे स्तर पर इस प्रणाली का प्रयोग करने के लिए अनुमति प्रदान कर दी है।
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