यह है नरियांव गांव, जानिए क्यों प्रसिद्ध है भेड़िहार बस्ती के नाम से
यहां पर भेड़ के बाल से कंबल तैयार होता है। यह काम महिलाएं करती हैं। ठंडी के समय इसका बाजार लगा रहता है। दूर-दराज से लोग आते हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। बढ़ते मशीनी युग में भी देवरिया जिले के भागलपुर ब्लाक के नरियांव गांव में महिलाएं अपने हाथ से भेड़ के बाल से कंबल तैयार कर परिवार का खर्च चलाती हैं। कंबल उद्योग के नाम से ही नरियांव गांव की भेड़िहार बस्ती आज भी प्रसिद्ध है। यहां की करीब एक दर्जन महिलाएं कंबल उद्योग पर ही आश्रित हैं।
इनका कंबल खरीदने के लिए दूर-दूर से लोग इस गांव में आते हैं। विशेष कर ठंड के मौसम में कंबल की बिक्री अधिक होती है और मनमाफिक पैसा भी मिलता है। ठंड का मौसम शुरू होते ही नरियांव में कंबल का बाजार सज जाता है। परंपरागत उद्योग से जुड़ी कलावती व कलवासी के हाथ के बुने कंबल की खरीदारी के लिए भी गांव में दूर-दूर से ग्राहक आते हैं। घर के पुरूष भेड़ पालन कर उसके मल मूत्र से भेड़ों और अपना खर्चा निकाल लेते हैं और घर में ये महिलाएं भेड़ के बाल से सूत तैयार कर इसका संग्रह करती हैं। इसके बाद इन मोटे सूत से कंबल तैयार करती हैं।
जब ठंड शुरू हो जाता है तो इनके परिवार जन महिलाओं द्वारा तैयार किए गए कंबल को बाजार में ले जाकर बेचते हैं। वैसे तो यहां पहले हर घर में कंबल उद्योग चलता था, लेकिन अब केवल आधा दर्जन परिवार में ही कंबल तैयार होता है। कंबल कम होने के चलते खुद बाहर से जरूरतमंद परिवार कंबल खरीदने के लिए घर पर ही आ जाते हैं।
कलावती व कलवासी ने बताया कि चरखा के द्वारा पहले सूत तैयार किया जाता है और इस सूत से रंगीन ऊन का मिलावट कर विभिन्न डिजाइनों के कंबल ओढ़ने के लिए बनाते हैं। कंबल के साथ ही बहुत से लोग पूजा करने के लिए आसनी भी आर्डर देकर बनवाते हैं, जिसका प्रयोग अधिकांश मंदिरों में होता है। एक कंबल तैयार करने में एक सप्ताह का समय लगता है। छह से आठ सौ में बिकता है कंबल वर्तमान समय में एक कंबल 600 से 800 रुपये में बिकता है।
वहीं बिछावन व सपटा वाला कंबल 500 से 600 रुपये में बिकता है। कंबल तैयारी के लिए सभी आकार का फर्मा इनके पास है। हरेराम पाल ने बताया कि कंबल उद्योग के नाम से यह गांव प्रसिद्ध था। यहां से कंबल कुंभ मेला और गोला बाजार के लिए जाता है। पहले सोहनाग और दुग्धेश्वरनाथ में लगने वाले मेले में नरियांव का कंबल खरीदने के लिए लोग आते थे।अब मेला बंद हो गया और नई तकनीकी के चलते अब कम लोग भेड़ के कंबल की खरीदारी कर रहे हैं।
इनका कंबल खरीदने के लिए दूर-दूर से लोग इस गांव में आते हैं। विशेष कर ठंड के मौसम में कंबल की बिक्री अधिक होती है और मनमाफिक पैसा भी मिलता है। ठंड का मौसम शुरू होते ही नरियांव में कंबल का बाजार सज जाता है। परंपरागत उद्योग से जुड़ी कलावती व कलवासी के हाथ के बुने कंबल की खरीदारी के लिए भी गांव में दूर-दूर से ग्राहक आते हैं। घर के पुरूष भेड़ पालन कर उसके मल मूत्र से भेड़ों और अपना खर्चा निकाल लेते हैं और घर में ये महिलाएं भेड़ के बाल से सूत तैयार कर इसका संग्रह करती हैं। इसके बाद इन मोटे सूत से कंबल तैयार करती हैं।
जब ठंड शुरू हो जाता है तो इनके परिवार जन महिलाओं द्वारा तैयार किए गए कंबल को बाजार में ले जाकर बेचते हैं। वैसे तो यहां पहले हर घर में कंबल उद्योग चलता था, लेकिन अब केवल आधा दर्जन परिवार में ही कंबल तैयार होता है। कंबल कम होने के चलते खुद बाहर से जरूरतमंद परिवार कंबल खरीदने के लिए घर पर ही आ जाते हैं।
कलावती व कलवासी ने बताया कि चरखा के द्वारा पहले सूत तैयार किया जाता है और इस सूत से रंगीन ऊन का मिलावट कर विभिन्न डिजाइनों के कंबल ओढ़ने के लिए बनाते हैं। कंबल के साथ ही बहुत से लोग पूजा करने के लिए आसनी भी आर्डर देकर बनवाते हैं, जिसका प्रयोग अधिकांश मंदिरों में होता है। एक कंबल तैयार करने में एक सप्ताह का समय लगता है। छह से आठ सौ में बिकता है कंबल वर्तमान समय में एक कंबल 600 से 800 रुपये में बिकता है।
वहीं बिछावन व सपटा वाला कंबल 500 से 600 रुपये में बिकता है। कंबल तैयारी के लिए सभी आकार का फर्मा इनके पास है। हरेराम पाल ने बताया कि कंबल उद्योग के नाम से यह गांव प्रसिद्ध था। यहां से कंबल कुंभ मेला और गोला बाजार के लिए जाता है। पहले सोहनाग और दुग्धेश्वरनाथ में लगने वाले मेले में नरियांव का कंबल खरीदने के लिए लोग आते थे।अब मेला बंद हो गया और नई तकनीकी के चलते अब कम लोग भेड़ के कंबल की खरीदारी कर रहे हैं।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।