मारीशस में कालापानी की सजा काट लौटे थे महराजगंज के हेमराज
परतावल विकास खंड के ग्राम पंचायत छातीराम में जन्मे हेमराज ने आजादी के लिए मर मिटने की ठानी थी। कतिपय जमीदारों सहित अंग्रेजों के खिलाफ जब प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना ने क्रांति का शंखनाद किया तो हेमराज ने भी तिरंगा उठाया और उनके साथ हो लिए। दिन-रात भ्रमण कर सोई हुई जनता को जगाना उनमें देश प्रेम की भावना पैदा करना उनका उद्देश्य था।

महराजगंज : देश को आजादी दिलाने में भाग लेने वालों का जिक्र जब भी होता है तो जंग-ए-आजादी में भाग लेने वालों की फिजा में अमर सपूत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हेमराज का नाम याद आ जाता है। आजादी के परवानों में हेमराज की शहादत की भी लोग चर्चा करते हैं। हेमराज ने स्वाधीनता की लड़ाई में ब्रिटिश हुक्मरानों सहित जालिम जमींदारों के जुल्मों सितम को नंगी पीठ पर झेला था। उनका घर जमींदोज कर कारागार में डाल दिया गया। उन्हें मारीशस में काला पानी की सजा भी दी गई। आजादी के बाद उन्हें मिले 6.5 एकड़ कृषि भूमि से उनका परिवार वंचित है। ब्लाक में लगे स्तंभ पर उनका नाम भी नहीं है।
परतावल विकास खंड के ग्राम पंचायत छातीराम में जन्मे हेमराज ने आजादी के लिए मर मिटने की ठानी थी। कतिपय जमीदारों सहित अंग्रेजों के खिलाफ जब प्रोफेसर शिब्बन लाल सक्सेना ने क्रांति का शंखनाद किया तो हेमराज ने भी तिरंगा उठाया और उनके साथ हो लिए। दिन-रात भ्रमण कर सोई हुई जनता को जगाना, उनमें देश प्रेम की भावना पैदा करना उनका उद्देश्य था। सदस्यता अभियान शुरू हुई तो सदस्यों की लंबी फौज बनती गई। इस दौरान हेमराज का नाम हर देश प्रेमी की जुबान पर छा गया। हेमराज के पौत्र अरविद कुमार बताते हैं कि मेरे दादा हेमराज सिर पर गांधी टोपी लगाए हुए कंधे पर तिरंगा लिए हुए तत्कालीन पुलिस को चकमा देकर क्षेत्र में घूम-घूम कर जन जागरण करते थे व प्रोफेसर सक्सेना जी के साथ देखे जाते थे। उस समय श्यामदेउरवा थाने थाने पर तैनात हाजी दारोगा ने थाना परिसर में उन्हें गंभीर यातनाएं भी दी, फिर भी वह नहीं टूटे। उनके खिलाफ 38/ 121 डिफेंस आफ इंडिया में कैसर हिद बनाम हेमराज का वाद चला एवं 10 मई 1941 को गोरखपुर जनपद के मजिस्ट्रेट श्रेणी अव्वल मिस्टर श्री निवास ने एक साल तक कैद की सजा सुनाई और उसे कारागार में डाल दिया गया। हेमराज का दिसंबर 1941 में सत्याग्रह आंदोलन के सहयोगी के रूप में चुनार के कैंप जेल में अभिनंदन किया गया। उन्हें काला पानी की सजा भी हुई। देश की आजादी के बाद इनको मुक्त किया गया और वे अपने वतन लौट आए। इस स्वतंत्रता सेनानी की सुधि आजादी के बाद सरकार ने ली तथा चंदन चापी में 6.5 एकड़ जमीन दी गई व पेंशन स्वीकृत हुआ। उक्त जमीन पर चकबंदी के पूर्व तक उनके स्वजन का कब्जा रहा परंतु अब वह जमीन इस परिवार के पास नहीं रह गई। हेमराज की पत्नी श्रीमती जोहरा अपने जीवन काल तक पेंशन पाती रही।
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