नाम हरिशंकर तिवारी: जेल से जीता चुनाव, शाही से अदावत; इंदिरा-राजीव और अटल बिहारी वाजपेयी से थे अच्छे रिश्ते
1975 का वह दौर जेपी आंदोलन का था। इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जनआंदोलन छेड़ने वाले जयप्रकाश नारायण (जेपी) के समर्थन में नेता ही नहीं जनता भी मुखर थी। छात्र संघ से लेकर सदन तक युवा आंदोलित थे। यही वो दौर था जब पूर्वांचल की राजनीति में हरिशंकर तिवारी की इंट्री हुई।राजनीति में छात्रसंघ का दखल बढ़ा तो आंदोलन का तरीका भी तल्ख होने लगा।

जागरण ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली: 1975 का वह दौर जेपी आंदोलन का था। इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जनआंदोलन छेड़ने वाले जयप्रकाश नारायण (जेपी) के समर्थन में नेता ही नहीं जनता भी मुखर थी। छात्र संघ से लेकर सदन तक युवा आंदोलित थे। यही वो दौर था जब पूर्वांचल की राजनीति में हरिशंकर तिवारी की इंट्री हुई।
राजनीति में छात्रसंघ का दखल बढ़ा तो आंदोलन का तरीका भी तल्ख होने लगा। जेपी के सिद्धांतों की लड़ाई ने यहां गुटबाजी का रूप ले लिया। ब्राह्मण-ठाकुर के धड़े में बंटे युवाओं के एक गुट ने जब हरिशंकर को अपना नेता मान लिया तभी से वह ‘तिवारी’ हो गए। यही उनके राजनीतिक जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।
गोरखपुर विश्वविद्यालय बना तिवारी का गढ़
गोरखपुर शहर से 55 किलोमीटर दूर टांड़ा गांव से प्राइमरी और बड़हलगंज से इंटरमीडिएट करने के बाद हरिशंकर तिवारी स्नातक करने गोरखपुर विश्वविद्यालय पहुंचे तो यहां उनका सामना सबसे पहले बलवंत सिंह और उसके बाद वीरेन्द्र प्रताप शाही से हुआ। ब्राह्मणों और ठाकुरों के बीच तिवारी और शाही गैंग की गुटबाजी में हरिशंकर तिवारी का प्रभाव अपने वर्ग में बढ़ने लगा।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र उन्हें अपना नेता मानने लगे। पढ़ाई पूरी होने के बाद हरिशंकर तिवारी ने ठेकेदारी की तरफ रुख किया। बस स्टैंड, तहबाजारी, स्क्रैप से लेकर रेलवे के ठेकों में तिवारी ने अपना दखल बढ़ा लिया। उनके साथ युवाओं की पूरी टीम थी जो गोरखपुर ही नहीं आसपास के जिलों में उनका प्रभाव जमाने में लगी थी।
मुकदमे कई दर्ज हुए साबित एक न हुआ
छात्रसंघ आंदोलनों से लेकर गुटबाजी की राजनीति के दौर में हरिशंकर तिवारी के खिलाफ दो दर्जन से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए। इनमें अपहरण, हत्या की साजिश, सरकारी काम में बाधा जैसी संगीन धाराएं भी थीं, लेकिन किसी भी मामले में उन पर दोष सिद्ध नहीं हुआ। किसी में पुलिस को साक्ष्य नहीं मिला तो कहीं गवाह। सभी आपराधिक मामलों में न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया।
चिल्लूपार से हाता की ओर दौड़ पड़ी गाड़ियां
पंडित हरिशंकर तिवारी के निधन की सूचना जैसे ही चिल्लूपार पहुंची गांव सहित क्षेत्र के अधिकांश गांवों से वाहन गोरखपुर हाता की ओर दौड़ पड़े। यहां तक कि लोग एक-दूसरे को सूचना देते और भागते नजर आए। इंटरनेट मीडिया उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों से पट गया। हर कोई अपने ढंग से कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए बेताब दिखा।
राजनीति की बिसात पर हरिशंकर तिवारी ने अपने मोहरे इस तरह बैठाए थे कि सरकार किसी भी दल की हो पूर्वांचल में उनको नजरअंदाज करना मुश्किल था। कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, पीवी नरसिम्हा राव, बाला साहेब ठाकरे से भी उनके गहरे रिश्ते थे। प्रदेश में कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह से लेकर मुलायम सिंह यादव किसी की भी सरकार रही हो, हरिशंकर तिवारी को कैबिनेट में जरूर जगह मिली।
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