गोरखपुर विश्वविद्यालय को मिली बड़ी सफलता, तीन शोधार्थियों के पेटेंट हुए प्रकाशित
गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग को तीन पेटेंट मिले हैं। ये पेटेंट जैव चिकित्सा जैव रसायन और जैव कीटनाशकों से संबंधित हैं। छात्रों ने बिच्छू विष मकड़ी विष दुधारू पशुओं को संक्रमित करने वाले कीड़ों और दीमक नियंत्रण पर शोध किया है। गणित विभाग ने तारों में गुरुत्वीय पतन पर नई खोज की है जिसे इटरनल कोलैप्स फिनामिना नाम दिया गया है।
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान विभाग के आचार्य रविकांत उपाध्याय व उनके शोधछात्रों को भारत सरकार ने तीन पेटेंट प्रदान किए हैं। यह सभी भारतीय पेटेंट्स उनके शोध छात्रों के द्वारा किए गए उत्कृष्ट अनुसंधान एवं शोध के आधार पर दिए गए हैं। सभी पेटेंट जीव विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों जैसे जैव चिकित्सा, जीव रसायन, जैव कीटनाशकों के निर्माण एवं उपयोग पर दिए गए हैं।
शोध छात्र डा.मुकेश चौबे ने काले बिच्छू के जहर से बने वेनम टोक्सिन पर शोध किया है। बताया है कि बिच्छू के डंक मारने पर इसी विष का इंजेक्शन दिया जाता है, जिसका शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस विष का उपयोग एंटी- सीरम बनाने में किया गया है, जिसका अच्छा रेस्पांस मिला है।
डा. रवि कुमार गुप्ता ने बताया कि स्पाइडर टाक्सिन, जो कि क्रिसोप्रेजर लियोनी से अलग किया गया। इस एंटीजन का प्रयोग मकड़ी के खिलाफ एंटीबाडी बनाने में किया गया। मकड़ी के विष के खिलाफ बनाई गई एंटीबाडी सफलतापूर्वक काटे हुए जगह को निष्क्रिय कर देती है।
डा. निधि यादव ने शोध कर बताया कि रक्त चूसने वाले अर्थो कोड हैं, जो त्वचा से लगातार चिपक कर दुधारू पशुओं का रक्त पीते हैं। साथ ही लार में से ढेर सारे ऐसे तत्व छोड़ते हैं, जो दुधारू पशुओं को संक्रमित करते हैं। इसे रोकने के लिए अर्थो कोड टिकलर ग्रंथि से विशेष एंटीजन अलग किया गया।
चूहे पर इसका सकारात्मक असर दिखा। दीमक को नियंत्रित करने के लिए डा. लोकप्रिय पांडेय ने एक एंटी टरमाइट पेंट का निर्माण किया है, जो पेड़ पर पांच फीट की ऊंचाई पर बढ़ने पर दीमक के आवागमन को अवरुद्ध कर देता है।
विशालकाय तारों पर की नई खोज
गोरखपुर विश्वविद्यालय के गणित एवं सांख्यिकी विभाग के सहायक आचार्य डा. राजेश कुमार ने शोध कर बताया है कि समानरूपी गुरुत्वीय पतन प्रणालियां कभी भी सीमित सिंगुलरिटी तक नहीं पहुंचती। विशालकाय तारों में गुरुत्वीय-पतन प्रक्रिया अनंत काल तक चलती रहती है।
डा. कुमार ने इस नई प्रक्रिया और अवस्था को इटरनल कोलैप्स फिनामिना अर्थात सतत गुरुत्वीय पतन नाम दिया है। डा. राजेश के इस शोध को भारत सरकार ने पेंटेट किया है।
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