शोध में साहित्यिक चोरी पर गोरखपुर विश्वविद्यालय सख्त, गलती मिली तो होगी कार्रवाई
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने साहित्यिक चोरी की रोकथाम के लिए यूजीसी के नियमों का सख्ती से पालन करने का निर्णय लिया है। विश्वविद्यालय ने सभी विभागों को साहित्यिक चोरी का पता लगाने वाले सॉफ्टवेयर का उपयोग अनिवार्य कर दिया है। शैक्षणिक कार्य में 10 प्रतिशत से अधिक समानता स्वीकार्य नहीं होगी, उल्लंघन करने पर कार्रवाई की जाएगी। विश्वविद्यालय अनुसंधान नैतिकता पर जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित करेगा।

गोरखपुर विश्वविद्यालय ने की शैक्षणिक ईमानदारी व अनुसंधान उत्कृष्टता सुनिश्चित करने की पहल
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के उच्च शिक्षा संस्थानों में साहित्यिक चोरी की रोकथाम विनियम 2018 के प्रभावी क्रियान्वयन की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। वर्ष 2018-19 में कार्यकारी परिषद द्वारा इन विनियमों को अनुमोदित किए जाने के बाद अब विश्वविद्यालय ने सभी संबद्ध महाविद्यालयों, शिक्षण विभागों और अनुसंधान केंद्रों को इसके कठोर अनुपालन हेतु स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि इन विनियमों का उद्देश्य विद्यार्थियों, शोधार्थियों, अध्यापकों और कर्मचारियों में जिम्मेदार अनुसंधान व्यवहार, पारदर्शिता तथा नैतिक लेखन संस्कृति को बढ़ावा देना है। विनियमों के अनुसार किसी भी शैक्षणिक कार्य में 10 प्रतिशत से अधिक समानता सूचकांक स्वीकार्य नहीं होगा। सभी विभागों को प्लेजरिज़्म डिटेक्शन साफ्टवेयर का उपयोग अनिवार्य रूप से करना होगा। प्रत्येक शोधपत्र या प्रबंध के साथ स्व-प्रमाणन और समानता रिपोर्ट संलग्न करना आवश्यक होगा।
विश्वविद्यालय ने प्रत्येक विभाग और संबद्ध महाविद्यालय में शैक्षणिक ईमानदारी समिति गठित करने के निर्देश दिए हैं। यह समिति अनुपालन, जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जिम्मेदारी निभाएगी। नियमानुसार 10 से 40 प्रतिशत समानता पाए जाने पर कार्य में संशोधन कर पुनः प्रस्तुत करना होगा। इसी तरह 40 से 60 प्रतिशत समानता पर मूल्यांकन रोका जाएगा और कारण बताओ नोटिस जारी होगा। जबकि 60 प्रतिशत से अधिक समानता पाए जाने पर कार्य अस्वीकार कर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
शैक्षणिक ईमानदारी हमारे विश्वविद्यालय की पहचान है। इन विनियमों का उद्देश्य केवल नकल की रोकथाम नहीं, बल्कि सत्यनिष्ठा की संस्कृति को संस्थागत बनाना है। अब एनआइआरएफ रैंकिंग में भी प्रकाशनों को वापस लेने पर नकारात्मक अंक दिए जाते हैं। इसलिए अनुसंधान की गुणवत्ता और मौलिकता बनाए रखना प्रत्येक शिक्षक और शोधार्थी का दायित्व है।
विश्वविद्यालय शीघ्र ही सभी विभागों व महाविद्यालयों में कार्यशालाएं, प्रशिक्षण सत्र और अभिविन्यास कार्यक्रम आयोजित करेगा ताकि शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों में अनुसंधान नैतिकता व उद्धरण पद्धति के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके।
इस पहल के जरिए गोवि न केवल शैक्षणिक उत्कृष्टता, बल्कि समाज में ईमानदारी, पारदर्शिता और बौद्धिक विश्वसनीयता की भावना को सुदृढ़ करने के लिए भी प्रतिबद्ध है।
-प्रो.पूनम टंडन, कुलपति, गोवि

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