गोरखपुर में झोलाछाप से कराते रहे उपचार, हो गए गंभीर संक्रमण के शिकार
गोरखपुर में एक व्यक्ति झोलाछाप डॉक्टर से इलाज कराने के कारण गंभीर संक्रमण का शिकार हो गया। लंबे समय से गलत इलाज के कारण उसकी हालत गंभीर हो गई। स्वास्थ्य विभाग लगातार झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज न कराने की चेतावनी देता है। लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता है।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। बिस्तर पर पेशाब करने की समस्या (नाक्टर्नल एन्यूरिसिस/ बेड वेटिंग) आमतौर पर छोटे बच्चों में दिखाई देती है, लेकिन छह साल से बड़े बच्चों में यह परेशानी बढ़ती दिख रही है। झोलाछाप से उपचार कराने से स्थिति गंभीर हो रही है। बीते छह माह में बीआरडी मेडिकल काॅलेज के यूरोलाजी विभाग के ओपीडी में ऐसे 30 बच्चे पहुंचे, जिन्हें बिस्तर पर पेशाब करने की समस्या थी। इनमें से 13 की हालत इतनी खराब थी कि उन्हें भर्ती कर गहन उपचार करना पड़ा। ज्यादातर बच्चों में गंभीर मूत्र संक्रमण, नसों की कमजोरी और मूत्राशय की कार्यक्षमता में गड़बड़ी पाई गई। इनकी उम्र सात से लेकर 14 साल तक है।
डाॅक्टर के अनुसार, पांच से छह साल तक बच्चों में पेशाब पर पूरा नियंत्रण हो जाता है और यह विकास की सामान्य प्रक्रिया है। छह साल से बड़े बच्चों में बिस्तर गीला करना सामान्य नहीं माना जाता। यह किसी अंदरूनी समस्या का संकेत हो सकता है। मूत्र मार्ग संक्रमण (यूटीआइ), पोस्टीरियर यूरेथ्रल वाल्व, तंत्रिका तंत्र की कमजोरी, मनोसामाजिक तनाव या हार्मोनल असंतुलन आदि इसके प्रमुख कारण हैं।
स्वजन की अनदेखी और अंधविश्वासपूर्ण उपाय बच्चों की हालत बिगाड़ रहे हैं। कई मामलों में स्वजन झोलाछाप से उपचार कराते रहे, जिससे संक्रमण और बढ़ गया। ओपीडी में आने वाले अधिकांश बच्चे महीनों से गलत उपचार ले रहे थे। कुछ बच्चों को बिना जांच एंटीबायोटिक दी गई और ज्यादा दिन तक खिलाई गई। इसके बाद भी संक्रमण गहराता गया। कई बच्चों में मूत्राशय तक संक्रमण पहुंचने से नसें सुस्त पड़ गईं, जिसके कारण वे पेशाब रोकने या नियंत्रित करने में सक्षम नहीं रहे। ऐसी स्थिति में बार-बार बिस्तर गीला करने की समस्या गंभीर रूप ले लेती है।
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स्वजन द्वारा बच्चों को डांटना, शर्मिंदा करना या दंड देना भी मनोवैज्ञानिक तनाव को बढ़ा देता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि तनाव के कारण हार्मोनल परिवर्तन होते हैं, जिससे रात में मूत्राशय को नियंत्रित करने वाला हार्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं बन पाता। इसके कारण बच्चे रात में बार-बार पेशाब करते हैं।
समय पर जांच और सही उपचार से 90 प्रतिशत मामलों में सुधार संभव है। इसके लिए सबसे पहले मूत्र जांच, ब्लैडर डायरी, अल्ट्रासाउंड और न्यूरोलाजिकल मूल्यांकन किया जाता है। संक्रमण के उपचार के बाद बच्चों को ब्लैडर ट्रेनिंग, पर्याप्त पानी पीने की सलाह और रात में कैफीनयुक्त पेय न देने जैसी बातें बताई जाती हैं।
माता-पिता इस समस्या को शर्म या संकोच का कारण न समझें। छह साल से बड़े बच्चों में बिस्तर गीला करना किसी बड़े रोग की निशानी हो सकता है। गलत हाथों में उपचार कराने से परेशानी बढ़ सकती है और संक्रमण किडनी तक पहुंचने का खतरा रहता है। समय पर चिकित्सकीय सलाह ही इससे बचाव का सबसे सुरक्षित उपाय है।
-डाॅ. रवि प्रकाश मिश्रा, यूरोलाजिस्ट बीआरडी मेडिकल काॅलेज

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