होगी पहचान, क्यों गई बहुओं की जान? गांव-गांव लगेगी चौपाल
गोरखपुर में दहेज हत्याओं पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस एक नई पहल करने जा रही है। पिछले चार वर्षों में 1030 बहुओं की मौत दहेज के कारण हुई है। पुलिस दहेज सम्मेलन आयोजित करके पीड़ित परिवारों की व्यथा सुनेगी और महिलाओं को सरकारी योजनाओं से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाएगी। असुरक्षित माहौल में रहने वाली महिलाओं को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाएगा।

सतीश पांडेय, जागरण गोरखपुर। बहुओं की जान क्यों गई इसकी नए सिरे से पहचान होगी।बीते चार साल के आंकड़े पर गौर करे तो जोन के 11 जिलों में 1030 बहुओं की मौत दहेज हत्या में दर्ज की गई।अब पुलिस इन घटनाओं की असली वजह ढूढेंगी। जिस क्षेत्र में ज्यादा घटनाएं हुई हैं वहां ‘दहेज सम्मेलन’ होगा।
गांव-गांव चौपाल लगाकर सुनी पीड़ित परिवार की व्यथा सुनी जाएगी।आशा बहू, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और महिला बीपीओ की टीम इस बदलाव की बुनियाद बनाएंगी।
अपर पुलिस महानिदेशक मुथा अशोक जैन ने सभी जिलों के पुलिस कप्तानों को आदेश दिया है कि हर उस गांव और परिवार की पहचान की जाए जहां ऐसी घटनाएँ ज्यादा हुई हैं। वहीं पर ‘दहेज सम्मेलन’ और चौपाल लगाई जाएगी।
इन चौपालों में न सिर्फ पीड़ित परिवारों को बुलाया जाएगा, बल्कि महिलाओं की काउंसलिंग होगी,उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने की राह भी दिखाई जाएगी।इस पहल में पंचायत प्रतिनिधियों के साथ-साथ आशा बहू, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और महिला बीपीओ की टीमों को भी उतारा जाएगा।
ये टीमें गांव-गांव जाकर चौपाल करेंगी, महिलाओं से सीधी बात करेंगी और उन्हें यह समझाएंगी कि दहेज हत्या कोई पारिवारिक झगड़ा नहीं बल्कि अपराध है। आदेश में साफ लिखा गया है कि यदि कोई महिला असुरक्षित माहौल में है तो उसे तुरंत सुरक्षित स्थान पर भेजा जाए।
यह पहली बार होगा जब पुलिस केवल केस दर्ज करने तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि बहुओं की मौत रोकने के लिए समाज की चौखट तक जाएगी। पीड़ित परिवारों की व्यथा सीधे सुनी जाएगी। गोपनीय चर्चा का भी इंतजाम होगा ताकि महिलाएं बिना डर अपनी पीड़ा बता सकें।
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एडीजी ने चेतावनी दी है कि इन अपराधों पर किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अधिकारियों को निर्देश है कि वे सार्थक पहल करें ताकि सम्मेलन का असर जमीन पर दिखे।
दहेज हत्या के मामले (गोरखपुर जोन)
- 2022 : 277
- 2023 : 273
- 2024 : 286
- 2025 में अब तक : 194
विवाह जैसी संस्थाओं पर आधुनिकता का प्रभाव, युवा महिलाओं की बढ़ती हुई शिक्षा और सशक्तिकरण वर्तमान समय में कठोर पारंपरिक सामाजिक मानदंडों से टकरा रहे हैं। फलस्वरूप संघर्ष और आत्मघाती प्रवृत्ति उत्पन्न हो रही है। इसके लिए लिंग संवेदीकरण, परामर्श सेवाओं और महिला हेल्पलाइनों के विस्तार जैसे बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। परिवार के सदस्यों, नीति नियंताओं और गैर सरकारी संगठनों के सामूहिक प्रयास भी आवश्यक हैं।
- डॉ. दीपेंद्र मोहन सिंह, समाजशास्त्री व सहायक आचार्य, दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर
दहेज एक सामाजिक कुरीति है। इसकी वजह से महिलाओं के प्रताड़ित होने के जितने मामले सामने आते हैं, समाज में उससे ज्यादा हो सकते हैं। पति के नशे के कारण भी महिलाएं स्वयं को प्रताड़ित महसूस करती हैं। जब भी किसी को मानसिक परेशानी हो। वह जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग में आ जाए अथवा भारत सरकार ने 14416 नंबर जारी किया है। इस नंबर पर 24 घंटे बात हो सकती है। विशेषज्ञ हर पीड़ित की काउंसिलिंग करते हैं। इससे मानसिक परेशानी खत्म होगी और कोई भी व्यक्ति आत्महत्या के लिए कदम उठाने से बच सकेगा।
-डा. अमित कुमार शाही, मानसिक रोग विशेषज्ञ जिला अस्पताल
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