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    गर्भवतियों की सतर्कता बचा सकती है बच्चे की जान, खान-पान का रखें विशेष ध्यान

    Updated: Fri, 12 Sep 2025 11:18 PM (IST)

    गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के एक अध्ययन में पाया गया कि उच्च रक्तचाप के प्रति गर्भवती महिलाओं में जागरूकता की कमी से गर्भस्थ शिशुओं पर बुरा असर पड़ता है। अध्ययन में शामिल 50 में से 23 बच्चों की गर्भ में ही मौत हो गई क्योंकि गर्भवती महिलाओं ने समय पर जांच नहीं कराई थी।

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    गर्भवतियों की सतर्कता बचा सकती है गर्भस्थ की जान। जागरण

    जागरण संवाददाता, गोरखपुर । बीआरडी मेडिकल कालेज के एनाटामी विभाग में हुए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि गर्भवती का उच्च रक्तचाप (बीपी) के प्रति जागरूक न होना उनके गर्भस्थ पर भारी पड़ा। गर्भ में पल रहे 50 में से 23 बच्चे (46 प्रतिशत) की मौत हो गई। उन गर्भवतियों ने समय से जांच नहीं कराई। बीपी बढ़ने के कारण प्रसव से पहले उन्हें झटके आने लगे।

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    इसके कारण गर्भस्थ की जान पर बन आई। अधिकांश की गर्भ में मृत्यु हो गई, जो बच्चे जीवित पैदा भी हुए उनमें से ज्यादातर का वजन कम था। इसलिए तत्काल उन्हें विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाई (एसएनसीयू) में भर्ती कराना पड़ा।

    जांच के लिए जागरूक करना किया शुरू 

    इस अध्ययन के आलोक में अब बीआरडी मेडिकल कालेज के चिकित्सकों ने गर्भवतियों को समय-समय पर रक्तचाप की जांच कराने के लिए जागरूक करना शुरू कर दिया है। यह अध्ययन इंटरनेशनल जर्नल आफ एकेडमिक मेडिसिन एंड फार्मेसी ने जुलाई में प्रकाशित किया है।

    गर्भवती में 20 सप्ताह के बाद बीपी बढ़ना और यूरिन में प्रोटीन की उपस्थिति दिखने को मेडिकल साइंस में प्री-एकलेम्सिया कहते हैं। यही स्थिति जब जटिल हो जाती है तो महिला को दौरे पड़ने लगते हैं, जो मस्तिष्क की असामान्य गतिविधि के कारण होते हैं।

    इस स्थिति को एक्लेम्सिया कहते हैं। अध्ययन में 100 गर्भवती को शामिल किया गया। 50 सामान्य गर्भवती थीं, जिनका बीपी सामान्य था। दूसरे ग्रुप में 50 वह महिलाएं थीं जो प्री-एक्लेम्सिया व एक्लेम्सिया से पीड़ित थीं। दूसरे ग्रुप में 23 बच्चे गर्भ में ही मर गए थे।

    बच्चों का वजन कम और विकास हो सकता है बाधित

    कुल 50 बच्चों में से 31 का वजन कम पाया गया। विशेषज्ञों ने बताया कि माइक्रोस्कोप से देखने पर पता चला कि सामान्य वर्ग की अपेक्षा प्री-एक्लेम्सिया व एक्लेम्सिया ग्रुप की महिलाओं में 46 प्रतिशत के प्लेसेंटा (खेड़ी) का आकार असामान्य है। इसकी वजह से बच्चों का वजन कम व विकास बाधित हो सकता है।

    बीआरडी मेडिकल कालेज की एनाटामी विभाग की अध्यक्ष डा. बिंदू सिंह का कहना है कि गर्भवती को गर्भ के पहले महीने से ही जागरूक रहने की जरूरत है। सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर निश्शुल्क जांच व उपचार की सुविधा है। समय-समय पर जांच कराने से किसी भी तरह की जटिलता से बचा जा सकता है। डा. अल्पना श्रीवास्तव कहती हैं कि सतर्कता ही गंभीरता से बचने का सबसे बड़ा उपाय है। यदि पहले बच्चे के प्रसव के दौरान गर्भवती का बीपी बढ़ा रहा हो तो उसे दूसरे बच्चे के समय और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। इससे मां व गर्भस्थ दोनों सुरक्षित रहेंगे।

    गर्भावस्था में इस पर दें विशेष ध्यान

    -पोषक तत्वों से भरपूर भोजन खाएं और पर्याप्त आराम करें

    -भारी सामान उठाने से बचें।

    -झुककर कोई काम न करें।

    -जंक फूड, शराब, धूमपान से परहेज करें।

    -अत्यधिक गर्मी से बचें।

    -डाक्टर की सलाह पर व्यायाम करें।

    -डाक्टर से नियमित जांच कराएं

    -चिंता व तनाव से दूर रहें।

    -पर्याप्त पानी व तरल पदार्थों का सेवन करें।

    -आरामदायक कपड़े पहनें।

    -फलों और सब्जियों को अच्छी तरह धोकर खाएं।