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    Ganesh Utsav Celebration: विघ्नहर्ता की आराधना के लिए श्रद्धालु तैयार, आज स्थापित होंगी मूर्तियां

    गोरखपुर में गणेशोत्सव की धूम 87 वर्ष पहले शुरू हुई थी जब महाराष्ट्रियन नगरकर परिवार ने पहली बार सार्वजनिक रूप से मूर्ति स्थापित की थी। अब यह उत्सव शहर के हर मोहल्ले में फैल गया है जिसमें इस वर्ष 150 से अधिक मूर्तियां स्थापित की जाएंगी। गणेश चतुर्थी पर विशेष पूजा अर्चना की जा रही है।

    By Gajadhar Dwivedi Edited By: Vivek Shukla Updated: Wed, 27 Aug 2025 02:15 PM (IST)
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    पंडाल में स्थापित करने के लिए प्रतिमा ले जाते श्रद्धालु। पंकज श्रीवास्तव

    जागरण संवाददाता, गोरखपुर। अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होने के लिए 1893 में महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव के रूप में जो सांस्कृतिक शंखनाद किया, उसकी आभा अब गोरखपुर को भी आलोकित करने लगी है। विघ्नहर्ता आदिदेव भगवान गणेश की आराधना का उत्सव अब शहर में धूम मचा रहा।

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    87 वर्ष पहले सार्वजनिक स्थल पर महाराष्ट्रियन नगरकर परिवार द्वारा एक मूर्ति स्थापना से इस उत्सव की शुरुआत हुई थी। अब शहर के लगभग हर मोहल्ले तक पहुंच चुका यह उत्सव श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है। इस वर्ष डेढ़ सौ से अधिक मूर्तियां स्थापित की जाएंगी। मूर्तियां मंगा ली गई हैं, उन्हें भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि बुधवार को मंत्रोच्चार के बीच स्थापित किया जाएगा।

    शहर में गणेशोत्सव की शुरुआत वैसे तो 1901 में ही हो गई थी। महाराष्ट्र के तुकाराम नगरकर रेलवे के कांट्रैक्टर थे। उन्हें हजारीपुर से गोरखपुर तक रेल लाइन बिछाने का काम मिला। इसी सिलसिले में वह 1901 में यहां आए। आर्यनगर में उन्होंने अपना ठिकाना बनाया और उसी साल अपने आवास में मुंबई के लालबाग के राजा के रूप में गणपति मूर्ति की स्थापना की।

    हर साल वह मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना करते रहे। 1914 में पैदा हुए उनके पुत्र शांताराम नगरकर (खजांची बाबू) ने 1938 में पहली बार सार्वजनिक उत्सव आयोजित किया। उन्होंने अग्रवाल भवन आर्यनगर में मूर्ति की स्थापना कर स्थानीय लोगों को इस महोत्सव से जोड़ा।

    शांताराम नगरगर के पौत्र प्रफुल्ल नगरगर ने बताया कि अग्रवाल भवन में 1950 तक महोत्सव आयोजित किया गया। इसके बाद इसे वीनस सिनेमा हाल परिसर में स्थानांतरित कर दिया गया। वहां 1996 तक पूजा होती रही। 1997 से महोत्सव पार्क रोड पर किर्लोस्कर कंपाउंड में आ गया और यह महोत्सव महाराष्ट्र समाज ने आयोजित करना शुरू किया।

    2003 तक वहां उत्सव आयोजित होता रहा। इसके बाद सभी लोग अपने-अपने घरों में मूर्ति स्थापित कर पूजा करने लगे। इसकी शुरुआत तो सादे माहौल में हुई लेकिन समय के साथ बड़ी संख्या में लोग जुड़ते गए और स्वरूप भव्य होता गया।

    आज पूजा पंडालों में आयोजन को भव्य बनाने की समितियों में होड़ सी लगी है। गणेश उत्सव समितियां अपने आयोजन को साल-दर-साल समृद्ध कर रही हैं। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर चतुर्दशी तक 10 दिन तक यह महोत्सव मनाया जाता है।

    गणेश चतुर्थी व्रत आज

    बुधवार को वैनायकी वरद श्रीगणेश चतुर्थी व्रत है। मध्याह्न काल में (2:06 बजे तक) चतुर्थी तिथि होने से वैनायकी वरद चतुर्थी व्रत और पूजन इसी दिन होगा। पं. शरदचंद्र मिश्र व पं. नरेद्र उपाध्याय ने बताया कि पुराणों के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न में विघ्न विनायक भगवान श्रीगणेश का जन्म हुआ था। इसलिए इसे मध्याह्न व्यापिनी ही ग्रहण करना चाहिए। बुधवार को गणेश जी का दिन भी माना जाता है, इसलिए यह चतुर्थी व दिन का अच्छा संयोग मिल रहा है।