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    महुआचाफी कांड: गोरखपुर में रॉकेट फ्यूल से दौड़ती है तस्करों की पिकअप, एक्सपर्ट चालकों पर रहता है दांव

    Updated: Fri, 19 Sep 2025 08:30 AM (IST)

    गोरखपुर में पशु तस्करों के नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है। तस्कर पिकअप में राॅकेट फ्यूल का इस्तेमाल करते हैं और एक्सपर्ट ड्राइवर रखते हैं। गोपालगंज और सिवान में किराए के कमरों में मवेशी उतारे जाते हैं फिर उन्हें पश्चिम बंगाल भेजा जाता है। मजदूरों और रेकी करने वालों का भी नेटवर्क में अहम रोल होता है। बंगाल तस्करी का सबसे बड़ा बाजार है।

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    मजदूरों,रेकी करने वालों और दलालों की फौज,बार्डर से बंगाल तक फैला नेटवर्क

    जागरण संवाददाता, गोरखपुर। पशु तस्करों का नेटवर्क सिर्फ हथियारों और दुस्साहस पर नहीं, बल्कि एक संगठित तंत्र पर टिका है।पिछले वर्ष पकड़े गए बिहार के रहने वाले तस्कर मुस्ताक से पूछताछ में इसका पर्दाफाश हुआ था। उसने बताया कि पिकअप में ''राॅकेट फ्यूल' (पेट्रोल-डीजल का मिश्रण से बना तेल) डालकर इन्हें इतनी तेज गति से भगाया जाता है कि पुलिस की घेराबंदी बेकार हो जाती है। चालकों की भर्ती भी साधारण नहीं होती-ये एक्सपर्ट ड्राइवर होते हैं, जिन्हें एक चक्कर के लिए पांच हजार रुपये दिए जाते हैं।

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    गोपालगंज और सिवान में तस्करों ने किराए पर कमरे और बाड़े बना रखे हैं। इन बाड़ों में रात के अंधेरे में पकड़े गए मवेशियों को उतारा जाता है। यहीं से ट्रक और कंटेनर तैयार रहते हैं, जिनमें भरकर पशुओं को पश्चिम बंगाल भेजा जाता है। यह सफर कई बार 500 से 800 किलोमीटर लंबा होता है और पुलिस की आंख में धूल झोंककर तय किया जाता है।

    एक पिकअप में सिर्फ ड्राइवर नहीं, बल्कि पूरा स्टाफ होता है।जानवर लादने वाले मजदूरों को प्रति चक्कर 2500 रुपये दिए जाते हैं। रेकी करने वाले युवकों को 1000 से 1500 रुपये मिलते हैं। ये बाइक या स्कूटी पर सबसे आगे चलते हैं। इनका काम रास्ते में पुलिस की मौजूदगी या बैरिकेडिंग की खबर तुरंत पिकअप तक पहुंचाना होता है।

    वारदात के बाद पिकअप पर बाइक लादकर फरार हो जाते हैं ताकि पीछा करने वाले पुलिसवालों को गुमराह किया जा सके। तस्कर जानबूझकर पिकअप को बिना नंबर के चलाते हैं। कई गाड़ियां फर्जी नंबर प्लेट से भी पकड़ी गई हैं।

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    पुलिस सूत्रों का कहना है कि बिहार सीमा से सटे करीब 200 पिकअप पहले ही चिन्हित की जा चुकी हैं। गोपनीय सत्यापन कराया गया था लेकिन इसके बाद भी नेटवर्क पूरी ताकत से सक्रिय है। गोरखपुर, देवरिया और कुशीनगर के रास्तों से गुजरकर ये पिकअप जब बिहार सीमा पर पहुंचते हैं तो बाड़ों में मवेशियों को उतारा जाता है।

    वहां से बड़े ट्रक और कंटेनर तैयार रहते हैं, जिनसे मवेशी पश्चिम बंगाल पहुंचाए जाते हैं। सूत्र बताते हैं कि तस्करी का सबसे बड़ा बाजार बंगाल है जहां से इनका कारोबार करोड़ों रुपये तक पहुंचता है।