गीडा की ब्रान ऑयल फैक्ट्री में लपटों के बीच दमकल कर्मियों ने बनाई पैठ, धुएं से घिरकर लड़ी 'जंग'
गोरखपुर के गीडा क्षेत्र में आग लगने पर दमकल कर्मियों ने अद्भुत साहस दिखाया। जलती पाइपलाइन तक पहुंचना सबसे मुश्किल था, जहां आग सबसे तेज थी। धुएं, गर्मी और फिसलन के बीच, कर्मियों ने पानी का सही कोण तय किया। गर्मी इतनी थी कि दस्ताने पिघल रहे थे। गिरते मलबे और राख के बीच, कर्मियों ने एक-दूसरे का कंधा पकड़कर आगे बढ़कर आग पर काबू पाया।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। गोरखपुर में गीडा क्षेत्र में हुए अग्निकांड के दौरान दमकल कर्मियों ने अदम्य साहस का परिचय दिया। आग की ऊंची लपटों, काले धुएं और चीखते सायरन के बीच, सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य पाइप लाइन के जलते हिस्से तक पहुंचना था।
यह वही स्थान था जहां आग सबसे अधिक भड़क रही थी, और इसी ने पूरे आपरेशन को जोखिम भरा बना दिया। दमकल कर्मियों को धुएं की मोटी परत, भाप, अत्यधिक गर्मी और फिसलन भरी जमीन के बीच से गुजरकर पानी का सही एंगल सेट करना पड़ा, जो सामान्य परिस्थितियों में बेहद कठिन कार्य है।
जब दमकल की गाड़ियां फैक्ट्री के गेट पर पहुंचीं, तो गर्मी की लहर ने कर्मियों को झटका दिया। पहले उन्होंने इलाके की सुरक्षा सुनिश्चित की, फिर धीरे-धीरे पाइप लेकर आगे बढ़े। कुछ मीटर चलते ही भाप का गुबार उठता और टीम को पीछे हटना पड़ता।

फिर मास्क की पट्टियां कसी जातीं, दस्ताने चेक होते और कर्मी फिर आगे बढ़ते। गर्मी इतनी अधिक थी कि पाइप पकड़ते ही दस्ताने की ऊपरी परत पिघलने लगी। एक वाटर जेट को सही दिशा में सेट करने के लिए कम से कम दो कर्मियों की आवश्यकता थी, लेकिन तीन-तीन कर्मी उस बिंदु पर गए ताकि पाइप लाइन के ठीक नीचे पानी पहुंच सके।
फायर ब्रिगेड की टीम ने सबसे पहले ऊंचाई वाली लाइन को पकड़ने की कोशिश की। हाइड्रोलिक प्लेटफार्म पर चढ़े दो कर्मी जब ऊपर पहुंचे, तो गर्मी इतनी थी कि प्लेटफार्म से लगे लोहे का तापमान बढ़ गया। कर्मियों को कई बार नीचे उतरना पड़ा, लेकिन कुछ ही मिनट बाद नई टीम फिर ऊपर भेजी गई ताकि आग की ऊंचाई पर हमला किया जा सके।

फैक्ट्री के टैंक और पाइप लाइन के बीच का क्षेत्र सबसे जोखिम भरा था। यहां तक पहुंचने के लिए कर्मियों को गिरते मलबे और जलती राख के बीच से गुजरना पड़ा। अधिकारियों के अनुसार, यही वह समय था जब बड़ा हादसा टला। धुएं की परत इतनी मोटी थी कि कुछ दूरी पर खड़ा व्यक्ति भी दिखाई नहीं देता था।
हर कर्मी एक-दूसरे का कंधा पकड़कर आगे बढ़ रहा था। गर्म हवा की सनसनाती लपटें जब चेहरे पर पड़तीं, तो ऐसा लगता जैसे मास्क भी जल जाएगा। कई बार कर्मियों को मास्क हटाए बिना स्प्रे के सहारे आगे बढ़ना पड़ा। हर पांच से सात मिनट पर टीम बदलनी पड़ रही थी।
एक टीम अंदर जाती, पानी का एंगल सेट करती, फिर थकान और गर्मी से निढाल होकर बाहर लौटती। रात के अंधेरे में काली राख उड़ती रहती और रोशनी केवल दमकल की फ्लैशलाइटों और आग की नारंगी लपटों से बनती थी। फैक्ट्री के भीतर कई जगह फिसलन भी थी, जिससे कर्मियों को पाइप खींचते समय कठिनाई का सामना करना पड़ा।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।