Gorakhpur: ़ढाई करोड़ से बने कियोस्क पर लटका ताला, सड़क पर 'दुकान'
गोरखपुर में नौकायन रोड पर अतिक्रमण की समस्या बरकरार है, जहाँ वेंडिंग जोन घोषित होने के बावजूद ठेले और फूड वैन का कब्जा है। जीडीए की कार्रवाई के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा। कई बार कार्रवाई के बाद भी इनपर लगाम लगाने में गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) असफल है।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। नौकायन रोड को नो वेंडिंग जोन घोषित करने के बाद भी पूरी सड़क पर ठेले-खोंमचे और फूड वैन का कब्जा है। कई बार कार्रवाई के बाद भी इनपर लगाम लगाने में गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) असफल है। इन वेंडरों में से ज्यादातर के पास ठेले और फूड वैन से निकलने वाले कचरे के निस्तारण की समुचित व्यवस्था नहीं है।
प्राय: यहां से निकलने वाला कचरा भी ताल किनारे फेंक दिया जाता है। इसमें वेंडर के साथ ही यहां खाने-पीने के लिए आने वाले लोग भी बराबर के जिम्मेदार हैं। कुछ वेंडरों ने डस्टबिन रखा है, लेकिन जागरूकता के अभाव में लोग उसका इस्तेमाल नहीं करते।
वेंडरों को किया था आवंटित
ताल की सुंदरता बचाने और यातायात व्यवस्था सुगम बनाने के लिए तीन साल पहले जीडीए ने दिग्विजयनाथ पार्क में 120 से अधिक कियोस्क बनाए और वेंडरों को आवंटित किया। लेकिन, निर्माण के दो साल बाद भी 70 प्रतिशत से अधिक कियोस्क पर ताला लगा है। जीडीए उपाध्यक्ष आनंद वर्द्धन के निर्देश पर कई बार सख्ती भी हुई, जुर्माना लगा।
ठेले-फूड वैन जब्त किए गए, लेकिन कुछ दिन बाद फिर से इन्हें संचालित करने वाले वेंडर नौकायन रोड पर दिखाई देने लगते हैं। इनपर प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पाने की एक वजह यह भी है कि जीडीए की टीम प्राय: सात बजे तक ही अभियान चलाकर कार्रवाई करती है और ठेले-खोमचें और फूड वैन वाले इसके बाद अपनी दुकान सजाते हैं।
प्राकृतिक विधि से गौतम बुद्ध द्वार के पास नालों की सफाई करेगा जीडीए
रामगढ़ताल को प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) बड़ा कदम उठाने जा रहा है। गौतम बुद्ध द्वार के पास रिंग रोड से सटे क्षेत्र की ड्रेजिंग कराने के साथ ही ताल में गिरने वाले नगर निगम के पांच प्रमुख नालों का शोधन फाइटोरेमेडिएशन तकनीक से किया जाएगा। इस प्राकृतिक और कम लागत वाली तकनीक पर लगभग दो करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। जीडीए परियोजना की डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कर रहा है।
गौतम बुद्ध द्वार के पास रामगढ़ताल में गोल्फ क्लब नाला, पैडलेगंज (सिविल लाइन द्वितीय) नाला, साहबगंज मंडी नाला, रुस्तमपुर नाला और इंदिरानगर का नाला आकर मिलते हैं। जल निगम दावा करता है कि इन नालों को टैप कर पंपिंग स्टेशन से चिड़ियाघर स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) पर भेजा जाता है। लेकिन, मानसून के समय ज्यादा बहाव के कारण गंदा पानी ओवरफ्लो होकर सीधे ताल में चला जाता है, जिससे पानी की गुणवत्ता प्रभावित होने के साथ ही जैव विविधता पर गंभीर असर पड़ता है। नालों से आने वाले मलबे की वजह से बुद्धा गेट पंपिंग स्टेशन और रामगढ़ताल रिंग रोड के पास का इलाका सिल्ट से भर गया है। जीडीए इस हिस्से की ड्रेजिंग कर सिल्ट हटाने के साथ शोधन कार्य भी करेगा।
इस तरह होगी नाले का शोधन
जीडीए के अनुसार, नालों के पानी को साफ करने के लिए राक फिल्टर (गैबियन), बोल्डर पिचिंग, ह्यूम पाइप लाइन, पत्थर की चिनाई से बने चेक डैम और लोहे के जाल लगाए जाएंगे। इसके साथ ही पानी की अशुद्धियों को दूर करने के लिए सैकरम स्पोंटेनियम, सेलिक्स टेट्रास्पर्मा, वेटिवेरिया जिज़ानियोइड्स, कोलोकेसिया, फ्राग्माइट्स, पास्पलम और अल्टरनेन्थेरा जैसे जलीय पौधों को लगाया जाएगा।
ये पौधे अपनी जड़ों से प्रदूषित जल में मौजूद हानिकारक तत्वों को सोख लेते हैं। इस तकनीक से ताल का पानी स्वच्छ होगा और प्राकृतिक सौंदर्य के साथ जैव विविधता भी संरक्षित रहेगी। मछलियों और अन्य जलीय जीवों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। पर्यावरणीय रैंकिंग में सुधार होगा और ताल पर्यटन के लिहाज से और आकर्षक बन सकेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि यह तकनीक कम लागत में लंबे समय तक प्रभावी रहती है।
क्या कहता है जीडीए
जीडीए के उपाध्यक्ष आनंद वर्द्धन का कहना है कि रामगढ़ताल को साफ रखने के साथ ही जैव विविधता के संरक्षण के लिए फाइटोरेमेडिएशन तकनीक से गौतम बुद्ध गेट पर गिरने वाले नालों का शोधन किया जाएगा। वहां ड्रेजिंग भी कराई जाएगी। साथ ही ताल में गंदगी फैलाने वालों से प्राधिकरण और सख्ती से निपटेगा।
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