गोरखपुर: जुर्माना वसूलने तक सीमित रह गया अतिक्रमण हटाने का अभियान, बुलडोजर की दहाड़ के बाद भी जस का तस
गोरखपुर में अतिक्रमण हटाने का अभियान सवालों के घेरे में है। बार-बार कार्रवाई के बावजूद सड़कें फिर से अतिक्रमण का शिकार हो रही हैं। नगर निगम के प्रयासों के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है, जिससे जनता में निराशा है। प्रशासन से उम्मीद है कि वह जुर्माने के बजाय समस्या के मूल कारणों पर ध्यान देगा और स्थायी समाधान निकालेगा।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। शहर को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए नगर निगम और पुलिस प्रशासन का अतिक्रमण हटाओ अभियान क्या सिर्फ कागजी कार्रवाई और खानापूर्ति बनकर रह गया है? सड़कों पर बुलडोजर चलने और भारी भरकम जुर्माना लगाने के बाद भी अतिक्रमण दोबारा सिर उठा रहा है। आए दिन होने वाली कार्रवाई के बावजूद शहर की गलियां और सड़कें संकरी होती जा रही हैं, जो स्थानीय लोगों और व्यापारियों के बीच कई सवाल खड़े करती हैं।
शहर की जनता अब यह उम्मीद कर रही है कि प्रशासन सिर्फ जुर्माना वसूलने के बजाय अतिक्रमण के मूल कारणों पर ध्यान देगा। इसके लिए अवैध कब्जों पर सख्ती, अतिक्रमणकारियों को दूसरी जगह बसाने और नियमों का पालन करवाने के लिए एक प्रभावी निगरानी तंत्र की आवश्यकता है। तभी गोरखपुर की सड़कें और फुटपाथ आम लोगों के लिए सुरक्षित और सुगम बन पाएंगे।
बुलडोजर की दहाड़ के बाद भी जस का तस
नगर निगम ने हाल ही में शहर के प्रमुख इलाकों जैसे स्टेशन रोड, काली मंदिर, जुबली इंटर कालेज के पास और मोहद्दीपुर-कूड़ाघाट मार्ग पर बड़े पैमाने पर अभियान चलाया था। बुलडोजर चला, ठेले जब्त किए गए, अवैध होर्डिंग उतारे गए और हजारों का जुर्माना भी वसूला गया। लेकिन कुछ दिनों बाद ही स्थिति फिर से पहले जैसी हो गई। जिन जगहों से अतिक्रमण हटाया गया था, वहां फिर से दुकानें सज गईं, जिसकी वजह से ट्रैफिक व्यवस्था बिगड़ गई है।
रामगढ़ताल पर कियोस्क का हाल
यह स्थिति सिर्फ सड़कों तक सीमित नहीं है। रामगढ़ताल के पास ढाई करोड़ की लागत से बने कियोस्क पर ताला लटका है, जबकि सड़क किनारे दुकानें सजाकर अतिक्रमण किया जा रहा है। इससे सरकारी पैसे के दुरुपयोग का मुद्दा भी सामने आया है। लोगों का आरोप है कि प्रशासन केवल बड़े व्यापारियों पर कार्रवाई कर रहा है, जबकि छोटे दुकानदारों को सिर्फ जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाता है, जिससे समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल पाता है।
अधिकारियों के दावे, हकीकत की कहानी
नगर निगम के अधिकारी दावा करते हैं कि वे लगातार कार्रवाई कर रहे हैं। वे संबंधित थाना प्रभारियों को दोबारा अतिक्रमण न होने देने की जिम्मेदारी भी सौंपते हैं। हालांकि, जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। बार-बार की कार्रवाई के बावजूद समस्या का हल न होना यह दर्शाता है कि यह अभियान सिर्फ जुर्माना वसूलने तक सीमित है और इसमें इच्छाशक्ति की कमी है। जब तक ठोस और स्थायी रणनीति नहीं अपनाई जाएगी, तब तक यह चक्र चलता रहेगा और शहरवासी जाम और अव्यवस्था से परेशान रहेंगे।
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