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    समरसता की मिसाल है गोरखनाथ मंदिर; प्रधान पुजारी दलित, प्रसाद भी दलित रसोइए करते हैं तैयार- मुस्लिमों की भी है भागीदारी

    By Pradeep SrivastavaEdited By:
    Updated: Fri, 16 Apr 2021 08:05 AM (IST)

    गोरखनाथ मंदिर की इमारत ही सामाजिक समरसता की नींव पर खड़ी है। मंदिर के प्रधान पुजारी के तौर पर योगी कमलनाथ श्रीनाथजी की पूजा में कराते हैं तो भंडारे में श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद तैयार करने वालों में आधे से अधिक रसोइया दलित हैं।

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    गोरखपुर का प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर। - फाइल फोटो

    गोरखपुर, डा. राकेश राय। आम धारणा यही है कि मंदिर केवल हिंदुओं की धार्मिक आस्था के प्रतीक होते हैं और यहां सिर्फ अभिजात्य वर्ग के हिंदुओं का ही बोलबाला रहता है। यह धारणा धराशायी होती नजर आएगी, जब आप गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर आएंगे। मंदिर के प्रधान पुजारी के तौर पर योगी कमलनाथ श्रीनाथजी की पूजा में लीन मिलेंगे तो भंडारे में श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद तैयार करने वालों में आधे से अधिक रसोइया दलित होंगे। यहीं नहीं मंदिर में मुंशी मोहम्मद यासीन अंसारी और प्रापर्टी का लेखाजोखा रखते जाकिर अहमद की मौजूदगी आपको हैरान करेगी।

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    मोहम्मद यासीन है मंदिर के मुंशी तो जाकिर रखते हैं पापर्टी का लेखाजोखा

    दरअसल गोरखनाथ मंदिर की इमारत ही सामाजिक समरसता की नींव पर खड़ी है। नाथपंथ के आदिगुरु गोरक्षनाथ ने कर्मकांडीय उपासना पद्धति के समानांतर जिस तरह से योग को स्थापित किया, उससे सामान्यजन में वह तो लोकप्रिय हुए ही, जाति और मजहब की दीवार भी टूटी। नतीजतन बड़ी संख्या में दलित और मुस्लिम भी पंथ का हिस्सा बने। नाथपंथ के अध्येयता डा. प्रदीप कुमार राव बताते हैं कि गोरक्षनाथ ने भुज के कंठरनाथ, पागलनाथ, रावल, पंख या पंक, वन, गोपाल या राम, चांदनाथ कपिलानी, हेठनाथ, आई पंथ, वेराग पंथ, जयपुर के पावनाथ और घजनाथ नाम से जिस बारहपंथी समाज की नींव रखी, उसमें जाति और धर्म का कोई स्थान नहीं था। इसी वजह से नाथपंथ की परंपरा में शुरुआत से ही हर जाति, धर्म और वर्ग के व्यक्ति को गोरखपंथी संत से दीक्षा लेकर सिद्धि और मोक्ष के मार्ग पर चलने छूट रही है। पंथ से जुड़ने के बाद वह किसी जाति, धर्म या समाज का हिस्सा नहीं बल्कि सिर्फ नाथ हो जाता है।

    पाटेश्वरी मंदिर के महंत भी दलित

    इसकी बानगी नाथ पंथ के जुड़े देवीपाटन के पाटेश्वरी देवी मंदिर और महाराजगंज के चौक बाजार में गोरखनाथ मंदिर में भी देखी जा सकती है। पाटेश्वरी मंदिर के महंत योगी मिथिलेश नाथ और चैक बाजार के गोरखनाथ मंदिर के पुजारी फलाहारी बाबा दोनों दलित वर्ग से ही आते हैं। जंगल धूषड़़ में नाथ पीठ से संचालित बुढ़िया माता मंदिर के पुजारी संतराज निषाद हैं। विनय कुमार गौतम ने एक दशक से भी अधिक समय से मंदिर के मीडिया प्रभारी की जिम्मेदारी संभाल रखी है।

    मंदिर में मौजूद हैं कबीर और रैदास

    गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में देश भर के सिद्ध साधु-संतों की प्रतिमा स्थापित है। इन प्रतिमाओं से भी सामाजिक समरसता में गोरखनाथ मंदिर के योगदान को समझा जा सकता है। प्रतिमाओं की श्रृंखला में अन्य सिद्ध साधु-संतों के साथ-साथ कबीर, रैदास, एकलव्य को भी प्रमुखता से स्थान दिया गया है।

    महंत अवेद्यनाथ ने डोमराजा के घर किया था भोजन

    मंदिरों से सामाजिक समरसता की डोर और मजबूत करने के लिए ही ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने देशभर के संतों के साथ जाकर वाराणसी के डोम राजा सुजीत चैधरी के घर भोजन ग्रहण किया अपने गुरु द्वारा स्थापित दलित सहभोज की परंपरा को वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ भी बखूबी निभा रहे हैं।

    दलित से रखवाई राम मंदिर की पहली ईंट

    सामाजिक समरसता को कायम करने गोरखनाथ मंदिर की भूमिका की चर्चा में ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ से जुड़े दो प्रसंग और भी काफी चर्चित है। पहला यह कि उनके प्रस्ताव पर ही अयोध्या के श्रीराम मंदिर के शिलान्यास की पहली ईंट एक दलित से रखवाई गई थी। दूसरा जब उन्होंने पटना रेलवे स्टेशन पर मौजूद हनुमान मंदिर में उस दलित पुजारी को फिर से स्थापित कराया था, जिसे दलित होने के नाते पदच्युत कर दिया गया था।

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