Medical Education in Hindi: मातृभाषा को पर्याप्त प्रोत्साहन, भारत की नई शिक्षा नीति का सुनहरा दिवस
New Education Policy 15 अक्टूबर 2022 भारत सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति के तहत सुनहरे दिवस के रूप में याद किया जाएगा क्योंकि समूचे भारतवर्ष में मेडिकल विषयों की पढ़ाई हिंदी में आरंभ होने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

गोरखपुर, राकेश त्रिपाठी। मध्य प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान की अगुवाई में माननीय गृहमंत्री श्री अमित शाह जी ने भोपाल (मध्य प्रदेश) में मेडिकल के तीन विषयों के मातृभाषा हिंदी में लिखित पुस्तकों का लोकार्पण कर आगामी दिनों में मेडिकल की पढ़ाई हिंदी माध्यम से कराए जाने का स्वर्णिम आगाज किया। उन्होंने नई शिक्षा नीति के घोषणाओं के अनुरूप कामकाज ,प्रारंभिक शिक्षा के साथ-साथ एवं मेडिकल एवं तकनीकी तथा इंजीनियरिंग शिक्षा मैं मातृभाषा प्रयोग के संकल्प को दोहराया गया।
यह दुर्भाग्य है कि आज भी जबकि हिंदी को देश की राजभाषा घोषित कर दिया गया है तब भी राजनीतिक छल छंद के कारण एक विदेशी भाषा होने के बावजूद अंग्रेजी में कामकाज को विशेष महत्व दिया जाता रहा है तथा पूरे देश की राष्ट्रभाषा होने को कौन कहे राजभाषा के रूप में भी अपने सम्मान को प्राप्त करने के लिए हिंदी को निरंतर संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है। अंग्रेजी के वर्चस्व एवं भाषाई कूटनीति के कारण अकेली हिंदी ही क्यों भारत की अन्य राज्य-भाषाएं( उप भाषाएं) विकसित नहीं हो पा रही हैं और न ही शिक्षा का माध्यम बन पा रही हैं।
वाल्टर कैनिंग ने कहा था "विदेशी भाषा का किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र की राजकाज और शिक्षा की भाषा होना सांस्कृतिक दासता है"।भारत में ऐसा दृढ़ इच्छा शक्ति के अभाव के कारण ही हुआ है वरना इतिहास साक्षी है कि दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण ही तुर्की में टर्किश तथा जर्मनी में जर्मन भाषा रातों रात लागू कर दी गई। टर्की के बारे में विख्यात है कि कमाल पाशा ने सत्ता संभालने के पश्चात अपने शिक्षा मंत्री से पूछा कि टर्किश(तुर्की) भाषा को राजभाषा राष्ट्रभाषा घोषित करने में कितना समय लगेगा तो उन्होंने उत्तर दिया 15 वर्ष ।इस पर कमाल पाशा ने उनसे यह कहा कि तो समझो कि कल 15 वर्ष पूरे हो गए। इस प्रकार दूसरे दिन से ही टर्किश राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठापित् हो गई। इसी प्रकार बिस्मार्क द्वारा जर्मन एकीकरण के तुरंत पश्चात जर्मनी में जर्मन भाषा लागू हो गई।
ऐसी परिस्थिति में हिंदी की संवैधानिक स्थिति जान लेना अत्यावश्यक है। संविधान के अनुच्छेद 343 के खंड (1) में कहा गया है कि भारत संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा। अनुच्छेद 343 खंड( 2) में यह उपबंध किया गया था कि संविधान के प्रारंभ से 15 वर्ष की अवधि तक अर्थात 26 जनवरी 1965 तक राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग पूर्ववत जारी रहेगा। अनुच्छेद 343 खंड (3) में संसद को उक्त अवधि के बाद भी अंग्रेजी के प्रयोग को प्राधिकृत किए करने हेतु विधि निर्माण का अधिकार दिया गया है।
किंतु यह 15 वर्ष पूरे होने के पहले ही हिंदी को राजभाषा बनाए जाने का दक्षिण भारत के कुछ स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने व्यापक विरोध प्रारंभ कर दिया।खास करके तमिलनाडु में हिंदी को राजभाषा बनाने के बारे में कुछ विरोध और आंदोलन हुए हालाँकि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू पहले ही लोकसभा में घोषणा कर चुके थे कि अहिंदी भाषी लोगों पर हिंदी थोपी नहीं जाएगी। तथापि, प्रधानमंत्री का यह दृढ़ मत था कि अंग्रेजी को धीरे-धीरे ही सही, परंतु निश्चित रूप से हटा दियाजाना है। तथापि अहिंदीभाषी लोगों की शंकाओं के समाधान हेतु समन्वित सोच अपनाते हुए 10 मई, 1963 को अनुच्छेद 343 खंड( 3 )के प्रावधानों के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए एवं श्री जवाहर लाल नेहरू के आश्वासन को ध्यान में रखते हुए राजभाषा अधिनियम, 1963 लाया गया तथा पारित भी किया गया।
इस राजभाषा अधिनियम (1963) में कुल 9 धाराएँ थीं जिसमें से धारा 1 में यह प्रावधान किया गया कि 26 जनवरी 1965 के पश्चात् भी हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा संघ के उन सब राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाई जाती रहेगी जिनके लिए इससे पूर्व लाई जाती रही है।इस अधिनियम के निर्मित हो जाने के फलस्वरूप हिंदी राजभाषा के रूप में तथा अंग्रेजी सह राजभाषा के रूप में स्थाई रूप से पदासीन हो गई। श्रीमती इंदिरा गांधी भी अपने पिता की तरह अहिंदी भाषियों को दिलाए गए विश्वास को पूरा करने के उद्देश्य से लालबहादुर शास्त्री के साथ राजभाषा विधेयक 1963 में संशोधन को स्वीकृति दी। इस अधिनियम के तहत राजभाषा अधिनियम,1963 की धारा के स्थान पर नए उपबंध लागू हुए। राजभाषा संशोधन अधिनियम 1967 में यह प्रावधान किया गया कि अंग्रेजी का प्रयोग तब तक चलता रहेगा जब तक हिंदी को अपनी राजभाषा नहीं अपनाने वाले सभी राज्य अपने विधानमंडल में इस आशय का संकल्प पारित नहीं करा लेते कि अंग्रेजी भाषा का प्रयोग समाप्त किया जाए और इस संकल्प पर विचार करने के बाद संसद के दोनों सदन अंग्रेजी को समाप्त करने का संकल्प नहीं पारित कर देते।
इस प्रकार हम देखते हैं कि राजकीय कामकाज हेतु अंग्रेजी को अनंत काल के लिए प्रतिष्ठापित कर दिया गया तथा हिंदी को अनंत काल तक के लिए राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठापित होने से वंचित कर दिया गया। भारत सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा में कामकाज एवं पढ़ाई पर जोर देकर तथा हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने पर बल देकर एक सराहनीय काम किया है।
[पूर्व मुख्य परिचालन प्रबंधक, पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर]
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